सवाईमाधोपुर. जिले में 20 हजार से अधिक परिवारो की रोजी-रोटी अमरूदों की खेती पर निर्भर है। ऐसे में आजीविका का मुख्य स्त्रोत भी अमरूद की बागवानी है। सरकार का पर्यटन पर फोकस है जबकि अमरूदो की बागवानी पर कोई ध्यान नहीं है। प्रोसेसिंग इकाई स्थापिन नहीं होने व अमरूदों के खराब होने से नुकसान हो रहा है।
सरकार जिले में भले ही पर्यटन को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है मगर पर्यटन के बाद बड़े पैमाने पर अमरूद का कारोबार होता है। इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। पर्यटन उद्योग से केवल पूंजी पतियों को ही फायदा मिल रहा है, जबकि जिले में अमरूदों की बागवानी कर रहे काश्तकार आज भी प्रासेसिंग यूनिट की आस लगाए बैठे है।
प्राकृतिक आपदाओं में होता है नुकसान
जिले में अमरूद प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने से किसानों को आय के साथ प्राकृतिक आपदाओं में अमरूद की बागवानी में लाखों रुपए का नुकसान हो रहा है। प्रतिवर्ष अंधड़, बेमौसम बारिश, बीमारी, कीटों से पौधे व फल नष्ट हो जाते है। ऐसे में फलों की बर्बादी को रोकने के लिए जिले में फूड प्रोसेसिंग यूनिट अब जरूरी हो गया है।
जिले में यहां है अमरूद के बगीचे
जिले में सूरवाल, करमोदा, दौंदरी, मथुरापुर, आटूनकला, गुढ़ासी, शेरपुर-खिलचीपुर, श्यामपुरा, ओलवाड़ा, पढ़ाना, मैनपुरा, अजनोटी, भाड़ौती, सेलू, रांवल, गंगापुरसिटी, बामनवास आदि स्थानों पर 15 हजार हैक्टेयर में किसानों ने अमरूद के बगीचे लगा रखे है। जिला मुख्यालय के आसपास के क्षेत्र रामसिंहपुरा, करमोदा, सूरवाल सहित कई गांव अमरूद की अच्छी पौध के लिए जाने जाते है। यहां बर्फखान गोला, लखनऊ 49, इलाहाबादी,सफेदा किस्म के अमरूदों की पौध तैयार की जाती है।
स्थानीय स्तर पर नहीं है बाजार
अमरूद के सबसे बड़े उत्पादक जिले के किसानों को न तो स्थानीय स्तर पर बाजार उपलब्ध है, न ही अमरूद व्यापार को बढ़ाने के लिए कोई कदम उठाए गए है। अब सरकार को चाहिए कि कृषि उन्नति के लिए चुनावी घोषणाओं को धरातल पर लाने के लिए कदम उठाए।
सरकार जिले में भले ही पर्यटन को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है मगर पर्यटन के बाद बड़े पैमाने पर अमरूद का कारोबार होता है। इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। पर्यटन उद्योग से केवल पूंजी पतियों को ही फायदा मिल रहा है, जबकि जिले में अमरूदों की बागवानी कर रहे काश्तकार आज भी प्रासेसिंग यूनिट की आस लगाए बैठे है।
प्राकृतिक आपदाओं में होता है नुकसान
जिले में अमरूद प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने से किसानों को आय के साथ प्राकृतिक आपदाओं में अमरूद की बागवानी में लाखों रुपए का नुकसान हो रहा है। प्रतिवर्ष अंधड़, बेमौसम बारिश, बीमारी, कीटों से पौधे व फल नष्ट हो जाते है। ऐसे में फलों की बर्बादी को रोकने के लिए जिले में फूड प्रोसेसिंग यूनिट अब जरूरी हो गया है।
जिले में यहां है अमरूद के बगीचे
जिले में सूरवाल, करमोदा, दौंदरी, मथुरापुर, आटूनकला, गुढ़ासी, शेरपुर-खिलचीपुर, श्यामपुरा, ओलवाड़ा, पढ़ाना, मैनपुरा, अजनोटी, भाड़ौती, सेलू, रांवल, गंगापुरसिटी, बामनवास आदि स्थानों पर 15 हजार हैक्टेयर में किसानों ने अमरूद के बगीचे लगा रखे है। जिला मुख्यालय के आसपास के क्षेत्र रामसिंहपुरा, करमोदा, सूरवाल सहित कई गांव अमरूद की अच्छी पौध के लिए जाने जाते है। यहां बर्फखान गोला, लखनऊ 49, इलाहाबादी,सफेदा किस्म के अमरूदों की पौध तैयार की जाती है।
स्थानीय स्तर पर नहीं है बाजार
अमरूद के सबसे बड़े उत्पादक जिले के किसानों को न तो स्थानीय स्तर पर बाजार उपलब्ध है, न ही अमरूद व्यापार को बढ़ाने के लिए कोई कदम उठाए गए है। अब सरकार को चाहिए कि कृषि उन्नति के लिए चुनावी घोषणाओं को धरातल पर लाने के लिए कदम उठाए।
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