मन के माध्यम से परमात्मा क्या सिखाना चाहता है? || आचार्य प्रशांत, वैराग्य शतकम् पर (2017)

  • 5 years ago
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शब्दयोग सत्संग
२२ दिसंबर, २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

वैराग्य शतकम्, श्लोक संख्या ८३
हे प्रिय मित्र, यह विधाता, चतुर कुम्हार की तरह विपत्तिरुपी दंड के मार्ग की परम्परा से अत्यंत चंचल, चिन्तारूपी चक्र पर मिट्टी के पिंड की तरह मेरे मन को घुमाता रहता है, हम नहीं जानते कि वह इससे क्या बनाना चाहता है।

प्रसंग:
परमात्मा कौन है?
परमात्मा का पता कैसे लगता है?
परमात्मा कहाँ है?
मन चिंताओं से क्यों घिरा रहता हैं?
मन को कब शांति मिलेंगी?
परमात्मा में विश्वास कैसे हो?
परमात्मा का क्या हुक्म है?
सत्यथ होकर कैसे जीये?
मन के माध्यम से परमात्मा क्या सिखाना चाहता है?
हमें दुःख इतना क्यों सताता है?

संगीत: मिलिंद दाते

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