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00:00रतमा नारियल की बंडी धगेलते हुए सारा गाउं घूमती है
00:04कोई भी उसके पास नारियल नहीं खरीद रहा
00:08उस गाउं के सारी गलिया ऐसे घूमती है कि उसके पैर भी ठक गए
00:13का बेटा मा भूख लग रहा है मा ऐसे पूछने पर
00:18उसे रोना आ जाता है और रतमा को पता नहीं चलता कि वो क्या करे
00:23तब वो एक जगा उसकी बंडी रोग कर एक नारियन काट कर
00:28आज के लिए खाकर अपना पेट भर लो वेता कल अच्छा खाना खिलाओंगे
00:34ऐसे कहकर अपने बेटे को देखते हुए अपने जीवन को कोस्ती है
00:39मगर वो दोश किसको मानेगी रतमा को समझ में नहीं आता
00:43एक समय में रतमा बागी गावालों की तरह ही छोटे मोटे कूली का काम करती थी
00:49लेकिन उसे लगता है कि उसे उसका मेहनत का फल नहीं मिल रहा
00:56इसी दुख में वो दिन गुजारती थी
00:59कुछ ही दिन पहले रतमा का पती पी पी कर मर गया
01:03घर के सारे पैसे वो अपने दारू में लगा दिया
01:06और घर में एक फूटी कौडी भी नहीं है
01:10इसलिए रतमा को क्या करेगी पता नहीं चल रहा था
01:13और उसे इसी बात का डरता कि वो अपने बेटे को कैसे पढ़ाएगी
01:17एक दिन वो अपने घर के बरामदे में बैटकर यही सोचती रहती है
01:21कि वो पैसे कैसे कमाएगी
01:23तब ही फैसला करती है कि वो एक छोटा सा व्यापार करेगी
01:26इसी सोच में वो जब सर उठाकर उपर देखती है
01:29उसके घर के ठीक सामने मौजूद एक नारियल का पेड़ उसे नजर आता है
01:34तब वो फैसला करती है कि वो नारियल बेचेगी
01:37उसके फैसले के अनुसार ही वो अगले दिन उस गाओं के जंक्षन के बीच में
01:43नारियल का एक छोटा सा बंडी लगाती है
01:46लेकिन तब तक उसी जंक्षन पे दो और ऐसे व्यापारी थे जो नारियल बेच रहे थे
01:51उन दोरों के वज़े से रत्मा का व्यापा थीक से नहीं जलता है
01:55इसी कारण दो-τीन दिनों से रत्मा की बंडी से सिर्फ दो या तीन नारियल ही बिके थे
02:02बाकी सारे वैसे कि वैसे ही रह गये
02:05ये देख निराश होकर रत्मा
02:07ये फैसला करती है कि अगर वो गाओं के सारी गलिया घूम कर बेचने की कोशिश करेगी तो कम से कम कुछ तो बिग जाएंगे तब जाकर वो ऐसे गलियों में घूमती रहे
02:18आंखों में से निकल रहे आंसो को पोच कर वो बस अपने किसमत को कोश कर घर जाने ही लगती है कि बीच रस्ते में उसे एक पाच्छारा नजर आती है
02:28उस पाच्छारा के बच्चे वहाँ बेच रहे स्नैक्स को देख उस दुकान के चारों और खेर कर उनको खरीदने लगते हैं
02:36ये देख रतमा का बेटा मा मुझे भी वो खाना है मा ऐसे वो भोला बच्चा पोचता है ठीक तबी अचानक रतमा को एक अच्छी योजना सूचती है
02:48तब उसके बेटे से ऐसे कहती है हमारे पास उसको खरीदने के पैसे नहीं है बेटा लेकिन घर जाते ही मैं तुम्हारे लिए एक बहुत अच्छी मिठाई बनाओंगी ठीक है चलो हम अब भी घर चले जाएंगे
03:03घर आते ही बचे नारियल में से कुछी को काट कर उनसे कुछ मिठाईया बनाती है और उन मिठाईयों को अगली ही दिन उस पाच्छाले के पास बेचने लगती है उस दिन तक किसी ने भी नारियल से बनाए हुए मिठाई को वहाँ पे नहीं बेजा था इसलिए पाच्छाल
03:33से दूसरी तरह की मिठाई बनकर अगले ही दिन वहां आकर उसे बेचती हैं। पिछले दिन के तरह ही बच्चे वहां आकर सारे मिठाईयों को खरी लेते हैं।
03:47लेकिन कुछ बच्चे ऐसे पूछते हैं। आंटी कल जैसे मिठाई नहीं है क्या।
03:54कल ले क्या होंगा बेटा। ये कहकर घर पहुँचते ही अगले दिन के लिए नारियल से ही दो तीन प्रकार के मिठाईया बनाती है।
04:06तीसरे दिन भी सारी मिठाईया बिग जाती है।
04:12तब वहां मौझूद बाकी व्यापारी ये देख। रत्तमा के पास आकर ऐसे कहते हैं।
04:17अमा कुछ मिठाईया हमको भी बेचो, वो हमारे दुकान में बेचेंगे हम।
04:23हम तुमें दुगना पैसे देंगे इनके लिए। ऐसे कहते हैं।
04:27ये सुनकर रत्तमा इस बर ज्यादा मात्रा में मिठाईया को बनाकर अगले दिन वहां के व्यापारियों को बेचती है दुगने गुना में।
04:36बचे सारे पात्षाला के बच्चों को हमेशा की तरफ बेचती हैं। ये देख बचे सारे वापस रत्तमा के पास ही मिठाईया कहरीते हैं।
05:06कैसे खरी देंगे उस सबसे हमारा कोई लेना देना नहीं अगर यहां धंदा करना है तो हमारी सुनो वरना यहां से निकल जाओ ऐसे कहते हैं यह सुनकर रत्मा उसके घर पहुंचकर बहुत सोचने लग जाती है अगले दिन वो उस पाचाला के पास एक बड़ा सा मिठाई का �
05:36उसरी तरफ रत्मा की तरह नारियल से मिठाई बना कर बेचने वाला उस गाव में और कोई नहीं था अब इस कारण रत्मा के मिठाई का दुकान सिर्फ बच्चे ही नहीं बलकि सारा गाव जाता था कुछी दिनों में रत्मा अमीर बन जाती है और उसी पाचाला में वो अ�
06:06प्ल्टी बल्टी