वीडियो जानकारी:
विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने कर्म और कर्म संन्यास के बीच के संबंध को समझाया है। उन्होंने बताया कि मुक्त पुरुष कुछ नहीं करता, लेकिन सब कुछ अपने आप हो जाता है। यह स्थिति तब आती है जब व्यक्ति प्रकृति के साथ एक हो जाता है। आचार्य जी ने अर्जुन और श्री कृष्ण के संवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि कर्म का महत्व कर्ता के महत्व से कम है। जब व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त करता है, तो वह निष्काम कर्म की ओर बढ़ता है, जिसका अर्थ है कि वह अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए कार्य करता है। कर्म संन्यास तब आता है जब व्यक्ति अपनी कामनाओं से मुक्त हो जाता है। आचार्य जी ने यह भी बताया कि कर्म संन्यास का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति कर्म नहीं करता, बल्कि वह अपने लिए कुछ नहीं करता।
प्रसंग:
~मुक्त पुरुष कौन होता है?
~निष्काम कर्म का क्या महत्व है?
~कर्म और कर्ता के बीच का संबंध क्या है?
~कर्म और कर्म संन्यास के बीच का अंतर क्या है?
~अर्जुन और श्री कृष्ण के संवाद से हमें क्या सीखने को मिलता है?
श्लोक:
अर्जुन उवाच संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।
यच्छ्रेय एतयोरेके तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥
~भगवद् गीता - 5.1
अर्जुन ने कहा- है कृष्ण! आप पहले कर्मसंन्यास की और अब कर्मयोग की प्रशंसा कर रहे हैं।
इन दोनों में जो अधिक श्रेयस्कर है उसे मेरे लिये निश्चयपूर्वक बताइए।
भगवद् गीता - 5.1
श्रीभगवान ने कहा, कर्मसंन्यास और कर्मयोग दोनों ही श्रेयस्कारी हैं।
परंतु उन दोनों में कर्मसंन्यास की अपेक्षा कर्मयोग श्रेष्ठ है।
~भगवद् गीता - 5.2
"The Master does nothing, yet he leaves nothing undone."
~ LAO TZU
कबीर कुत्ता राम का, मुतिया मेरा नाऊँ।
गलै राम की जेवड़ी, जित बैंचे तित जाऊँ ॥
~ संत कबीर
बिनु पद चलड़ सुनइ बिनु काना ।
कर बिनु करम करह बिधि नाना ॥
~बालकाण्ड, श्रीरामचरितमानस
"and he lets them go. He has but doesn't possess, acts but doesn't expect. When his work is done, he forgets the work That is why He is immortal".
~Tao Te Ching
भजन:
निजज्ञान से अहम टूटता, कित बचे अहम की कामना |
काम्यकर्म से संन्यास फिर, सहज ज्यों स्वप्न से जागना ||
~भगवद गीता - 5.2
(आचार्य प्रशांत दारा सरल काव्यात्मक अर्थ )
संगीत: मिलिंद दाते
~~~~~~~~~~~~~
🎧 सुनिए #आचार्यप्रशांत को Spotify पर:
https://open.spotify.com/show/3f0KFweIdHB0vfcoizFcET?si=c8f9a6ba31964a06
विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने कर्म और कर्म संन्यास के बीच के संबंध को समझाया है। उन्होंने बताया कि मुक्त पुरुष कुछ नहीं करता, लेकिन सब कुछ अपने आप हो जाता है। यह स्थिति तब आती है जब व्यक्ति प्रकृति के साथ एक हो जाता है। आचार्य जी ने अर्जुन और श्री कृष्ण के संवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि कर्म का महत्व कर्ता के महत्व से कम है। जब व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त करता है, तो वह निष्काम कर्म की ओर बढ़ता है, जिसका अर्थ है कि वह अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए कार्य करता है। कर्म संन्यास तब आता है जब व्यक्ति अपनी कामनाओं से मुक्त हो जाता है। आचार्य जी ने यह भी बताया कि कर्म संन्यास का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति कर्म नहीं करता, बल्कि वह अपने लिए कुछ नहीं करता।
प्रसंग:
~मुक्त पुरुष कौन होता है?
~निष्काम कर्म का क्या महत्व है?
~कर्म और कर्ता के बीच का संबंध क्या है?
~कर्म और कर्म संन्यास के बीच का अंतर क्या है?
~अर्जुन और श्री कृष्ण के संवाद से हमें क्या सीखने को मिलता है?
श्लोक:
अर्जुन उवाच संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।
यच्छ्रेय एतयोरेके तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥
~भगवद् गीता - 5.1
अर्जुन ने कहा- है कृष्ण! आप पहले कर्मसंन्यास की और अब कर्मयोग की प्रशंसा कर रहे हैं।
इन दोनों में जो अधिक श्रेयस्कर है उसे मेरे लिये निश्चयपूर्वक बताइए।
भगवद् गीता - 5.1
श्रीभगवान ने कहा, कर्मसंन्यास और कर्मयोग दोनों ही श्रेयस्कारी हैं।
परंतु उन दोनों में कर्मसंन्यास की अपेक्षा कर्मयोग श्रेष्ठ है।
~भगवद् गीता - 5.2
"The Master does nothing, yet he leaves nothing undone."
~ LAO TZU
कबीर कुत्ता राम का, मुतिया मेरा नाऊँ।
गलै राम की जेवड़ी, जित बैंचे तित जाऊँ ॥
~ संत कबीर
बिनु पद चलड़ सुनइ बिनु काना ।
कर बिनु करम करह बिधि नाना ॥
~बालकाण्ड, श्रीरामचरितमानस
"and he lets them go. He has but doesn't possess, acts but doesn't expect. When his work is done, he forgets the work That is why He is immortal".
~Tao Te Ching
भजन:
निजज्ञान से अहम टूटता, कित बचे अहम की कामना |
काम्यकर्म से संन्यास फिर, सहज ज्यों स्वप्न से जागना ||
~भगवद गीता - 5.2
(आचार्य प्रशांत दारा सरल काव्यात्मक अर्थ )
संगीत: मिलिंद दाते
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🎧 सुनिए #आचार्यप्रशांत को Spotify पर:
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