“ जो जो जीवात्माएँ उसके शरणागत हो गयीं,वे-वे अपने परम चरम लक्ष्य परमानन्द को प्राप्त कर चुकीं,जो-जो शरणागत नहीं हुई हैं उन्हीं के ऊपर ईश्वर की कृपा नहीं हुई एवं वे ही अपने लक्ष्य से वन्चित होकर ८४ लाख योनियों में काल,कर्म,स्वभाव,गुणाधीन होकर चक्कर लगा रही हैं।
फिरत सदा माया कर प्रेरा।
काल कर्म स्वभाव गुन घेरा।।
अब एक प्रश्न यह उपस्थित होता है कि यह तो सांसारिक सौदा हो गया कि हमने कुछ दिया तब ईश्वर ने कृपा की।किन्तु ऐसा समझना भोलापन है,क्योंकि शरणागति का अभिप्राय ही यह है कि हम कुछ न करें।कुछ न करने का नाम ही शरणागति है।जब तक नवजात बालक कुछ नहीं करता तब तक माँ सब कुछ करती रहती है;जब बालक कुछ कुछ करने लगता है तो माँ भी कुछ कुछ करना कम कर देती है;जब बालक सब कुछ करने लगता है तब माँ कुछ नहीं करती।बस यही उदाहरण पर्याप्त है।”
*- जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज*
( प्रेम रस सिद्धान्त )
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00:00Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Radha, Rad
00:30Ratha!
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