इस्लाम_से_मोहब्बत_करने_वाले_इस_बयान_को_जरूर_सुने#islamc#video#viral(360p)

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00:00कमजर्फां में अपनी कमजर्फी का पता दिया मगर आओ मैं तुम्हें बताओं एक दावर हमारा भी था एक हदार बरस्तक्षी धारत पर मुसल्मालों ने हुकुमत की थी और उस दावर के उस बादशां का हवाला देता हूँ,
00:29जिस बादशां को सबसे बड़ा फिरका परस्ते हैं के फिरका परस्ते हैं, औरंजे बालंगीर, औरंजे बालंगीर के समाने में हिंदु परस्नल्ला की उपाज़त किस तरह हुई थी, कहीं दूर का वातया नहीं थी, बनारत और काशी का वातया है,
00:48जब हमारी हुकुमत थी, तो हमने देश के दूर्सरे धर्मों को किस तरह बचाया था, काशी का एक पुजारी था पंडित रामलाल, औरंजे बालंगीर की हुकुमत थी, औरंजे बालंगीर के शाह कोतवाल थे बनारत में मुहमद इबराहीन,
01:10पंडित रामलाल थे काशी के पंडित, उनके खुबसूरत लड़की थी नाम था उसका शकुंतला, शकुंतला सुबह सवे काशी में अश्नान करके निकली, भीगा हुआ बदन, निखरा चहरा, खुबसूरती चांत को शर्मा रही थी, उदर से इबराहीन शहर कोतवाल का भ
01:40और शहर कोतवाल ने अपनी अयाशियों का सामान बनाने के लिए एक ब्रह्मन जादी पे निगा है गाल दी, अपने सिपाहियों से उसने कहा इस लड़की के घर का पता लगा के आओ, लड़की जिस घर में गई सिपाहियोंने वो घर नोट किया, वापस आये पता दिया,
02:10और बुलवाके उसने कहा पंदेत, तेरी बेटी चांत से ज़्यादा हसीन है, और गुलाब से ज़्यादा सुर्ख है, मैं उसे अपनी दाशता बना के रखना चाहता हूँ, एक हफते के अंदर अंदर अपनी बेटी का दोला सजा कर मेरी अयाशी की चोखट पर लाकर रख �
02:40इब्राहीन कोतवाल अपने परायेश से गद्धारी करता हुआ एक पंदित की बेटी की इजदत लूटने का नापाफ कदम उठा रहा था, पंदित रोता हुआ घर आया, बीली ने छेहरा उत्रा हुआ देखा, बेटी ने बादे कर पंदित रामलाल और रोने लगा,
03:06उन्होंने का बेटी अरंदेव की हुकूमत में एक पंदित की इजदत महपूर्ज नहीं रह सकती, उसके शार कोतवाल ने तेरी इजदत से खेलने के लिए मुझे एक हफते की फुर्फट दी, लड़की दो मिनट के लिए सक्ते में आयी और उसके बाद उसने होष समभाला
03:36आप चले जाये शहर कोतवाल के पास और जाके कहिए कि मेरी अकलोती बेटी है, एक हफते में एक बाप अपनी बेटी के लिए अपने अर्मान पूरे नहीं कर सकता, आप मुझे एक महीने का वक्त दे दिजी, महीने बर मैं उसके लिए अच्छे कपड़े बनवाऊ
04:06गए और जाके कहा महराज, बनारत के स्वामी, किरपा करो, एक हफते का टाइम बहुत कम है, मेरी बेटी भी खुश हो गई है, मेरी बीवी भी खुश हो गई है, कि हम बनारत के स्वामी के पास जा रहे हैं, नगर हमको कम से कम एक महीने का टाइम दिया जाए, ताकि अपनी �
04:36खुशत, खिजाब लगाए हुए अपनी मोच पे ताओ दे रहा था, और उसने लगा, ठेक है पंडित रामलाल, तुम समझदार आदमी हो, जाओ हमने तुमको एक महीने का टाइम दिया, घर आया, पंडित रामलाल ने कहा, शकुंतला, हमें एक महीने का टाइम दिया,
04:58बेटी ने कहा, पिताजी, बनारेश शहर में मुगल शहजादों का लिबास सिला सिलाया भिकता है, मेरे लिए एक लिबास लाईये मुगल शहजादों का, कहा, बेटी, तू तो बेटी है, लड़कों का लिबास क्या करेगी, कहा, पिताजी, जो मैं कहती हूँ, वो किसी,
05:19मुगल शहजादों का लिबास लाया गया, लड़की ने लड़के का लिबास पहना, फीर से जूनियट बनी, लड़की से लड़का बनी, अस्तबल से घोड़ा निकाला, और कहा, पिताजी, मुझे पर विश्वास कीजिए, मैं ठीक अच्छाइस दिन में वापसा जाओंग
05:50अपनी बेटी की गर्दे सफर देखी, और एक शहसवार बेटी बेटे के रूप में इनसाफ हासिल करने के लिए, मुसलसल अपनी मंदिल की तरफ आगे बढ़ती रही
06:07छे दिन के बाद, दिन बर सफर करती थी, रात में सरायले रुपती थी, दिन में फिर चल देती थी, एक हफ़ते के बाद वो लड़की सेकुन्तला देली पहुँँचे, जिस दिन देली में उसने सूरज देखा, वो दिन जुमा का दिन है,
06:37और नमास पर के वापस जब सिले महुल ला जाते हैं, तो सील्मियों पे खड़े फर्यादी, अपनी अपनी फर्याद अपने अपने पर्छों में लेके खड़े होते हैं, और अंजेब जुमा के दिन किसी फर्यादी को वापस नहीं लोता था, लड़की ये सुनकर पहची �
07:07तब से निचले जीने पर बनारत की ब्रह्मनजादी शकुंतला को जगा मिली, यास्की मूरत मुगल शह्जादे की शक्ल में खड़ी रही अपना पर्छा लेकर, अपना दुख लेकर, अपना दर्द लेकर
07:27और अंजेबालंगीर नमास के बाद मस्जित से बाहर निकले, दिल्ली की शाजहानी मस्जित के जीने तै कर रहे थे, मताइबीन कलंदान थामे हुए थे, एक एक पर्छा दुखियारियों का खुद हाथ में लेते थे, बढ़ते थे, आर्डर करते थे, आगे बढ़ते थे,
07:58और अपने कन्धे से अपनी शाल उतारी, शाल के अंदर अपना हाथ छुपाकर, आपने उस शह्जादे के हाथ से वो पर्छा लिया, उसने कहा, इंदुरस्तान के स्वामी, भारत के महराज, मुझे ये बताओ कि मेरा साथ ये सोतेला सुलूग क्यों,
08:20हर आदमी से पर्छा आपने लिया, उसके हाथ से हाथ मिलाकर, बादशाने अपनी पर्छा को ये उंचा मकाम बखशा, मैं भी एक पर्छा शह्जादा हूं, मेरे हाथ को हाथ में क्यों नहीं लिया गया, मेरे हाथ से इतनी नफरत क्यों, कि अपने हाथ को कपड़े में छु
08:51मैं मुसल्मान हूं और तुझे जानता हूं कि तु लड़का नहीं ये लड़की है, इसराम घर महरम के उपर हाथ लगाने की एजादत नहीं देता
09:02अब जब क्यों पूरे जसबात से मगलूब होकर शांशा हे हिंद ने तुझे अपनी बेटी कहा है, तो बेटीयों जैसा सुलूख भी तेरे साथ किया जाएगा, मेरी बेटी को कौन सी तकलीव पहुँती है, कि लड़की की शकल में आने के बजाए अपनी फर्यार लड़
09:33आपने फर्माया बेटी, मेरे मधब में खुदा के एलावा किसी के सामने जुखने की एजाज़त नहीं है, मैं भी उसका वैसा ही बंदा हूँ, जैसे तुम लोग बंदे होकर उसकी बंदगी करने का जजबार करते हूँ
09:46ये खेवरं देबालंगी था, किले के अंदर लड़ी पहुचाई गई, घर में जाकर आपने उसकी फर्यार सुनी, आखों में खून उतराया और आपने फर्माया बेटी, दो रोज आराम करने के बाद तुझे हर चोकी पे घोड़े बदले हुए मिलेंगे और हर जगह मेरे
10:16लड़ी ने कहा महराज, मेरा हिंदु प्रसनल्ला कोड़ रहा है, एक मुसल्मान हाकिन, महराज, मेरा मदध कोड़ रहा है, बनारस का शहर कोटवाल, आपने फर्माया जाओ, तुमारे साथ इनसाफ की जाए तो कहा महराज, वो इनसाफ मैं सुनना चाती हूँ, तो

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