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  • 3/17/2020
#RanjanGogoi #SupremeCourt

वक्त के पहिये को थोड़ा सा पीछे घुमाएं तो पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई सार्वजनिक रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस करके देश के संविधान पर खतरा बताते दिखाई देंगे। इसका मतलब था कि वे सत्ता पक्ष के खिलाफ थे और विपक्ष के साथ। लेकिन इसके बाद हालात ऐसे बनते चले गए की रंजन गोगोई ने अपना पाला बदल लिया। उन पर जूनियर कोर्ट असिस्टेंट पद पर रही एक महिला ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगा दिए। इन आरोपों के पीछे कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का हाथ होने की संभावना जताई गई। इसके बाद गोगोई के सुर थोड़े बदल से गए।

वक्त के पहिये को थोड़ा और पीछे घुमाया जाए तो गोगोई के पहले जो मुख्य न्यायाधीश थे दीपक मिश्रा उनसे ये उम्मीद थी कि वो सेवानिवृत्त होने से पहले राममंदिर पर निर्णय सुना देंगे। उनकी विचारधारा भी भाजपा के करीब बताई जा रही थी। लेकिन मिश्रा जी चुपचाप रिटायर हो गए और रंजन गोगोई ने राममंदिर समेत कई ऐतिहासिक निर्णय सुना डाले। राममंदिर के अलावा रफाल और कर्नाटक विधानसभा से जुड़े निर्णय भी गोगोई ने ही सुनाए और सत्ता को हर बार राहत पहुंचाई। बीते साल राममंदिर के पक्ष में निर्णय सुनाकर गोगोई ने दशकों से लंबित मामले को सुलझाकर एक ऐतिहासिक काम को अंजाम दिया।

इन सबके बाद ये उम्मीद थी ही की उन्हें इसका 'इनाम' जरूर दिया जायेगा। उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाने की चर्चा भी गर्म थी लेकिन कल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत कर दिया। राज्यसभा की कुल सदस्य संख्या 245 है, जिनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाता है। राष्ट्रपति के इस निर्णय के पीछे सत्ता पक्ष की इच्छा थी जिसका विरोध भी शुरू हो चुका है।
भाजपा नेताओं के पुराने बयान और ट्वीट सामने आ रहे है जिनमें में न्यायाधीशों को ऐसे पद देने का विरोध कर रहे थे।

जिस काम का विपक्ष में रहते भाजपा विरोध करती थी सत्ता में आने पर खुद भी वही सब करने लगी है। और कांग्रेस भी सत्ता में रहते जजों को राज्यपाल बनाती थी, रेवड़ियां बांटती थी लेकिन अब उसे गोगोई का राज्यसभा जाना बर्दाश्त नही हो रहा है। कांग्रेस को शायद याद नही है की गोगोई से पहले एक पूर्व सीजेआई रंगनाथ मिश्रा बाकायदा कांग्रेस में शामिल हुए थे और सांसद बने थे।

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