कितना आसान है मोक्ष पाना? || आचार्य प्रशांत, अवधूत गीता पर (2020)

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वीडियो जानकारी:
खुला सत्र, 01.03.20, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत

प्रसंग:
सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयाऽऽत्मशक्त्या वृक्षान् सरीसृपपशून् खगदंशमत्स्यान् ।
तैस्तैरतुष्टहृदयः पुरुषं विधाय ब्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देवः ॥

भावार्थ: वैसे तो भगवान् ने अपनी अचिन्त्य शक्ति माया से वृक्ष, सरीसृप (रेंगनेवाले जंतु), पशु, पक्षी, डांस और मछली आदि अनेकों प्रकार की योनियाँ रचीं; परन्तु उनसे उन्हें सन्तोष न हुआ। तब उन्होंने मनुष्य शरीर की सृष्टि की । यह ऐसी बुद्धि से युक्त है, जो ब्रम्ह का साक्षात्कार कर सकती है । इसकी रचना करके वे बहुत आनन्दित हुए ।
~अवधूत गीता (अध्याय ३, श्लोक २८)

लब्ध्वा सुदुर्लभमिदं बहुसम्भवान्ते मानुष्यमर्थदमनित्यमपीह धीरः।
तूर्णं यतेत न पतेदनुमृत्यु यावन्निःश्रेयसाय विषयः खलु सर्वतः स्यात् ॥

यद्यपि यह मनुष्य-शरीर है तो अनित्य ही—मृत्यु सदा इसके पीछे लगी रहती है । परन्तु इससे परमपुरुषार्थ की प्राप्ति हो सकती है; इसलिए अनेक जन्मों के बाद यह अत्यन्त दुर्लभ मनुष्य-शरीरपाकर बुद्धिमान पुरुष को चाहिये कि शीघ्र-से-शीघ्र, मृत्यु के पहले ही मोक्ष-प्राप्ति का प्रयत्न कर ले । इस जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष ही है । विषय-भोग तो सभी योनियों में प्राप्त हो सकते हैं, इसलिये उनके संग्रह में यह अमूल्य जीवन नहीं खोना चाहिये ।
~अवधूत गीता (अध्याय ३, श्लोक २९)

एवं सञ्जातवैराग्यो विज्ञानालोक आत्मनि ।
विचरामि महीमेतां मुक्तसङ्गोऽनहङ्कृतिः ॥

राजन्! यही सब सोच-विचारकर मुझे जगत् से वैराग्य हो गया । मेरे हृदय में ज्ञान-विज्ञान की ज्योति जगमगाती रहती है । न तो कहीं मेरी आसक्ति है और न कहीं अहंकार ही । अब मैं स्वच्छन्द रूप से इस पृथ्वी पर विचरण करता हूँ ।
~अवधूत गीता (अध्याय ३, श्लोक ३०)

~ मनुष्य ब्रह्म का साक्षात्कार कैसे कर सकता है?
~ परम पुरुषार्थ की प्राप्ति कैसे हो?
~ मोक्ष की प्राप्ति कैसे हो?
~ क्या साधना करना कठिन है?
~ कितना आसान है मोक्ष पाना?

संगीत: मिलिंद दाते

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