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वीडियो जानकारी: 22.02.2024, भगवद् गीता, ग्रेटर नोएडा

प्रसंग:
काङ्‌क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः ।
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा ।।
~ भगवद् गीता - 4.12

प्रकृति को जो पूजोगे
पदार्थ ही तुम पाओगे
काम पूरे हो जाएंगे
अधूरे तुम रह जाओगे
(आचार्य प्रशांत द्वारा काव्यात्मक अर्थ)


~ सत, रज, तम का अर्थ क्या है?
~ हमारी कामनाएँ पूरी क्यों नहीं होतीं?
~ राजसिक लोगों के गुण क्या हैं?
~ सात्विक लोगों के गुण क्या हैं?
~ भौतिक ज्ञान साधना में आवश्यक हैं?

संगीत: मिलिंद दाते
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