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Kamada Ekadashi Vrat Katha | कामदा एकादशी व्रत कथा | Kamada Ekadashi 2023 | Ekadashi Ki Kahani
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चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को कामदा एकादशी के रूप में जाना जाता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि जिस एकादशी तिथि के व्रत से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाए उसे कामदा एकादशी कहते हैं। एकादशी का व्रत भगवान नारायण के निमित्त रखा जाता है।

कामदा एकादशी व्रत कथा:

प्राचीन काल में एक रत्नपुर राज्य था। जिसका राजा पुंडरीक था। वह धन एवं ऐश्वर्य से युक्त था. उसके ही राज्य में ललित और ललिता नाम के स्त्री और पुरुष रहते थे। दोनों एक दूसरे से बेहद प्रेम करते थे। एक बार राजा पुंडरीक की सभा में ललित अन्य कलाकारों के साथ गाना गा रहा था। उसी दौरान ललिता को देखकर उसका ध्यान भंग हो गया और वह स्वर बिगड़ गया।

यह बात राजा पुंडरीक को पता चली तो उसने ललित को मनुष्यों और कच्चा मांस खाने वाला राक्षस बनने का श्राप दे दिया। उसके प्रभाव से ललित एक राक्षस बन गया। उसका शरीर आठ योजन का हो गया। उसका जीवन कष्टकारी हो गया। वह जंगल में रहने लगा। उधर उसकी पत्नी ललिता दुखी हो गई और वह ललित के पीछे पीछे दौड़ती रहती थी।

एक दिन ललिता घूमते हुए विंध्याचल पर्वत पर श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई, जहां पर वह मुनिवर से प्रार्थना करने लगी। श्रृंगी ऋषि ने उसके आने का कारण पूछा, तो उसने सारी बात उनको बताई। तब श्रृंगी ऋषि ने कहा कि तुम कामदा एकादशी का व्रत रखो और उसका पुण्य अपने पति को दे दो। वह जल्द ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा।

तब श्रृंगी ऋषि के बताए अनुसार उसने चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत किया और अगले दिन द्वादशी को पारण करके व्रत को पूरा किया। फिर उसने भगवान से प्रार्थना की कि वह इस व्रत का पुण्य अपने पति को देती है ताकि वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए। भगवान विष्णु की कृपा से उसका पति ललित राक्षस योनि से मुक्त हो गया। दोनों पहले की तरह रहने लगे और एक दिन विमान पर बैठकर स्वर्ग लोग चले गए।

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