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Transcripción
00:00पिता और पुत्र इससे जटिल रिष्टा संसार में है कोई और
00:06मेरे पिता मुझे अपने से तूर ना करते
00:10तो मैं ये युद कभी आरम्भ ना होने देता
00:14उन्हें अपनी वासना का तास ना बनने देता
00:18तो मैं ये युद कभी आरम्भ ना होने देता
00:22तो मैं ये युद कभी आरम्भ ना होने देता
00:26उन्हें अपनी वासना का तास ना बनने देता
00:30लंका को धूधूखर चलने ना देता
00:34पर एक सत्य ये भी है कि उस दिन लंका में आग ना लगती
00:40तो उसकी ताप से निकला वो अन्मोल रतन मुझे ना मिल पाता
00:47कहते हैं उस आग की लप्टे इतनी प्रचंड थी
00:50कि देवताओं के भी वसीने छूट गय थे
00:53और देह दिव्य शक्ती का महसागर हो तो उस से डबकी एक पूंध भी
00:58ब्रह्मान्ड बदल सकती है
01:01बंजर में जीवन का बीज बो सकती है
01:06ऐसा तम तमाता तेज मेरी आखों से भला कैसे छूटा
01:10इस रतन की जग है सागर में नहीं
01:13मेरे साथ थी
01:15पातालोक में दिन महीने बन सकते हैं
01:19और वर्ष शतवर्ष
01:21और जब समय की करमाहट साथ हो
01:25तो जडिल से जडिल रिष्टा भी
01:28शक्ति शाली बनाए जा सकता है
01:31जैसे की मेरा और हनुमान के पुत्र का
01:58जैसे की मेरा और हनुमान के पुत्र का
02:28असंभव, कौन हो तुम?
02:31मकर धुआज, कपिराज हनुमान का पुत्र
02:59हनुमान का कोई पुत्र नहीं
03:02होता तो सबसे पहले मुझे ग्यान होता
03:05मेरी बात सुनो, अहिरावन ने जुट कहा है तुमसे
03:10वो ऐसा जुट क्यों बोलेंगे?
03:13मेरी गड़ा भी उससे यही पूछना चाहती है
03:16अब हटो मेरे मारक से
03:19और लोगों को अपने पिता का असत्य नाम बदाना बंद करो
03:23मैं सत्य कह रहा हूँ
03:25मेरे पिता का नाम है हनुमान
03:49पूछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी उससे यही पूछना चाहती है
04:19अब कुछ देर यही आराम करो
04:25तब तक मैं पातालो के स्वामी को उसकी बिल से निकालता हूँ
04:39पर मिलेगा कहाँ ये अहिरावन
04:43तुमने मन से पुकारा और मैं आ गया हनुमान
04:51पूछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी उससे यही पूछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी उससे यही बिल से निकालता हूँ
05:21पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी उससे यही पूछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी उससे यही बिल से निकालता हूँ
05:51पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी उससे यही बिल से निकालता हूँ
06:21पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
06:31पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
06:41पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
06:51पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
07:01पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
07:11पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
07:21पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
07:31पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
07:41पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
07:51पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
08:01पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
08:11पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
08:21पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
08:31पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
08:41पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
08:51पुछना चाहती है अब हटो मेरी गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
09:01गड़ा भी यही बिल से निकालता हूँ
09:16मार्ग का पत्थर ना हिले, तो दूसरा मार्ग अपना लेना चाहिए।
09:33ये मेरा सामराज्य है हनुमान।
09:36इधर मैं पत्थर नहीं परबत हूँ।
09:47सर्वशक्ति शाली हूँ।
09:52मैं बातालोक का स्वामी नहीं।
09:57ये कैसे?
09:59स्वयर बातालोक हूँ।
10:16एक हड़ी का हूँ। उपर से बिमार। मुझे खाने से अच्छा है। तुम जहर खालो।
10:47देखा कितना दुरबल।
10:53बात तो सही है इसकी। दुरबल तो अवश्य दिखता है। कवज के नीजे कंकाल होगा बस।
11:02तली हुई बुढ्धी हड़ियों का भी अपना स्वाद होता है।
11:08और स्वाद में विविद्धा होनी चाहिए। कभी रीच तो कभी हिरण।
11:16कभी अपसरा, कभी मानव। पर जानते हो सबसे रसीला मास किसका होता है।
11:25वानर खाया है कभी। पूच का स्वाद तो पूचो ही मत। अभी कहीं से किसी तरह एक वानर हात लग जाता तो।
11:42तथास तू मुझे खाने के बारे में क्या विचार है?
11:49विचार है कि अचार के साथ खाएंगे।
12:11चलो अच्छा हुआ, बातना नहीं पड़ेगा। सोच रहा हूं तुम्हें भून कर खाओ या कच्चा?
12:35पर चबाओगे कैसे?
12:41बिना दान तुमके? मुझे खाएगा? गरम तेल में तलेगा?
12:48बस!
12:50मारोगे नहीं इन्हें?
12:52नहीं, और ना तुम मारोगे।
13:05मेरा नाम हनुमान है।
13:07मैं हर्षशिंग, मित्रों के लिए हर्ष,
13:09और तुमने तो मेरे प्राण बचाए.
13:12तो तुम मेरे मित्र हुए न?
13:15लेकिन खुले आकाश में छलांगे लगाने वाला वानर,
13:19यहाँ इस गहराई में?
13:21पाताल की सैर पर तो नहीं आयोगे तुम?
13:25नहीं.
13:27एक और वीर, खोजने आया और स्वहम खो गया.
13:31अहिरावन ने देख लिया तो पाताल लोग से सीधा यमलोग पहुचा देगा.
13:35देख चुका है और पटक पटक कर फैंक भी चुका है.
13:38पर उसकी माया का कोई ना कोई तोड तो होगा.
13:41नहीं है.
13:43लेकिन अगर तुम्हें मरने का इतना ही मन है,
13:44तो अहिरावन उस और मिलेगा.
13:54मार्क दर्शक साथ हो तो खोज सरल हो जायेगी.
13:58ले देकर मेरे पास कुछ बचा है तो बस मेरा ये चोटा सा जीवन.
14:02मुझे तुम अपने पागल पन से दूरी रखो.
14:14ये क्या कर रहे हो?
14:16हर्ष, कितना समय हो गया तुम्हें यहाँ फ़से हुए?
14:19इतना कि अब समय का कोई अनुमान नहीं रहा.
14:22घर लोटने का मन नहीं करता?
14:25मेरा...
14:27मेरा कोई घर नहीं है.
14:29पाताल लोग से निकलने का मन तो करता होगा?
14:31मैं खोली आंकों से सबने नहीं देखता हूँ.
14:34मैं तुम्हारी साहता कर सकता हूँ.
14:50मैं आपकी क्या साहता कर सकता हूँ महराज?
14:53आप संदेश बज़वा देते अपने आने का, तो मैं पहले से ही...
14:57मुझे किसी को पूछने या बताने की आवशक्ता नहीं.
14:59शमा महराज, मेरा ये अर्थने...
15:02तुम मेरे पुत्र के निष्ठावान सेवक थे, उसके घर का पूरा ध्यान रखा तुमने.
15:07पराज एंद्रजीत, वो मेरे लिए सब कुछ थे.
15:12मेरे लिए भी.
15:15उसके रहते यहां कभी नहीं आया मैं.
15:17उसकी रसवी का भोजन नहीं चका.
15:20पहले समबन्दों के लिए समय नहीं था.
15:23आज समय है तो...
15:25समबन्द नहीं बचे.
15:27कितना कुछ था जो अपने पुत्र से कहना चाता था, पर...
15:32वो... वो समझते थे महराज.
15:34आपकी पोजा करते थे.
15:35अब मैं उसके प्रेम का रिन चुकाऊंगा.
15:38उसके हत्यारों पर अपनी घणा बरसा कर.
15:43इंद्रजीत के अस्तर शास्त्र...
15:46ले कर आओ.
15:48कौन से महराज?
15:50सारे के सारे.
15:52कुछ और भी है यहाँ महराज.
15:54कुछ बहुत शक्ति शाली.
15:56इन अस्तरों जितना?
15:57राजकुमार इसे बहुत समय से बना रहे थे.
16:00अपने हातों से.
16:02आपको भेट करना चाहते थे.
16:04पर उससे पहले ही...
16:06कैसी भेट?
16:08एक युध कवच.
16:10लंकेश के योग्या.
16:12दिखाओ मुझे.
16:18बुद्धी प्रश्ट हो गई है मेरी,
16:19जो मैं तुम्हारी बातों में आ गया.
16:21साहिता के लिए तुम्हारा धन्यवाद हर्षिशिंग.
16:24किन्टु इससे पहले कि आहिरावन राजकुमारों को कोई हानी पहुचाए,
16:28मुझे उन तक पहुचना होगा.
16:30वैसे तुम यहाँ आय कैसे?
16:32क्यूंकि और कोई जगा नहीं जो स्विकारेगी एक कायर को.
16:37कायर?
16:39वर्षों पहले की बात है, तब मैं एक बगवडा कायर नहीं,
16:44एक रक्षक था, राज सेना का सेनापती था.
16:47जन्म एक चोटे घर में हुआ, पर मेरी युद्ध कला ने मुझे राज्य का सबसे बड़ा नाम बना दिया.
16:54मेरी तलवार की छाया में, मेरे महराज और उनकी प्रजा चैन की नील सोते हैं.
17:02मेरी बुजायं और तलवार महराज की सेवक थी,
17:05परन्तो एक राजकुमारी और एक आम युद्धा का क्या मिल?
17:09ना मेरे पास उंचे परिवार का नाम था और ना धन संपत्ती.
17:13उसे देने के लिए मेरे पास कुछ था तो, बस मेरा साहस.
17:18राख्श सेना की लूट पाट बढ़ने लगी थी.
17:21पर एक दिन मेरे भाग्या ने मुझे धोका दे ही दिया.
17:26राख्शसों का एक और आम युद्धा का क्या मिल?
17:30ना मेरे पास उंचे परिवार का नाम था और ना धन संपत्ती.
17:34उसे देने के लिए मेरे पास कुछ था तो, बस मेरा साहस.
17:38पर एक दिन मेरे भाग्या ने मुझे धोका दे ही दिया.
17:43राख्शसों का एक और आक्रमन.
17:46मेरी पल्टन की एक और विजय.
17:49आज भी याद है मुझे.
17:51वो बुढ़े वैपारी.
17:53उनका आभार.
17:55उनका अशिर्वाद.
17:57उनसे भेंट में मिला वो कंगन.
17:59उस राथ कहने को सब कुछ पहले जैसा था.
18:04पर मेरे भीतर कुछ तो परिवर्टन हो रहा था.
18:08एक बिचेनी सी थी.
18:11और तब ही हमने उन्हें देखा.
18:15सैंकडों राख्शस हमारी ओर बढ़ते हुए.
18:19उनका वद करने के लिए मेरा क्रोध ही परियाप्त था.
18:22पर अंतो उस राथ, उस राथ उन्हें देकर जिस भावने घेरा, वो क्रोध नहीं, भै था.
18:34अपनी सुद्भुत खोकर, भै से कांपता मैं ऐसा भागा के तर, तर नहीं रुका.
18:43मेरे साथियोंने मुझे भगोडा बुलाया तब भी नहीं.
18:47जब वो मेरे महाराज, मेरी राजकुमारी की और शत्रों के साथ बढ़े, तब भी नहीं.
18:56तूटा, हारा, कब कैसे इदर पहुँच गया, पता ही नहीं चला.
19:01तूटा, हारा, कब कैसे इदर पहुँच गया, पता ही नहीं चला.
19:08तुम्हारी कहानी दुख भरी है, पर हो सकता है इसी दुख के मार्ग पर चल कर तुम्हें जीवन का एक नया उदेशे मिले, जैसे मुझे मिला.
19:18उदेशे, भगोडे पीड दिखाते हैं, उदेशे की और पैर नहीं बढ़ाते हैं.
19:25मैं अब कुछ चानता समझता हूँ तो मात्र भै, अपनी परच्छाई तक से भैबित हो जाता हूँ.
19:32बड़े से बड़ा योद्धा भैबित होता है, हर्ष.
19:35पर जो भैसे आगे बढ़ अपनी भूल से सीखता है, वही सच्चा वीर कहलाता है.
19:41देखना, जब श्रीराम से मिलोगे, तो अपने खोय हुए साहस को अपने अंदर ही ढून लोगे.
19:47मुझसे कोई अपेक्षा मत रखना, हनुमान.
19:50बुरे समय में लढखडा जाओंगा.
19:53हमें डटे रहना होगा, हर्ष विश्रिंग.
19:55समय कम है और दाम पर बहुत कुछ.
19:58राजकुमार लंका न पहुँचे तो बानर अकेले पढ़ जाएंगे, रावन के सामने.
20:02ब्रम्मान के ताने बाने में, मैं अपनी तलवार से विनाश और मृत्यू के धागे बुनता हूँ.
20:14पर हर मृत्यू एक समान नहीं होती.
20:20लंका में घुसे हत्यारे नियाय चाहते हैं.
20:24अपने लोगों की मृत्यू का.
20:26पर उनकी हर चीक, हर पीड़ा की पुकार, मात्र फुस्पुसाहट हैं.
20:33मेरे भीतर उमड़ती आंधी के सामने.
20:36इंद्रजीत की मृत्यू के सामने.
20:41मेरा पुत्र छीना इन्होंने मुझसे.
20:45अब ये रावन की तवार सुनेंगे.
20:47पुत्र... सुनसक्ते हो.
20:56मेरे पुत्र सुनसकते हो.
20:59मेरे साउख सुचा.
21:00अपना एसारे मेरा सुचा.
21:02पुतर, सुन सक्ते हो मेरी पुकार,
21:06केवल तुम मेरी रखशा कर सकते हो.
21:09इस उपुत्रवी वानर ने मेरे पाताल लोक की शांती भंग कर दी है।
21:13मेरे बनाई इस सुखीराज्य को वो उजाड देगा.
21:17केवल तुम मेरी रख्षा कर सकते हो।
21:20इस उपद्रवी वानर ने मेरे पाताल लोग की शान्ती भंग कर दी है।
21:25मेरे बनाए इस सुखी राज्य को वो उजाड देगा।
21:30यदि तुमने उसे रोगा नहीं।
21:33यदि तुमने उसे मारा नहीं।
21:36पिताजी मैं करूँगा आपकी रख्षा।
21:40मैं मारूंगा इस वानर को।

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