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| Gwalior fort | मानसिंह तोमर का किला जिसे देख बाबर ने इस किले को हिंदुस्तान में किलो का मोती बताया!

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ग्वालियर किले का इतिहास:-
इतिहास के आंकड़ों की मानें तो इस किले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूर्यसेन ने किया. इस किले पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया है. किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इसपर पाल वंश ने राज किया. इसके बाद इसपर प्रतिहार वंश ने राज किया. 1023 ईस्वी में महमूद गजनवी ने इस किले पर आक्रमण किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा।
1196 ईस्वी में लंबे घेराबंदी के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले को अपनी अधीन किया लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा. फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपने अधीन किया. इसके बाद महाराजा देववरम ने ग्वालियर पर तोमर राज्य की स्थापना की. इस वंश के सबसे प्रसिद्ध राजा थे मानसिंह (1486-1516) जिन्होंने अपनी पत्नी मृगनयनी के लिए गुजारी महल बनवाया. 1398 से 1505 ईस्वी तक इस किले पर तोमर वंश का राज रहा. मुगल वंश के बाद इसपर राणा और जाटों का राज रहा फिर इस पर मराठों ने अपनी पताका फहराई।
1 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई ने मराठा विद्रोहियों के साथ मिलकर इस किले पर कब्जा किया. लेकिन इस जीत के जश्न में व्यस्त विद्रोहियों पर 16 जून को जनरल ह्यूज के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना ने हमला कर दिया. रानी लक्ष्मीबाई खूब लड़ीं और अंग्रेजों को किले पर कब्जा नहीं करने दिया. लेकिन इस दौरान उन्हें गोली लग गई और अगले दिन (17 जून को) ही उनकी मृत्यु हो गई. भारतीय इतिहास में यह ग्वालियर की लड़ाई के नाम से वर्णित है. लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद अग्रेजों ने अगले तीन दिन में ही किले पर कब्जा कर लिया।

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