Shivashtakam | शिवाष्टकम् | Shiva Stotram | प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं | Prabhum Pran Natham @Mere Krishna
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श्री शिव अष्टकम के लाभ
• श्री शिव अष्टकम का पाठ करने से मनुष्य के सारे कष्टों का निवारण होता है
• श्री शिव अष्टकम का पाठ करने से मनुष्य के जीवन में सुख समृद्धि का वास होता है
• यह पाठ बहुत शक्तिशाली पाठ माना जाता है
• यह पाठ करने से सब मनोकामना की पूर्ति होती है
• इस पाठ का फल थोड़े समय में ही मिल जाता है
श्री शिव अष्टकम
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथ नाथं सदानन्द भाजाम् ।
भवद्भव्य भूतॆश्वरं भूतनाथं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 1 ॥
गलॆ रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणॆशाधिपालम् ।
जटाजूटगङ्गॊत्तरङ्गैर्विशालं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 2॥
मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महा मण्डलं भस्म भूषाधरं तम् ।
अनादिह्यपारं महामॊहमारं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 3 ॥
वटाधॊ निवासं महाट्टाट्टहासं महापाप नाशं सदा सुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणॆशं महॆशं सुरेशं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 4 ॥
गिरिन्द्रात्मजा सङ्गृहीतार्धदॆहं गिरौ संस्थितं सर्वदासन्नगॆहम् ।
परब्रह्मब्रह्मादिभिर्वन्द्यमानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 5 ॥
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भॊज नम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 6 ॥
शरच्चन्द्र गात्रं गणानन्दपात्रं त्रिनॆत्रं पवित्रं धनॆशस्य मित्रम् ।
अपर्णा कलत्रं चरित्रं विचित्रं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 7 ॥
हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वॆदसारं सदा निर्विकारं।
श्मशानॆ वसन्तं मनॊजं दहन्तं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 8 ॥
स्तवं यः प्रभातॆ नरः शूल पाणॆ पठॆत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः ।
स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कलत्रं विचित्रं समासाद्य मॊक्षं प्रयाति ॥
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श्री शिव अष्टकम के लाभ
• श्री शिव अष्टकम का पाठ करने से मनुष्य के सारे कष्टों का निवारण होता है
• श्री शिव अष्टकम का पाठ करने से मनुष्य के जीवन में सुख समृद्धि का वास होता है
• यह पाठ बहुत शक्तिशाली पाठ माना जाता है
• यह पाठ करने से सब मनोकामना की पूर्ति होती है
• इस पाठ का फल थोड़े समय में ही मिल जाता है
श्री शिव अष्टकम
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथ नाथं सदानन्द भाजाम् ।
भवद्भव्य भूतॆश्वरं भूतनाथं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 1 ॥
गलॆ रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणॆशाधिपालम् ।
जटाजूटगङ्गॊत्तरङ्गैर्विशालं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 2॥
मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महा मण्डलं भस्म भूषाधरं तम् ।
अनादिह्यपारं महामॊहमारं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 3 ॥
वटाधॊ निवासं महाट्टाट्टहासं महापाप नाशं सदा सुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणॆशं महॆशं सुरेशं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 4 ॥
गिरिन्द्रात्मजा सङ्गृहीतार्धदॆहं गिरौ संस्थितं सर्वदासन्नगॆहम् ।
परब्रह्मब्रह्मादिभिर्वन्द्यमानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 5 ॥
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भॊज नम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 6 ॥
शरच्चन्द्र गात्रं गणानन्दपात्रं त्रिनॆत्रं पवित्रं धनॆशस्य मित्रम् ।
अपर्णा कलत्रं चरित्रं विचित्रं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 7 ॥
हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वॆदसारं सदा निर्विकारं।
श्मशानॆ वसन्तं मनॊजं दहन्तं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 8 ॥
स्तवं यः प्रभातॆ नरः शूल पाणॆ पठॆत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः ।
स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कलत्रं विचित्रं समासाद्य मॊक्षं प्रयाति ॥
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