इस समय पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी की गिरफ़्त में है. इसके लिए एक वायरस ज़िम्मेदार है, जिसे कोरोना वायरस नाम दिया गया है.
इंसानियत पर कहर बरपाने वाला ये पहला वायरस नहीं है. वायरस ने कई बार मानवता को भयंकर चोट पहुंचाई है. 1918 में दुनिया पर कहर ढाने वाले इन्फ्लुएंज़ा वायरस से पांच से दस करोड़ लोग मारे गए थे. वहीं अकेले बीसवीं सदी में चेचक के वायरस ने कम से कम बीस करोड़ लोगों की जान ले ली होगी.
इन मिसालों को देख कर तो यही लगता है कि वायरस हमारे लिए बड़ा ख़तरा हैं और इनका धरती से ख़ात्मा हो जाना चाहिए. काश की ऐसी कोई जादुई छड़ी होती, जो धरती से सारे वाइरसों का सफ़ाया कर देती.
लेकिन, वायरस को धरती से विलुप्त कर देने का इरादा करने से पहले सावधान हो जाइए. अगर ऐसा हुआ, तो हम भी नहीं बचेंगे. बिना वायरस के इंसान ही नहीं, इस धरती पर जीवन का अस्तित्व मुमकिन नहीं है.
ज़्यादातर लोगों को ये पता ही नहीं कि वायरस इस धरती पर जीवन को चलाने के लिए कितने महत्वपुर्ण हैं. इसकी एक वजह ये है कि हम केवल उन्हीं वायरसों के बारे में रिसर्च करते हैं, जिनसे बीमारियां होती हैं. हालांकि अब कुछ साहसी वैज्ञानिकों ने वायरस की अनजानी दुनिया की ओर क़दम बढ़ाया है.
अब तक केवल कुछ हज़ार वायरसों का पता इंसान को है जबकि करोड़ों की संख्या में ऐसे वायरस हैं, जिनके बारे में हमें कुछ पता ही नहीं.
हमारे लिए वो वायरस सबसे महत्वपूर्ण हैं, जो बैक्टीरिया को संक्रमित करते हैं. इन्हें फेगस कहते हैं. जिसका अर्थ है निगल जाने वाले.
समुद्र में बैक्टीरिया की आबादी नियंत्रित करने में फेगस वायरस का बेहद अहम रोल है. अगर ये वायरस ख़त्म हो जाते हैं, तो अचानक से समुद्र का संतुलन बिगड़ जाएगा.
फेगस वायरस की मदद से ही समुद्र में मौजूद काई, शैवाल और दूसरी वनस्पतियों को ख़ुराक मिलती है. जिससे वो फोटो सिंथेसिस करके, सूरज की रौशनी की मदद से ऑक्सीजन बनाते हैं. और इसी ऑक्सीजन से धरती पर ज़िंदगी चलती है. अगर वायरस ख़त्म हो जाएंगे, तो समुद्र में इतनी ऑक्सीजन नहीं बन पाएगी. फिर पृथ्वी पर जीवन नहीं चल सकेगा.
अगर, आज इंसान अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म दे पाते हैं, तो ये भी एक वायरस के इन्फ़ेक्शन का ही कमाल है. आज से क़रीब 13 करोड़ साल पहले इंसान के पूर्वजों में रेट्रोवायरस का संक्रमण बड़े पैमाने पर फैला था. उस संक्रमण से इंसानों की कोशिकाओं में आए एक जीन के कारण ही, इंसानों में गर्भ धारण और फिर अंडे देने के बजाय सीधे बच्चा पैदा करने की ख़ूबी विकसित हुई.
धरती पर वायरस ये जो तमाम भूमिकाएं निभा रहे हैं, उनके बारे में अभी वैज्ञानिकों ने रिसर्च शुरू ही की हैं. हम जैसे-जैसे इनके बारे में और जानकारी हासिल करेंगे, तो हम वायरस का और बेहतर इस्तेमाल कर पाएंगे. शायद उनसे हमें कई बीमारियों से लड़ने का ज़रिया मिले या अन्य ऐसी मदद मिले, जिससे इंसानियत ही नहीं, पूरी धरती का भला हो. इसलिए वायरस से नफ़रत करने के बजाय उनके बारे में और जानने की कोशिश लगातार जारी रहनी चाहिए.
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इंसानियत पर कहर बरपाने वाला ये पहला वायरस नहीं है. वायरस ने कई बार मानवता को भयंकर चोट पहुंचाई है. 1918 में दुनिया पर कहर ढाने वाले इन्फ्लुएंज़ा वायरस से पांच से दस करोड़ लोग मारे गए थे. वहीं अकेले बीसवीं सदी में चेचक के वायरस ने कम से कम बीस करोड़ लोगों की जान ले ली होगी.
इन मिसालों को देख कर तो यही लगता है कि वायरस हमारे लिए बड़ा ख़तरा हैं और इनका धरती से ख़ात्मा हो जाना चाहिए. काश की ऐसी कोई जादुई छड़ी होती, जो धरती से सारे वाइरसों का सफ़ाया कर देती.
लेकिन, वायरस को धरती से विलुप्त कर देने का इरादा करने से पहले सावधान हो जाइए. अगर ऐसा हुआ, तो हम भी नहीं बचेंगे. बिना वायरस के इंसान ही नहीं, इस धरती पर जीवन का अस्तित्व मुमकिन नहीं है.
ज़्यादातर लोगों को ये पता ही नहीं कि वायरस इस धरती पर जीवन को चलाने के लिए कितने महत्वपुर्ण हैं. इसकी एक वजह ये है कि हम केवल उन्हीं वायरसों के बारे में रिसर्च करते हैं, जिनसे बीमारियां होती हैं. हालांकि अब कुछ साहसी वैज्ञानिकों ने वायरस की अनजानी दुनिया की ओर क़दम बढ़ाया है.
अब तक केवल कुछ हज़ार वायरसों का पता इंसान को है जबकि करोड़ों की संख्या में ऐसे वायरस हैं, जिनके बारे में हमें कुछ पता ही नहीं.
हमारे लिए वो वायरस सबसे महत्वपूर्ण हैं, जो बैक्टीरिया को संक्रमित करते हैं. इन्हें फेगस कहते हैं. जिसका अर्थ है निगल जाने वाले.
समुद्र में बैक्टीरिया की आबादी नियंत्रित करने में फेगस वायरस का बेहद अहम रोल है. अगर ये वायरस ख़त्म हो जाते हैं, तो अचानक से समुद्र का संतुलन बिगड़ जाएगा.
फेगस वायरस की मदद से ही समुद्र में मौजूद काई, शैवाल और दूसरी वनस्पतियों को ख़ुराक मिलती है. जिससे वो फोटो सिंथेसिस करके, सूरज की रौशनी की मदद से ऑक्सीजन बनाते हैं. और इसी ऑक्सीजन से धरती पर ज़िंदगी चलती है. अगर वायरस ख़त्म हो जाएंगे, तो समुद्र में इतनी ऑक्सीजन नहीं बन पाएगी. फिर पृथ्वी पर जीवन नहीं चल सकेगा.
अगर, आज इंसान अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म दे पाते हैं, तो ये भी एक वायरस के इन्फ़ेक्शन का ही कमाल है. आज से क़रीब 13 करोड़ साल पहले इंसान के पूर्वजों में रेट्रोवायरस का संक्रमण बड़े पैमाने पर फैला था. उस संक्रमण से इंसानों की कोशिकाओं में आए एक जीन के कारण ही, इंसानों में गर्भ धारण और फिर अंडे देने के बजाय सीधे बच्चा पैदा करने की ख़ूबी विकसित हुई.
धरती पर वायरस ये जो तमाम भूमिकाएं निभा रहे हैं, उनके बारे में अभी वैज्ञानिकों ने रिसर्च शुरू ही की हैं. हम जैसे-जैसे इनके बारे में और जानकारी हासिल करेंगे, तो हम वायरस का और बेहतर इस्तेमाल कर पाएंगे. शायद उनसे हमें कई बीमारियों से लड़ने का ज़रिया मिले या अन्य ऐसी मदद मिले, जिससे इंसानियत ही नहीं, पूरी धरती का भला हो. इसलिए वायरस से नफ़रत करने के बजाय उनके बारे में और जानने की कोशिश लगातार जारी रहनी चाहिए.
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