हर पल को पूरा जीने' का भोगवादी आदर्श || आचार्य प्रशांत, पिंगलागीता पर (2020)

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वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग, 30.03.20, अद्वैत बोध शिविर, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत

प्रसंग:
नष्टे धने वा दारे वा पुत्रे पितरि वा मृते।
अहोदुःखमिति ध्यायञ्शोकस्यापचितिं चरेत्।।

जब धन नष्‍ट हो जाय अथवा स्‍त्री, पुत्र या पिता की मुत्‍यु हो जाय, तब ‘ओह, संसार कैसा दुखमय है’ यह सोचकर मनुष्‍य शोक को दूर करने वाले शम – दम आदि साधनों का अनुष्‍ठान करे।
~पिंगलागीता (श्लोक ७)

~ शमन-दमन आदि साधनों से क्या आशय है?
~ "किसी भी पल को पूरा जीना चाहिए" इससे क्या तात्पर्य है?
~ हर पल को पूरा कैसे जीएँ?
~ जब शोक बहुत सताए तो क्या करें?


संगीत: मिलिंद दाते
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