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वीडियो जानकारी: 20.10.23, अष्टावक्र गीता, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
अष्टावक्र गीता - 9.3

अनित्यं सर्वमेवेदं तापत्रितयदूषितम् ।
असारं निन्दितं हेयमिति निश्चित्य शाम्यति ॥

अर्थ:
तीनों तरह के तापों से ग्रस्त है ये जगत, अनित्य है, असार है, हीन है, त्याज्य है।
ऐसा निश्चय करके ज्ञानी शांति को प्राप्त होता है।

माया छोड़न सब कहे, माया छोड़ी न जाय।
छोड़न की जो बात करूँ, बहुत तमाचा खाय ॥
संत कबीर

~ ऋषि किसे त्यागने के लिए कह रहे हैं?
~ जगत बंधन है या मुक्ति का अवसर, यह किस पर निर्भर करता है?
~ संसार के साधनों का सार्थक उपयोग क्या है?
~ सुख किसे कहते हैं?
~ जगत क्या है?
~ क्यों कोई वस्तु हीन या श्रेष्ठ नहीं होती? वस्तुओं से हमारा रिश्ता कैसा होना चाहिए?

संगीत: मिलिंद दाते
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