भारतीय इतिहास में अप्रतिम साहस की प्रतिमूर्ति अहिल्याबाई होल्कर।PUNYASHLOK AHILYA BAI HOLKAR JAYANTI

  • 3 years ago
भारतीय इतिहास में अप्रतिम साहस की प्रतिमूर्ति अहिल्याबाई होल्कर।महारानी अहिल्याबाई इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं। जन्म इनका सन् 1725 में हुआ था और देहांत 13 अगस्त 1795 को; तिथि उस दिन भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी थी। अहिल्याबाई किसी बड़े भारी राज्य की रानी नहीं थीं। उनका कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित था। फिर भी उन्होंने जो कुछ किया, उससे आश्चर्य होता है।

महारानी अहिल्याबाई होलकर भारत के मालवा साम्राज्य की मराठा होलकर महारानी थी. अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी ग्राम में हुआ. उनके पिता मंकोजी राव शिंदे, अपने गाव के पाटिल थे. उस समय महिलाये स्कूल नही जाती थी, लेकिन अहिल्याबाई के पिता ने उन्हें लिखने -पढ़ने लायक पढ़ाया. अहिल्याबाई के पति खांडेराव होलकर 1754 के कुम्भेर युद्ध में शहीद हुए थे. 12 साल बाद उनके ससुर मल्हार राव होलकर की भी मृत्यु हो गयी. इसके एक साल बाद ही उन्हें मालवा साम्राज्य की महारानी का ताज पहनाया गया.

वह हमेशा से ही अपने साम्राज्य को मुस्लिम आक्रमणकारियो से बचाने की कोशिश करती रही. बल्कि युद्ध के दौरान वह खुद अपनी सेना में शामिल होकर युद्ध करती थी. उन्होंने तुकोजीराव होलकर को अपनी सेना के सेनापति के रूप में नियुक्त किया था. रानी अहिल्याबाई ने अपने साम्राज्य महेश्वर और इंदौर में काफी मंदिरो का निर्माण भी किया था.

इसके साथ ही उन्होंने लोगो के रहने के लिए बहोत सी धर्मशालाए भी बनवायी, ये सभी धर्मशालाए उन्होंने मुख्य तीर्थस्थान जैसे गुजरात के द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी का गंगा घाट, उज्जैन, नाशिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आस-पास ही बनवायी. मुस्लिम आक्रमणकारियो के द्वारा तोड़े हुए मंदिरो को देखकर ही उन्होंने सोमनाथ में शिवजी का मंदिर बनवाया. जो आज भी हिन्दुओ द्वारा पूजा जाता है.

इनका विवाह इन्दौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हार राव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। सन् 1745 में अहिल्याबाई के पुत्र हुआ और तीन वर्ष बाद एक कन्या। पुत्र का नाम मालेराव और कन्या का नाम मुक्ताबाई रखा। उन्होंने बड़ी कुशलता से अपने पति के गौरव को जगाया। कुछ ही दिनों में अपने महान पिता के मार्गदर्शन में खण्डेराव एक अच्छे सिपाही बन गये। मल्हारराव को भी देखकर संतोष होने लगा। पुत्र-वधू अहिल्याबाई को भी वह राजकाज की शिक्षा देते रहते थे।

उनकी बुद्धि और चतुराई से वह बहुत प्रसन्न होते थे। मल्हारराव के जीवन काल में ही उनके पुत्र खंडेराव का निधन 1754 ई. में हो गया था। अतः मल्हार राव के निधन के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य का शासन-भार सम्भाला था। रानी अहिल्याबाई ने 1795 ई. में अपनी मृत्यु पर्यन्त बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया। उनकी गणना आदर्श शासकों में की जाती है। वे अपनी उदारता और प्रजावत्सलता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके एक ही पुत्र था मालेराव जो 1766 ई. में दिवंगत हो गया। 1767 ई. में अहिल्याबाई ने तुकोजी होल्कर को सेनापति नियुक्त किया।

रानी अहिल्याबाई अपनी राजधानी महेश्वर ले गईं. वहां उन्होंने 18वीं सदी का बेहतरीन और आलीशान अहिल्या महल बनवाया। पवित्र नर्मदा नदी के किनारे बनाए गए इस महल के ईर्द-गिर्द बनी राजधानी की पहचान बनी टेक्सटाइल इंडस्ट्री। उस दौरान महेश्वर साहित्य, मूर्तिकला, संगीत और कला के क्षेत्र में एक गढ़ बन चुका था। मराठी कवि मोरोपंत, शाहिर अनंतफंडी और संस्कृत विद्वान खुलासी राम उनके कालखंड के महान व्यक्तित्व थे।

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