सेवक खतरनाक सिद्ध होते हैं। क्योंकि सब सेवा अहंकार-अर्पित हो जाती है।

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सेवक तो बहुत हैं दुनिया में; उनकी बात नहीं कर रहे हैं। सेवक जरूरत से ज्यादा हैं! हमेशा हाथ जोड़े खड़े रहते हैं कि सेवा का कोई अवसर। लेकिन जरा सोच-समझकर सेवा का अवसर देना। क्योंकि जो आदमी पैर पकड़ता है, वह सिर्फ गर्दन पकड़ने की शुरुआत है। जब भी कोई कहे, सेवा के लिए तैयार हूं, तब कहना, इतनी ही कृपा करो कि सेवा मत करो। क्योंकि पैर तुम पकड़ोगे, फिर गर्दन हम कैसे छुड़ाएंगे? और अगर आपने पैर पकड़ने दिया और गर्दन न पकड़ने दी,

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