आखिर चाहता क्या है प्रशासन ... ?

  • 7 years ago
एतिहासिक महत्व के बल पर जिले का दर्जा पाने वाला मुक्तसर शहर शुरू से ही सियासी पक्षपात का शिकार रहा है। नाम के साथ श्री और साहिब तो लगा... लेकिन सरकार की बेरुखी और प्रशासन की बद्तर कार्यप्रणाली ने शहर को पिछड़़े शहरों की श्रेणी से बाहर आने ही नहीं दिया।
पिछले दिनों स्वच्छ भारत अभियान के तहत हुए सर्वे में लगे बदनुमा दाग ने तो शहर के प्रति प्रशासन की बद्दतर कार्य कुशलता पर मुहर लगा दी। देश भर के सबसे गंदे दस शहरों में तो हमारा नाम चमका ही पंजाब के शहरों में तो हम ने अव्वल नंबर हासिल किया।
शहर के माथे से इस कलंक को हटाने के नाम पर हरकत में आई समाज सेवी संस्थाएं भी कुछ दिन तस्वीरें खिंचवाने के बाद न जाने कहां गुम ही हो गई।
हालांकि सिख विरसा काउंसिल ने तो काफी दिन शहर की सफाई के लिए जद्दोजहद की तथा इस लड़ाई के दौरान आक्रोशित संस्था के सदस्य नगर कौंसिल परिसर में जाकर कूड़ा तक फेंक आए लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों को गहरी नींद से उठाने में असफल रहे।
हालात यह हैं कि सर्वे में शहर के माथे पर गंदगी के लगे कलंक को चार माह बीत जाने के बावजूद प्रशासनिक अमला अभी तक कूड़ा फेंकने के लिए जगह तक की व्यवस्था कर पाने में असफल रहा है।
यहां तक कि शहर में प्लास्टिक लिफाफों पर चाहे सख्त प्रतिबंध है , लेकिन कूड़े के ढेरों में ज्यादातर नजर आते यह लिफाफे दर्शाते हैं कि प्रशासन ना तो प्रतिबंध को लेकर गंभीर है और ना ही सफाई के प्रति संवेदनशील।
सफाई व्यवस्था के हालातों को देखकर यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि प्रशासन गंदगी के ढेरों के मामले में एतिहासिक शहर को पंजाब में तो अव्वल लाने में सफल रहा ही है अब देश का भी सबसे गंदा शहर घोषित करवाना ही उसका लक्ष्य रह गया है।
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