शिव कौन है ब्रह्माण्ड में कहां है Shiva kon hai brahamand me kaha hai
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00:00ओमनमहः सिवाय
00:03ओमनमहः सिवाय के जाप से हमारे आसपास के नकारात्मक सक्ती खटम होगर सकारात्मक उर्जा के संचार होती है
00:13कहते हैं सारे संसार में सबसे पहला सब्द ओम ध्वनी ही है
00:20अग तो यह बात ब्याज्यानिक भी मानते हैं कि प्रम्माण्ड में ओम सब्त की धोनी सुनाई परती हैं।
00:27नमस्ते दूस्तों मैं नूतन नूतन पांडरी हमारे यूट्यूब चैनल सनातन पॉरानीक कहानिया में अपका हरतिक स्वागत है।
00:36आज हम सिव के कुछ जाने अनजाने प्रत्थों के बारे में बाते करेंगे।
00:42तो आये जानते हैं देवो के देव महादेव, कालो के काल महाकाल के बारे में कुछ दिलचस्प, कुछ रोचक भात है।
00:52सास्त्रों के अनुसार समस्त ब्रमाण्ड ही सिव है।
00:58सिव ही समस्त ब्रमाण्ड है।
01:00जिसे सिवलिंग के रूप में रतिक यानि चिन्हित किया गया है।
01:04सिव का न कोई आदि है न अन्त। वह अनंत है।
01:09उनका न कोई अकार है न प्रकार।
01:12सिव सुख से भी चोटा यानि शुन्य मात्र है।
01:17जो खुली आखों से दिखाई तक भी नहीं देते।
01:20और अनंत से भी बड़ा।
01:22जिसका कोई अन्त ही न हो इंफिनाएंट है।
01:28सिव ही उर्जा है।
01:30और समस्त ब्रमाण्ड उर्जा से बने है।
01:33सिव ही ब्रमाण्ड है।
01:35और ब्रमाण्ड ही सिव है।
01:37इसलिए सिवलिंग को ब्रमाण्ड के प्रतीग मानते हैं।
01:41यानि ब्रमाण्ड का अकार सिवलिंग के अकार की तरह है।
01:45और सिवलिंग का अकार ब्रमाण्ड के अकार की तरह है।
01:49इसलिए सिवलिंग को ब्रमाण्ड यानि सिव का प्रतीग मानते हैं।
01:53उनकी पूजा करते हैं।
01:56अब हम सिवलिंग के अर्थ को समझेंगे।
02:00सिवलिंग सब्द संस्कृत भासा के दो सब्दों से मिलकर बने हैं।
02:06जिसमें सिव और लिंग दो सब्द हैं।
02:11सिव का तो अर्थ शिव ही होता है।
02:13परन्तु लिंग का अर्थ चिन, निशान, प्रतीग से है।
02:19जैसे के इस्तिलिंग सब्द का मतलब इस्तिरी के चिन ही से है।
02:23उलिंग सब्द का मतलब पुरुष के चिन से है।
02:27उसी तरह सिव लिंग का मतलब सिव चिन ही से है।
02:32जैसे की हम जानते हैं एक ही सब का अर्थ अलग अलग भासाओं में अलग अलग होते हैं।
02:39तो हिंदी में सिव लिंग की गलत अर्थ होने की कारण गलत धारनाएं बनी हुई है।
02:47कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि महलाएं सिव लिंग को नहीं चूषकती।
02:53जो की यह गलत है।
02:55अर्थ के अनर्थ होने की कारण यह धारनाएं बनी है।
02:59तो हमें आशा है कि यह वीडियो देखने के बाद अब आपके मन में यह भ्यम दूर हो गया होगा कि महलाएं सिव लिंग को नहीं चूषकती।
03:11सिव जी के जटाओं में गंगा क्यों रहती है।
03:16तो जब गंगा धर्ती पर आ रही थी तो उनकी धड़ाओं में इतना तिर्व तेज था कि सारा धर्ती जल मगन हो जाती।
03:27समस्त धर्ती पर लाया जाता सारा संसाड जल में डूप जाती।
03:33तब भोले बाबा ने माता गंगा को अपने जटाओं में स्वर्पर्थम उठारे थे और फिर उन्हें धर्ती पर लाये थे।
03:41तभी से मा गंगा सिव जी के जटाओं में बिराजवान है।
03:45चंद्रदेव सिव जी के सिर पे क्यों सुसोभी थे।
03:51जब चंद्रदेव छै रोगों से ग्रशित हो गए थे तब उन्होंने मिर्तुनजाय मंत्र के जाप किये और भोले बाबा का कठिन तपस्या किये।
04:00तब सिव जी चंद्रदेव के भखती से प्रेशन हो कर उन्हें छै रोगों से ठीक करके अपने सिर पर सुसोभीत किये थे।
04:10चंद्रदेव को छै रोगों से ठीक करने के लिए ही मिर्तुनजाय मंत्र बनाये गये थे।
04:17मिर्तुनजाय मंत्र के जाब करने से समस्त रोग दोश दूर होते हैं और मिर्तुनजाय मंत्र के जाब करने वाले अकाल मिर्तु के भाई से बचे रहते हैं।
04:27उनका अकाल मिर्तु नहीं होता है।
04:30अब हम सिव जी के डम्रू के वारे में बात करेंगे।
04:34सांस्त्रों के अनुसार जब भोले बाबा डम्रू भजाय थे तब जो धौनी उत्पन हुई थी वह धौनी ही संस्कृत भासा है।
04:43और इसलिए कहते हैं कि संसार के सारे भासा संस्कृत से ही बने हैं।
04:49एर संस्कृत भासा का जन शिव जी के डम्रू से हुई है। इसलिए शिव जी के हाथ में डम्रू हमेशा लेकते है।
04:58त्रिसूल
05:01शिवजी के त्रिसूल तीनों काल, भूतकाल, भविष्चकाल, बरतमान काल को दर्शाते हैं
05:08इसलिए शिवजी को त्रिकाल दर्शी भी कहा गया है
05:12शिवजी निलकंथ क्यों है?
05:15जब समुंद्र का मन्थन वुआ था
05:18तो उस मन्थन से जो विष्व निकले थे
05:21विष्व समस्त संसार को नष्ट कर देते हैं
05:24संसार को उस विष्व से बचाने के लिए
05:27शिवजी ने उस विष्व को खुद ही पी गए
05:30और जब वो विष्व पी रहे थे
05:33उन्हें अस्मरन हुआ
05:35उनके हिर्दार में विष्व जी का निवास है
05:38अगर विष्व अंदर गया तो विष्व जी को नुकसान हो सकता है
05:42इसलिए उन्होंने विष्व को अपनी गले में ही रख लिए
05:46इसलिए उनका कला नीला बढ़ गया है
05:49और तबी से उनको निलकन्द भी कहते हैं
05:52इसलिये भुले बबा का नाओ निलकन्द भी है
06:01सास्त्रों के अणुसार जव समंद्र मंथन हुआ था तो
06:05बास्टी देव, जो नागो के राजा है
06:09उनकी सहाइदा से समंद्र मंथन हुआ था
06:12और समंद्र मंथन से जो विष्व निकल रहे थे
06:16वश्थी का प्रभाव बास्ती पे भी पड़ा था. और वो अधिक हिशायले हो गए थे。
06:23संसार को बास्ती के बिष्च के प्रभाव से बचाने के लिए, सिवजी ने बास्ती को अपने गले में पहन लिये.
06:31बास्वी नागराज शिवजी के गले में ब्रजमान है।
06:36इसलिए शिवजी नागू के माला पहनते हैं।
06:40रुद्राक्ष
06:43जब शिवजी माता सती के वियोग में थे,
06:47तब उनके नेत्र से जो कर्णा रूपी आँशों धर्ती पे घिरे थे,
06:52वुही आँशों बृच वन दें और उसी के फल रुद्राक्ष है।
06:57रुद्राक्ष के माला पहनने से समस्त रोपदोष दूर होते हैं।
07:02शिवजि भस्म क्यों लगाते हैं।
07:07शिवजी के भस्म लगाने से हमें यह सीख लिती है कि
07:13यह सरेव नास्तीक है और अंत में कुछ नहीं। राक यानी भस्म ही बज़ाता है।
07:20तो सिवजी भस्म लगाकर हमें यही बोत कराते हैं।
07:24कहते हैं शीवूः अस्मसान के वासी है।
07:28सिवजी अस्मसान में क्यों रहते हैं।
07:31इसका मतलब है कि हमारा सरीब दो तट्व से बने है । एक पदाट और दूसरा उर्जा
07:38जब हमारा सरीब नास हो जाता है तब वो आत्मा रूपि उर्जा, जो शिव की उर्जा है उन से जाके मिल जाते हैं
07:49शिव तांड़व
07:51शिवटाणडव दो पएकार के लिए होती है
07:54एक हर सेरि शिवताणडव और दूसरा नतराज शिव ¿...?
07:58रोत्र सीव टाणडव ने सिलतरूतरूतरू भारा कर लेता है
08:04पड़ संसालें प्रल आय आती है
08:07और सारा संसाल का बिनाश हो जाता है
08:10वही जब शिवजी नटराज तांडब करते हैं तो संसार अस्तित्व में आते हैं, सारे संसार में अननंद का लहर प्हईल जाता है, चारो तरफ खुशीहाली भी खुशीहाली होती है, इस तरह शिवजी के रुद्र तांडब विनाजकाली है और नटराज तांडब ख�
08:40हमेत हम वो पियानों द्याज़ां थे उसे थिलоны ये चिर्फ परिवित्व होना रख valcaa इसने के बिलों कहा है
08:48हमे यह शुरुरिते हैं कि सयके बैनली में गंचान करना रहते हैं
08:52सिवजी पे बेलपात्र, धथूल, भांग क्यों चड़ाये जाते हैं?
08:57बेलपात्र, धथूल, भांग यह विसायले पदार्थ को अपसूसित करते हैं
09:04जब भोले बाबा ने बिस पीए थे तो उन पे भी बिस का प्रभाव परने लगा था
09:10बिस के प्रभाव को कम करने के लिए भोले बाबा पे बेलपात्र, धथूल, भांग चड़ाये जाते हैं
09:18सिवजी के साथ बैल क्यों रहते हैं?
09:22सिवजी के साथ जो बैल रहते हैं उनका नाम नंधी है
09:27नंधी के पिता सिलाद को कोई पुत्र नहीं था
09:30पब उन्होंने सिवजी के कथिन तपस्या किये और उन्हें प्रशन किये
09:37भोले बाबा सिलाद के तपस्या से प्रशन होकर उन्हें पुत्र होने का बरदान दिये
09:43लेकिन वह पुत्र अलप आयू होगा ऐसा उन्होंने कहा
09:47सिवजी के बरदान से सिलाद को नन्धी के रूप में पुत्र प्राख थुए
09:53नन्धी को जब अपने अलप आयू होने का पता चला वह सिवजी का कथिन तपस्या किये और सिवजी को तपस्या कर उन्हें प्रशन किये
10:04सिवजी Newton उसके तपस्या से प्रशन होगर उन्हे बरदान मा नेखो कहा , तब प्यादेशन मांगिये तब नन्धी ने सिवजी से यह बरदान माँगे
10:22तभी से नन्दी सिवजी के साथ रहते हैं।
10:26तो ऐसा मानेता है कि नन्दी के कान में जो भी बाते बोलते या कहते हैं, वह सिवजी तक अबश्य पहुँजते हैं।
10:35तो भक्त अपनी बाते सिवजी तक पहुँचाने के लिए अपनी मनुकामनाएं नन्दी से कहते हैं और नन्दी उनकी बाते सिवजी तक पहुँचाते हैं और भक्तों की मनुकामनाएं पूर्ण होती हैं।
10:49तो यह थी हमारे सिवजी के बारे में कुछ रोचक तथों की जानकारी। इसी तरह के जानकारी पामे के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब, सेयर और लाइक कीजिए। वीडियो देखने के लिए धन्यवाद।