वो पल जब समय को रुकना पड़ता है || आचार्य प्रशांत, बाबा बुल्लेशाह पर (2019)

  • 5 years ago
वीडियो जानकारी:

१८ मई, २०१९
हार्दिक उल्लास शिविर,
शिमला,
हिमांचल प्रदेश

प्रसंग:

घड़िआली दियो निकाल नी ।
अज्ज पी घर आया लाल नी ।
घड़ी-घड़ी घड़िआल बजावे, रैण वसल दी पिआ घटावे,
मेरे मन दी बात जो पावे, हत्थों चा सुट्टो घड़िआल नी ।
अनहद वाजा वज्जे सुहाणा, मुतरिब सुघड़ा तान तराना,
निमाज़ रोज़ा भुल्ल ग्या दुगाणा, मध प्याला देण कलाल नी ।
मुख वेखण दा अजब नज़ारा, दुक्ख दिले दा उट्ठ ग्या सारा,
रैण वड्डी क्या करे पसारा, दिल अग्गे पारो दीवाल नी।
मैनूं आपनी ख़बर ना काई, क्या जाणां मैं कित व्याही,
इह गल्ल क्यों कर छुपे छपाई, हुण होया फ़ज़ल कमाल नी ।
टूणे टामण करे बथेरे, मिहरे आए वड्डे वडेरे,
हुण घर आया जानी मेरे, रहां लक्ख वर्हे इहदे नाल नी ।
बुल्हा शहु दी सेज़ प्यारी, नी मैं तारनहारे तारी,
किवें किवें हुण आई वारी, हुण विछड़न होया मुहाल नी ।

~ संत बुल्लेशाह जी

बुल्लेशाह जी समय को रोक देने की बात क्यों कर रहे हैं?
समय कब रुक जाता है?
क्या प्रभु से मिलन में समय रुक जाता है?
समय के पार कैसे पहुँचें?
मुक्ति की प्राप्ति में समय की क्या भूमिका है?


संगीत: मिलिंद दाते