नालंदा विश्वविद्यालय, दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय था। 7वीं सदी ईसा पूर्व से ये, शिक्षा का मुख्य केंद्र रहा। केवल भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे। विश्वविद्यालय को 200 गांव दान में मिले हुए थे और उन्हीं से विद्यार्थियों के भोजन, कपड़े तथा आवास का प्रबंध होता था।
एक समय में यहां दस हज़ार विद्यार्थी और 2 हज़ार शिक्षक थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी यहां एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में कुछ समय व्यतीत किया था। एक प्राचीन श्लोक से ज्ञात होता है कि प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री आर्यभट भी इस विश्वविद्यालय के प्रमुख रहे थे।
नालंदा का सबसे बड़ा आकर्षण था.... इसका 9 मंज़िला विराट पुस्तकालय। जहां विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए 3 लाख से भी अधिक पुस्तकों का संग्रह था। इनमें आयुर्वेद, रसायण विद्या, वैमानिकी, प्लास्टिक सर्जरी, त्रिकोणमिति, भू-विज्ञान, अणु-विज्ञान, ज्योतिष..............., अर्थशास्त्र, खगोलशास्त्र, काम शास्त्र, नाट्य शास्त्र, तंत्र, व्याकरण, कला एवं आध्यात्म से जुड़े कई महान ग्रंथ और महत्वपूर्ण पुस्तकें शामिल थीं।
ये पुस्तकालय तीन विशाल भवनों में स्थित था। इनमें अनेक दुर्लभ हस्तलिखित पांडुलिपियां मौजूद थीं। प्राचीन समय से लेकर तब तक.. भारत का संपूर्ण ज्ञान यहीं पर संजोया गया था। जिनमें से बहुत-सी पुस्तकों की प्रतिलिपियां तो चीनी यात्री अपने साथ ले गये थे।
हुआ कुछ यूं...कि 1200 ई. में एक तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने बिहार पर चढ़ाई की। उसने यहां के शिक्षकों से ईर्ष्या के चलते नालंदा पर भी आक्रमण कर दिया और इसके विशाल पुस्तकालय में आग लगा दी।
कहते हैं कि ये आग 3 महीनों तक लगातार धू-धू कर जलती रही और इसकी लपटों में भारत का सदियों से संचित ज्ञान का खज़ाना खाक हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि ये भारत का सबसे बड़ा नुकसान था। यदि ऐसा न हुआ होता तो आज हर क्षेत्र में भारत सबसे आगे और शक्तिशाली होता
एक समय में यहां दस हज़ार विद्यार्थी और 2 हज़ार शिक्षक थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी यहां एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में कुछ समय व्यतीत किया था। एक प्राचीन श्लोक से ज्ञात होता है कि प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री आर्यभट भी इस विश्वविद्यालय के प्रमुख रहे थे।
नालंदा का सबसे बड़ा आकर्षण था.... इसका 9 मंज़िला विराट पुस्तकालय। जहां विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए 3 लाख से भी अधिक पुस्तकों का संग्रह था। इनमें आयुर्वेद, रसायण विद्या, वैमानिकी, प्लास्टिक सर्जरी, त्रिकोणमिति, भू-विज्ञान, अणु-विज्ञान, ज्योतिष..............., अर्थशास्त्र, खगोलशास्त्र, काम शास्त्र, नाट्य शास्त्र, तंत्र, व्याकरण, कला एवं आध्यात्म से जुड़े कई महान ग्रंथ और महत्वपूर्ण पुस्तकें शामिल थीं।
ये पुस्तकालय तीन विशाल भवनों में स्थित था। इनमें अनेक दुर्लभ हस्तलिखित पांडुलिपियां मौजूद थीं। प्राचीन समय से लेकर तब तक.. भारत का संपूर्ण ज्ञान यहीं पर संजोया गया था। जिनमें से बहुत-सी पुस्तकों की प्रतिलिपियां तो चीनी यात्री अपने साथ ले गये थे।
हुआ कुछ यूं...कि 1200 ई. में एक तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने बिहार पर चढ़ाई की। उसने यहां के शिक्षकों से ईर्ष्या के चलते नालंदा पर भी आक्रमण कर दिया और इसके विशाल पुस्तकालय में आग लगा दी।
कहते हैं कि ये आग 3 महीनों तक लगातार धू-धू कर जलती रही और इसकी लपटों में भारत का सदियों से संचित ज्ञान का खज़ाना खाक हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि ये भारत का सबसे बड़ा नुकसान था। यदि ऐसा न हुआ होता तो आज हर क्षेत्र में भारत सबसे आगे और शक्तिशाली होता
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