वीडियो जानकारी: 26.10.24, गीता दीपोत्सव, ग्रेटर नॉएडा
(गीता-47) बुरी है बिना ज्ञान के कामना, और बुरा है बिना ज्ञान के त्यागना || आचार्य प्रशांत (2024)
📋 Video Chapters:
0:00 - Intro
1:03 - भगवद् गीता का सरल काव्यात्मक अर्थ
03:41 - भगवद् गीता अध्याय 5, श्लोक 6
07:02 - धर्म की शुरुआत और कामना का दमन
14:07 - श्री कृष्ण की गीता का महत्व
18:17 - धार्मिकता और पाखंड (Hypocrisy)
28:44 - कामना का दमन, दुख और पाखंड
36:43 - आश्रम व्यवस्था और दमन गुरु
48:26 - कर्म योग, आत्मज्ञान और त्याग
57:58 - विकृत धर्म का पाखंड
1:02:53 - बिना जाने कामना का दमन
1:10:36 - लोक धार्मिक डरों से आज़ादी
1:16:15 - आत्मा की अभिव्यक्ति
1:21:27 - कामना के दमन का दुख
1:27:30 - महिलाओं में लोक धर्म की मानसिकता
1:35:27 - आत्मस्त हो जाना ही योग है
1:38:58: काव्यात्मक अर्थ और समापन
विवरण:
इस वीडियो में आचार्य प्रशांत ने धर्म, इच्छाओं और आध्यात्मिकता के वास्तविक अर्थ पर चर्चा की है, जिसे भगवद गीता के तीसरे और पांचवें अध्याय में समझाया गया है। वे पारंपरिक धर्म की आलोचना करते हैं, जो अक्सर suppression (दमन) और renunciation (त्याग) पर जोर देता है, जिससे पाखंड और मानसिक तनाव बढ़ता है। आचार्य जी बताते हैं कि श्रीकृष्ण की शिक्षाएं desires को suppress करने के बजाय उन्हें समझने और स्वाभाविक रूप से transcend (अतिक्रमण) करने पर आधारित हैं।
उन्होंने निष्काम कर्म (selfless action) और आत्म-ज्ञान को धर्म का मूल बताया, जो व्यक्ति को भय से मुक्त करता है, न कि उसे डराता है। व्यावहारिक उदाहरणों के माध्यम से, आचार्य जी दिखाते हैं कि कैसे blind adherence (अंधानुकरण) नैतिकता और धर्म के नाम पर इंसान को पाखंड और आंतरिक संघर्ष की ओर ले जाता है।
यह वीडियो समाज में prevalent (व्याप्त) धार्मिकता और बाहरी दिखावे के विरोध में है और असली आध्यात्मिकता की ओर ले जाने वाले clarity (स्पष्टता) और freedom (मुक्ति) के महत्व पर जोर देता है। आचार्य प्रशांत गीता के ज्ञान को आधुनिक जीवन में प्रासंगिक बनाते हुए viewers को धर्म की गहराई और श्रीकृष्ण की सच्ची शिक्षाओं को अपनाने का आह्वान करते हैं।
🎧 सुनिए #आचार्यप्रशांत को Spotify पर:
https://open.spotify.com/show/3f0KFwe...
(गीता-47) बुरी है बिना ज्ञान के कामना, और बुरा है बिना ज्ञान के त्यागना || आचार्य प्रशांत (2024)
📋 Video Chapters:
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1:03 - भगवद् गीता का सरल काव्यात्मक अर्थ
03:41 - भगवद् गीता अध्याय 5, श्लोक 6
07:02 - धर्म की शुरुआत और कामना का दमन
14:07 - श्री कृष्ण की गीता का महत्व
18:17 - धार्मिकता और पाखंड (Hypocrisy)
28:44 - कामना का दमन, दुख और पाखंड
36:43 - आश्रम व्यवस्था और दमन गुरु
48:26 - कर्म योग, आत्मज्ञान और त्याग
57:58 - विकृत धर्म का पाखंड
1:02:53 - बिना जाने कामना का दमन
1:10:36 - लोक धार्मिक डरों से आज़ादी
1:16:15 - आत्मा की अभिव्यक्ति
1:21:27 - कामना के दमन का दुख
1:27:30 - महिलाओं में लोक धर्म की मानसिकता
1:35:27 - आत्मस्त हो जाना ही योग है
1:38:58: काव्यात्मक अर्थ और समापन
विवरण:
इस वीडियो में आचार्य प्रशांत ने धर्म, इच्छाओं और आध्यात्मिकता के वास्तविक अर्थ पर चर्चा की है, जिसे भगवद गीता के तीसरे और पांचवें अध्याय में समझाया गया है। वे पारंपरिक धर्म की आलोचना करते हैं, जो अक्सर suppression (दमन) और renunciation (त्याग) पर जोर देता है, जिससे पाखंड और मानसिक तनाव बढ़ता है। आचार्य जी बताते हैं कि श्रीकृष्ण की शिक्षाएं desires को suppress करने के बजाय उन्हें समझने और स्वाभाविक रूप से transcend (अतिक्रमण) करने पर आधारित हैं।
उन्होंने निष्काम कर्म (selfless action) और आत्म-ज्ञान को धर्म का मूल बताया, जो व्यक्ति को भय से मुक्त करता है, न कि उसे डराता है। व्यावहारिक उदाहरणों के माध्यम से, आचार्य जी दिखाते हैं कि कैसे blind adherence (अंधानुकरण) नैतिकता और धर्म के नाम पर इंसान को पाखंड और आंतरिक संघर्ष की ओर ले जाता है।
यह वीडियो समाज में prevalent (व्याप्त) धार्मिकता और बाहरी दिखावे के विरोध में है और असली आध्यात्मिकता की ओर ले जाने वाले clarity (स्पष्टता) और freedom (मुक्ति) के महत्व पर जोर देता है। आचार्य प्रशांत गीता के ज्ञान को आधुनिक जीवन में प्रासंगिक बनाते हुए viewers को धर्म की गहराई और श्रीकृष्ण की सच्ची शिक्षाओं को अपनाने का आह्वान करते हैं।
🎧 सुनिए #आचार्यप्रशांत को Spotify पर:
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