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00:00प्रेम बड़ी ताकत मांगता है, घटिया वस्तुकी और फिसल जाने की लिए कोई ताकत नहीं लगती, युही धलान पर फिसल जाने में ताकत लगती है, क्या?
00:09पर वास्तविक प्रेम माने उचाईयों से प्रेम में बड़ा द्रण संकर्ब चाहिए, कमजोर आदमी प्रेम नहीं कर सकता है, कुछ और ना आता हो हमको, पर प्यार निभाना आता है, नहीं हो सकता बाबा, और ऐसे बहुत मिलते हैं, जानू मेरे पास और कुछ भी नहीं है,
00:39और कवे की लीद उपर से नीचे गिरती है, उसको कोई बल लगता है, तो हमारा प्रेम वही होता है, उसमें कोई ताकत नहीं लगती है, देखो रॉकेट कैसा होता है, गती तो उसकी बहुत होती है, जबर्दस्त पर आग लगी होती है, या आग नहीं उसके प्रेम नहीं है