• 3 years ago
Part- 3
Sant Kabir Das ji ke dohavali 'Guru Mahima'
explanation by Gopal Das, Guru vani Kabir Das

21) भक्ति जुसीढ़ी मुक्ति की, चढ़े भक्त हरषाय ।
और न कोई चढ़ि सकै, निज मन समझो आय ।।

21) प्रेम बिना जो भक्ति है सो निज दंभ विचार ।
उदर भरन के कारन, जन्म गंवाये सार ।।

22) गुरु शरणगति छाड़ि के, करै भरोसा और ।
सुख सम्पत्ति को कह चली, नहीं नरक में ठौर ।।

23) भक्ति बिना नहिं निस्तैरै, लाख करै जो कोय ।
शब्द सनेही ह्वै रहै, घर को पहुँचे सोय ।।

24) मूलध्यान गुरु रुप है, मूल पूजा गुरु पांव ।
मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सत भाव ।।

25) भक्ति भेष बहु अन्तरा, जैसे धरनि आकाश ।
भक्त लीन गुरु चरण में, भेष जगत् की आश ।।

26) गुरु को सिर पर राखिए चलिये आज्ञा माहि ।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहिं ।।

27) गुरु सों ज्ञान जु लीजिए, सीस दीजिए दान ।
बहुतक भोंदु बहि गये, राखि जीव अभिमान ।।

28) कबीर ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और ।
हरि के रुठे ठौर है, गुरु रुठे नहिं ठौर ।।

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जय श्री राधे कृष्ण

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