जीवन में हम कई बार ऐसे रिश्तों में उलझ जाते हैं जहाँ हर बार दूसरों की वजह से हमें ही तकलीफ सहनी पड़ती है। ऐसे वक्त में मन में यही सवाल आता है कि हर बार मुझे ही क्यों सहना पड़ता है? मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है? इस मनोस्थिति का समाधान कैसे लाएँ? आइए जानें पूज्य नीरू माँ से।
Many times, we end up stuck in relationships where, due to others, we have to suffer a lot. This internal suffering makes us feel suppressed and helpless. But in this video, Pujya Niruma explains how we should stop tolerating and start solving the matter. Let's watch!
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00:00मुझा
00:29करना है, सौल करना है, सहन करना है, यान इस प्रिंग को दबाना, एहंकार से दबाना, लेट गो करना, लेकिन उसके भी लिमीट आ जाती है, और इसके लिमीट आती है, तो इतने जोर से उचलता है, इतने जोर से उचलता है, कि आगे पिछे का सब लेके पुरा कर दालता है, य
00:59यह लोग यह स्प्रिंग जैसा काम करना ने सिकाते हैं, यह हंकार से होता है, सास अपने को ऐसी मिली तो मुझे ही क्यों ऐसी मिली, और अच्छी मिली तो मुझे क्यों ऐसी मेरा ही साब है, सबका यही हाल है, तो अभी अपना है तो पूरा करो, मेरा है तो मुझे पूरा करना,
01:29करो या हस के करो, खरना तो पड़ेगा, तो फी हस के क्यो ना करेगा, कर्म छूटता जाएगा, और भाव बिगारते जाओगे, अंदर कलेश, कशाय होते जाएगा, और करते जाओगे, तो बढ़ता जाएगा, उससे बेटर है, जो है हिसाग, यह ही खतम करो.