Tum Mujhko Kab Tak Rokoge

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मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं।
दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं… कुछ कर जाएं
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सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे।
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे…

अपनी हद रौशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे…
तुम मुझको कब तक रोकोगे…

मैं उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है…
मैं उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है …

बंजर माटी में पलकर मैंने…मृत्यु से जीवन खींचा है…
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ… मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ ..

शीशे से कब तक तोड़ोगे..मिटने वाला मैं नाम नहीं…
तुम मुझको कब तक रोकोगे… तुम मुझको कब तक रोकोगे...

इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है…
इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है ….

तानों के भी शोर में रहकर सच कहने की आदत है...
मैं सागर से भी गहरा हूँ.. मैं सागर से भी गहरा हूँ…

तुम कितने कंकड़ फेंकोगे, चुन-चुन कर आगे बढूँगा मैं…
तुम मुझको कब तक रोकोगे…तुम मुझको कब तक रोकोगे..

झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शौक नहीं..
झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शौक नहीं..

अपने ही हाथों रचा स्वयं.. तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं…
तुम हालातों की भट्टी में… जब-जब भी मुझको झोंकोगे…

तब तपकर सोना बनूंगा मैं… तुम मुझको कब तक रोकोगे…
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे…

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