• 6 years ago
भगवान का प्राकट्य तथा अप्राकट्य साधारण समझना यह एक अपराध है ।

परम पुरुषोत्तम भगवान भौतिक प्रकृति के नियमों द्वारा संचालित होकर कोई अवतार नहीं लेते ।यहाँ ‘स्वेच्छा’ शब्द यह इंगित करता है कि वे अपनी प्रधान इच्छा द्वारा ही प्रकट होते हैं । बद्ध जीव, परम भगवान के निर्देशन में अपने कर्मों के अनुसार भौतिक प्रकृति के नियमों के अंतर्गत एक विशेष प्रकार का शरीर पाता है । परन्तु जब भगवान प्रकट होते हैं तो वे भौतिक प्रकृति के आदेशों द्वारा विवश नहीं होते ; वे अपनी इच्छा से अपनी अंतरंग शक्ति द्वारा प्रकट होते हैं । यही अंतर है ।

बद्ध जीव कोई एक विशेष प्रकार का शरीर, जैसे सूअर का शरीर, ग्रहण करता है, जोकि भौतिक प्रकृति जैसी उच्च-शक्ति तथा उसके कर्मों द्वारा निर्धारित किया जाता है । परन्तु जब भगवान कृष्ण एक सुकर के रूप में अवतरित होते हैं तो वे साधारण सुकर के समान नहीं होते । भगवान का वराह-अवतार के रूप में अवतरित होना उनके विस्तार करने की विशेषता को दर्शाता है और इसकी तुलना एक साधारण सुकर से नहीं की जा सकती ।

उनका प्राकट्य तथा अप्राकट्य हमारे लिए अकल्पनीय है, अचिन्त्य है । भगवद-गीता में यह वर्णित है कि वे अपनी अंतरंग शक्ति के प्रभाव द्वारा भक्तों की रक्षा तथा असुरों को नष्ट करने के लिए प्रकट होते हैं । एक भक्त को सदैव यह समझना चाहिए की भगवान कृष्ण एक साधारण मनुष्य या पशु के रूप में नहीं प्रकट होते । उनका, वराह-मूर्ति या अश्व या कछुए के रूप में प्रकट होना उनकी अंतरंग शक्ति का प्रदर्शन मात्र है ।

श्री ब्रह्म-संहिता में वर्णित है :
आनंद-चिन्मय रस प्रतिभाविताभि (ब्र सं ५.३७) हमें भगवान के, मनुष्य,पशु या किसी देवता रूप में प्राकट्य को, प्रकृति के नियमों द्वारा विवश साधारण बद्ध जीव के जन्म के समान नहीं समझना चाहिए । यह सोचना भी अपराध है ।

– श्रीमद भागवतम ४.८.५७ (तात्पर्य)

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