• 2 days ago
Gopi Prem
आचार्यं मां विजानीयान्नावमन्येत कर्हिचित्।
न मर्त्यबुद्धयासूयेत सर्वदेवमयो गुरु:।।
( भाग. ११-१७-२७)
भगवान् ने उद्धव से कहा था,उद्धव ! जो वास्तविक गुरु हो, मिल जाय तुमको,तो उसको मेरा ही रुप समझो, मेरे बराबर नहीं, मेरा ही रुप।' आचार्यं माम् ' मैं ही हूँ ऐसा मानो ह्रदय से।' नावमन्येत ' कभी भी अपमान न करना,मन से भी और ' न मर्त्यबुद्धया 'मनुष्य की बुद्धि मत लाना उनमें।अरे कभी-कभी हम लोग करते हैं ऐसा कमाल।हमारी तरह ये खाते हैं पीते हैं,हँसते हैं,चलते हैं,फिरते हैं,इनके भी बाल बच्चे हैं।हाँ थोड़ा काबिल हैं।यहाँ आ जाते हैं।फिर कोई अलौकिक चीज का अनुभव किया,अरे नहीं नहीं नहीं ये स्प्रिचुअल हैं।ये हम लोग अप डाउन हुआ करते हैं।तो उद्धव ! ऐसा नहीं करना-
' सर्वदेवमयो गुरु: '
( भाग.११-१७-२७)
जितनी मेरी शक्तियाँ हैं उद्धव ! वो सब गुरु में रहती हैं।तो अगर तुमने गुरु का अपमान किया,तो मेरी सारी शक्तियों का अपमान कर दिया तुमने,इतना बड़ा अपराध किया।
फिर भगवान् कहते हैं-
नाहमिज्या प्रजातिभ्यां तपसोपशमेन वा।
तुष्येयं सर्वभूतात्मा गुरुशुश्रूषया यथा।।
( भाग.१०-८०-३४ )
उद्धव ! ये वर्णाश्रम धर्म वगैरह जो हैं ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ,संन्यास या कोई भी तपस्या,ज्ञान वान,इससे मैं प्रसन्न नहीं होता।गुरु की सेवा करो,मैं प्रसन्न हो जाऊँगा।मेरी ओर देखो भी मत,कोई जरुरत नहीं।

- जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज

हरि कह ऊधो मेरी गोविंद राधे।
पूजा ते श्रेष्ठ गुरुपूजा बता दे।।
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*- श्री महाराज जी*
( राधा गोविंद गीत )

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