शिव पुराण के अनुसार सृष्टि के आरंभ में क्षीर सागर से भगवान विष्णु प्रकट हुए और फिर उनकी नाभी से कमल खिला जिसमें बृह्म देव प्रकट हुए। अब दोनों में द्वंद शुरू हो गया कि कौन ज़्यादा महान है। दोनों ही खुद को दूसरे से ज़्यादा उच्च बताने में जुट गए।
नौबत युद्ध करने तक की आ गई और दोनों आमने-सामने आ खड़े हुए। तभी अचानक बीच में एक विशाल अग्नि स्तंभ प्रकट हो गया। जिसके दिव्य तेज को देख दोनों आश्चर्य-चकित रह गए।
अब उन दोनों ने इस अग्नि स्तंभ का मूल स्रोत पता लगाने की सोची। इसके लिए भगवान विष्णु ने वराह रुप धारण किया और पाताल की ओर चल दिए, इसी तरह बृह्म देव ने हंस रुप धारण किया और वे आकाश लोक की ओर उड़ गए। दोनों ने बहुत यत्न किए लिए उस स्तंभ का अंत न पा सके।
जब दोनों को स्तंभ का कोई ओर छोर न मिला तो वे अपनी हार मानकर वापिस लौट आए। उनका अहंकार चूर-चूर हो चुका था। भगवान विष्णु और बृह्म देव ने उस अग्नि स्तंभ को प्रणाम किया और अपने दर्शन देने का आग्रह करने लगे। अंतत: इसी दिन उस जलते हुए स्तंभ से भगवान शिव ने दर्शन दिए। शिव ने कहा कि आप दोनों का झगड़ा व्यर्थ है, इस सृष्टि में कोई भी बड़ा-छोटा नहीं है बल्कि तीनों देव एक समान हैं
नौबत युद्ध करने तक की आ गई और दोनों आमने-सामने आ खड़े हुए। तभी अचानक बीच में एक विशाल अग्नि स्तंभ प्रकट हो गया। जिसके दिव्य तेज को देख दोनों आश्चर्य-चकित रह गए।
अब उन दोनों ने इस अग्नि स्तंभ का मूल स्रोत पता लगाने की सोची। इसके लिए भगवान विष्णु ने वराह रुप धारण किया और पाताल की ओर चल दिए, इसी तरह बृह्म देव ने हंस रुप धारण किया और वे आकाश लोक की ओर उड़ गए। दोनों ने बहुत यत्न किए लिए उस स्तंभ का अंत न पा सके।
जब दोनों को स्तंभ का कोई ओर छोर न मिला तो वे अपनी हार मानकर वापिस लौट आए। उनका अहंकार चूर-चूर हो चुका था। भगवान विष्णु और बृह्म देव ने उस अग्नि स्तंभ को प्रणाम किया और अपने दर्शन देने का आग्रह करने लगे। अंतत: इसी दिन उस जलते हुए स्तंभ से भगवान शिव ने दर्शन दिए। शिव ने कहा कि आप दोनों का झगड़ा व्यर्थ है, इस सृष्टि में कोई भी बड़ा-छोटा नहीं है बल्कि तीनों देव एक समान हैं
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