कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।
इस मंत्र का एक साथ अर्थ होता है। जो कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं जो अपने गले में भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है । यह मंत्र प्रतिदिन अवश्य सुनें
DVT-2911
इसका मंत्र अर्थ इस प्रकार से है।
कर्पूरगौरं: अर्थात् कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले ।
करुणावतारं: करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं ।
संसारसारं: समस्त सृष्टि के जो सार हैं ।
भुजगेंद्रहारम्: जो गले में भुजगेंद्र अर्थात् सर्पों की माला धारण करते हैं।
सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है ।
इस मंत्र का एक साथ अर्थ होता है। जो कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं जो अपने गले में भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।
इस मंत्र में भगवान शिवजी की स्तुति की गई हैं । कहा जाता है कि इस मंत्र का उच्चारण भगवान विष्णु ने शिव जी की प्रशंसा में किया था।
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सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।
इस मंत्र का एक साथ अर्थ होता है। जो कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं जो अपने गले में भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है । यह मंत्र प्रतिदिन अवश्य सुनें
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इसका मंत्र अर्थ इस प्रकार से है।
कर्पूरगौरं: अर्थात् कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले ।
करुणावतारं: करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं ।
संसारसारं: समस्त सृष्टि के जो सार हैं ।
भुजगेंद्रहारम्: जो गले में भुजगेंद्र अर्थात् सर्पों की माला धारण करते हैं।
सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है ।
इस मंत्र का एक साथ अर्थ होता है। जो कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं जो अपने गले में भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।
इस मंत्र में भगवान शिवजी की स्तुति की गई हैं । कहा जाता है कि इस मंत्र का उच्चारण भगवान विष्णु ने शिव जी की प्रशंसा में किया था।
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