दुःख सोचो तो दुःख,सुख सोचो तो भी दुःख,और आनंद सोचा नहीं जा सकता || आचार्य प्रशांत (2016)

  • 5 years ago
वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
१७ फरवरी २०१६
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

प्रसंग:
कुछ शुरुआत करता हूँ तो डर क्यों लगता है?
दुःख सोचो तो दुःख,सुख सोचो तो भी दुःख,और आनंद सोचा नहीं जा सकता
मन सीमित से बाहर क्यों नहीं आता है?

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