*क्या नव वर्ष हर्ष का विषय है?*
ये मानव देह जो भगवान् ने हमको अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दिया है, हमने उसमें कितनी दूरी तय की? भगवान् के पास कितना गये? संसार से कितनी दूर गये? ये सब सोचना चाहिये। हम नहीं सोचते। तो हमें हर्ष नहीं मनाना है। हमको सोचना है, आत्म-निरीक्षण करना है। साल में एक बार बहुत अधिक निरीक्षण करना चाहिये। हर महीने में भी एक बार करना चाहिये और हो सके तो प्रतिदिन सोते समय 2- 3 मिनट निरीक्षण करना चाहिये कि आज हमने क्या किया? अच्छा क्या किया? बुरा क्या किया? संसार में मन कितना लगाया? भगवान् में कितना लगाया? अगर रोज सोचें तो अगले दिन गड़बड़ी कम होती जाय। लेकिन हम मरते-मरते भी नहीं सोचते। ये जो आत्म-निरीक्षण है, इसमें आप पायेंगे कि हमने बहुत लापरवाही की। लेकिन अभी मौका है। तुम आत्मा हो, शरीर नहीं हो। शरीर को तो छोड़ना पड़ेगा। इसलिये हर साल आत्म-निरीक्षण करो और फील करो और अगले साल की तैयारी करो कि इस साल काम बना लेना है। क्या पता पूरा साल ना मिले? नये वर्ष की ख़ुशी तभी मनाओ जब नये वर्ष में जबरदस्ती मन को भगवान् में लगाओ ।
ये मानव देह जो भगवान् ने हमको अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दिया है, हमने उसमें कितनी दूरी तय की? भगवान् के पास कितना गये? संसार से कितनी दूर गये? ये सब सोचना चाहिये। हम नहीं सोचते। तो हमें हर्ष नहीं मनाना है। हमको सोचना है, आत्म-निरीक्षण करना है। साल में एक बार बहुत अधिक निरीक्षण करना चाहिये। हर महीने में भी एक बार करना चाहिये और हो सके तो प्रतिदिन सोते समय 2- 3 मिनट निरीक्षण करना चाहिये कि आज हमने क्या किया? अच्छा क्या किया? बुरा क्या किया? संसार में मन कितना लगाया? भगवान् में कितना लगाया? अगर रोज सोचें तो अगले दिन गड़बड़ी कम होती जाय। लेकिन हम मरते-मरते भी नहीं सोचते। ये जो आत्म-निरीक्षण है, इसमें आप पायेंगे कि हमने बहुत लापरवाही की। लेकिन अभी मौका है। तुम आत्मा हो, शरीर नहीं हो। शरीर को तो छोड़ना पड़ेगा। इसलिये हर साल आत्म-निरीक्षण करो और फील करो और अगले साल की तैयारी करो कि इस साल काम बना लेना है। क्या पता पूरा साल ना मिले? नये वर्ष की ख़ुशी तभी मनाओ जब नये वर्ष में जबरदस्ती मन को भगवान् में लगाओ ।
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