वीडियो जानकारी: 19.08.2024, गीता समागम, ग्रेटर नोएडा
विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने ज्ञान, आत्मज्ञान और भक्ति के संबंध में गहन विचार प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने दो सूत्रों का उल्लेख किया है: "न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते" और "कालेनात्मनि विन्दति।" आचार्य जी ने बताया कि ज्ञान के बिना भक्ति अधूरी है और भक्ति का वास्तविक अर्थ समझने के लिए आत्मज्ञान आवश्यक है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि लोग अक्सर अपने अनुभवों को सत्य मान लेते हैं, जबकि अनुभव और ज्ञान में अंतर है। आचार्य जी ने बताया कि अहंकार के रहते हुए सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि भक्ति और ज्ञान का संबंध एक गहरे स्तर पर है, और केवल भक्ति के नाम पर जो किया जाता है, वह अक्सर भौतिकता और स्वार्थ से भरा होता है।
आचार्य जी ने यह भी बताया कि भारतीय संस्कृति में भक्ति को बहुत महत्व दिया जाता है, लेकिन यह अक्सर भौतिकता से प्रभावित होती है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सच्चा ज्ञान और आत्मज्ञान ही व्यक्ति को वास्तविक मुक्ति दिला सकते हैं।
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति ॥
~भगवद् गीता 4.38
काल को देखो अहम को जानो, अवलोकन ही आत्मस्नान है।
(आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ)
~भगवद गीता 4.38
आग दहके पर धुएँ से प्रकाश ढक सा जाता है काम भरा जब आँख में, सच नज़र नहीं आता है।
(आचार्य प्रशांत द्वाटा काव्यात्मक अर्थ)
~भगवद् गीता 3.38
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः ।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ।।
~भगवद् गीता 2.12
राम निरंजन न्यारा रे,अंजन सकल पसारा रे।
~संत कबीर
अमरपुर ले चलो सजना।
~संत कबीर
🎧 सुनिए #आचार्यप्रशांत को Spotify पर:
https://open.spotify.com/show/3f0KFweIdHB0vfcoizFcET?si=c8f9a6ba31964a06
विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने ज्ञान, आत्मज्ञान और भक्ति के संबंध में गहन विचार प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने दो सूत्रों का उल्लेख किया है: "न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते" और "कालेनात्मनि विन्दति।" आचार्य जी ने बताया कि ज्ञान के बिना भक्ति अधूरी है और भक्ति का वास्तविक अर्थ समझने के लिए आत्मज्ञान आवश्यक है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि लोग अक्सर अपने अनुभवों को सत्य मान लेते हैं, जबकि अनुभव और ज्ञान में अंतर है। आचार्य जी ने बताया कि अहंकार के रहते हुए सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि भक्ति और ज्ञान का संबंध एक गहरे स्तर पर है, और केवल भक्ति के नाम पर जो किया जाता है, वह अक्सर भौतिकता और स्वार्थ से भरा होता है।
आचार्य जी ने यह भी बताया कि भारतीय संस्कृति में भक्ति को बहुत महत्व दिया जाता है, लेकिन यह अक्सर भौतिकता से प्रभावित होती है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सच्चा ज्ञान और आत्मज्ञान ही व्यक्ति को वास्तविक मुक्ति दिला सकते हैं।
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति ॥
~भगवद् गीता 4.38
काल को देखो अहम को जानो, अवलोकन ही आत्मस्नान है।
(आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ)
~भगवद गीता 4.38
आग दहके पर धुएँ से प्रकाश ढक सा जाता है काम भरा जब आँख में, सच नज़र नहीं आता है।
(आचार्य प्रशांत द्वाटा काव्यात्मक अर्थ)
~भगवद् गीता 3.38
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः ।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ।।
~भगवद् गीता 2.12
राम निरंजन न्यारा रे,अंजन सकल पसारा रे।
~संत कबीर
अमरपुर ले चलो सजना।
~संत कबीर
🎧 सुनिए #आचार्यप्रशांत को Spotify पर:
https://open.spotify.com/show/3f0KFweIdHB0vfcoizFcET?si=c8f9a6ba31964a06
Category
📚
Learning