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00:00:00अश्टा वक्र गीता
00:00:04सात्वा प्रकरण
00:00:06पहला श्लोक
00:00:11जनक बात कर रहे हैं
00:00:18वारता अब वहां पहुंच चुकी है
00:00:21जहां अंतर नहीं पड़ता कि
00:00:23जनक बोल रहे हैं कि अश्टा वक्र
00:00:26वक्ता
00:00:32श्ट्रोता
00:00:36गुरुशिश
00:00:37समुद्र और बूंद
00:00:41एक हो चुके हैं
00:00:44पूरे सात्वा प्रकरण
00:00:54अमर्म है
00:00:58आत्मा
00:01:04की
00:01:09मन और
00:01:12जगत
00:01:14से असंबद्धता
00:01:18मन और
00:01:22जगत का
00:01:26द्वायत अपनी जगा है
00:01:29और आत्मा अपनी जगा है
00:01:32मन और जगत के द्वायत को ही
00:01:37प्रकरति कहते हैं
00:01:39तो प्रकरति का खेल है
00:01:42बिलकुल है अपनी जगा है
00:01:44वो खेल चलता रहता है
00:01:46मैं उससे असपरशित रहता हूं
00:01:49मेरा कोई लिना देना नहीं
00:01:51मैं उससे प्रतक हूं
00:01:53तो आगत सभी श्लोकों में
00:01:59भिन भिन दिशाओं से
00:02:02हमें यही भावरस मिलने वाला है
00:02:06मैं अनन्त महाम भोधव विश्रपोतितस्ततह
00:02:16भ्रमते स्वान्त वातेन
00:02:22न ममास्त्य सहिश्णता
00:02:27किसको ध्यान से समझेंगे
00:02:31मैं अनन्त समुद्र हूं
00:02:37मैं अनन्त समुद्र हूं
00:02:42जगत मुझे में गति करता है
00:02:47स्वान्त वातेन
00:02:48अपने ही भीतर की हवाओं
00:02:56से प्रेरित होकर
00:03:01कि जो हवाई है ये मन की है
00:03:04जगत क्या है
00:03:07नाव है या पोत है
00:03:09विश्व पोत इतस्तता
00:03:11इधर उधर घूम रहा है विश्व पोत
00:03:13बड़ी नाव
00:03:15मैं अनन्त समुद्र हूं
00:03:18और मुझे में जगत एक नाव की तरह है
00:03:21और इधर अपना वो
00:03:23हवाओं से
00:03:25जोके खाता जूमता
00:03:27इधर उधर होता रहता है
00:03:31तो संबंध किन दो का आपस में है
00:03:35हवा का और पोत का
00:03:39ठीक
00:03:41हवा माने मन
00:03:45और पोत माने संसार
00:03:52हवा को मन भी बोल सकते हो
00:03:54हवा को अहम भी बोल सकते हो
00:03:56बलकि अगर आप अहम कहेंगे
00:03:57तो उज्यादा शुद्ध होगा
00:03:59तो अहम का और संसार का आपस में संबंध है
00:04:06मेरा इन दोनों से कोई संबंध नहीं है अहम की दिशा बदलेगी तो संसार बदल जाता है हम बार बार बोलते हैं न कि आपका संसार आपके अहम की छाया मातर होता है तो अहम की हवा बदलती है तो संसार की इस्थिति बदल जाती हवा एक तरफ को चल रही थी तो वह जो पोत
00:04:36हवा थोड़ी तूफानी होई तो जो पोथ है वो भी धचके खाने लग गया एक तरफ कुछ आ रहा था पोथ हवा उधर कुथी हवा एकदम पलट गई पोथ एकदम पलट गया
00:04:46तो इन दो का बड़ा संबंध है अहम का और जगत का इनका आपस में संबंध है मैं अहम नहीं हूँ मैं वो अनन्तता हूँ जिसमें अहम जितनी चाहे गति कर ले लेकिन मुझे प्रभाव नहीं डाल सकता
00:05:09मुझे पर कोई असर कोई प्रभाव नहीं होता है अहम का हवाएं कि इतनी भी गति करती रहें उससे सागर को क्या आत्मतर पड़े जाता है ना तो सागर
00:05:26प्हेल जाता है ना संकुचित हो जाता है ना अपनी जगह छोड़कर कहीं और चला जाता है ना गंदा हो जाता है
00:05:39हाँ सत्य सत्य पर ऐसा लगता है कि उसमें कुछ गति हो गई हो बहुत सत्य होती है वास्तव में सागर तो किलोमीटरों गहरा होता है
00:05:48उससे बिलकुल जो सबसे उपरी छिलका होगा जो सबसे उपरी तल होगा सागर का उस पर आपको पिछ प्रभाव देखने को मिल सकता है नीचे तो कोई भी एसर नहीं होता
00:06:01एक बार कोई पुराना वीडियो है उसका हमने शीरशक दिया था कि
00:06:11गहराई असपरशित रहे लहरों के संघात से और सागर बिखर नहीं जाता हवाओं के आगात से
00:06:25यह वीडियो का टाइटल है पुराने टाइटल ऐसे होते थे तो फोजिएगा मज़ा आएगा और जो बात उस शीरशक में थी वही बात विलकुल इस श्लोक में है गहराई असपरशित रहे लहरों के संघात से और सागर बिखर नहीं जाता हवाओं के आगात से करीब 18 साल पह
00:06:55वही हाँ परश्टा होकर कह रहे हैं कि मैं तो सागर हूँ यह हवाएं बहती रहती हैं मेरा यह कुछ नहीं कर देंगी लेकिन हाँ इन हवाओं से विश्व की दशा दिशा सब बदल जाती है क्योंकि ये दोनों एक दूसरे पर आशरित होते हैं कौन हंकार और संसार ये एक
00:07:25हवा रुख गई संसार रुख गई यही सब इनका खेल चलता रहता है ये अपना खेल खेलते रहें मेरी गोद में इनका खेल चल रहा है मुझे क्या फर्क पड़ता है ये दोनों एक दूसरे पर पर आशरित हैं मेरा क्या जाता है
00:07:40तो मेरा कुछ जाता नहीं मेरा कोई लेना देना नहीं इसके लिए बढ़ा संदर शब्द यहां प्रष्टाओक्र लेकर आते हैं कियते हैं मुझे क्या सहिशुनता होगी सहिशुनता कि एप इन सब चीजों के लिए सहिशुन हूं सहिशुन से हम आम तोर पे अर्थ लगात
00:08:10कहते हैं तो आद है कि मैं दर्द हो गया लेकिन हमें प्रतिक्रिया दरशाइं च fulfilling हैं
00:08:25कि यह तर बए बरदाशतर गये आपको रगए लेकिन मैं प्रतिक्रिया दर्शाइं नहीं अपने
00:08:33चाहिबहले नहीं लेकिन प््रतिक्रिया तो हो चुकी है क्या है फ्रतिक्रिया डर्द ही तो प्रतिक्रिया और यहाँ पर ज सहनशीलता
00:08:40है जो तो ही आगए गिर लग ओर आंगे है यहां ही किरे मुझे दर्द यह कि होता � armed
00:08:43मुझे दर्द होता ही नहीं वो जो विश्व पोत है वो अभी इधर स्थे थे कहां एशिया में वहां से बहते भटकते वो जाकर अफरीका पहुँच गया मुझे कोई फर्क पढ़ाई नहीं ये उस कोटी की सहिश्णुता है मुझे कोई अंतर नहीं पढ़ता
00:09:06जितने भी उच्चतम गुण है जीवन के जानते हूं सारे के सारे कहां से निकलते हैं मुझे कोई फर्क नहीं पढ़ता
00:09:17आप कोई गुण बताईए चलिए खेल खेल लेते हैं आपने उसकी जो भी परिभाशा कर रखी होगी वो सामाजिक नैतिक होगी लेकिन अगर आप उसकी वास्तविक परिभाशा पर जाएंगे तो वास्तविक परिभाशा में आपको एक ही बात मिलेगी मुझे कोई फर्क �
00:09:47या या दया इनको मच्छा मानते ना जहां दया धर्म है जहां अब इस आप की बाते चल रही थी तो इनी दों को ले लोग दया और श्रमा का अर्ध आम तोर पर हम यही लगाते हैं कि उसने आकर मुझे चोट पहुचा दी लेकिन मैंने उसको माफ कर दिया उसने तो चोट �
00:10:17म्हाँ पड़ा ही नहीं तो शमा क्या करोंगा यह हुँग वास्तविफ्छमा कि वास्तुफ्छमा यह वी वास्तुफ्छमा इसी तरीके से एक दया वह उती जिसमें सामने वाले की इस्थिति देखके आपको बुरा लग जाता है प्योंकि आपकी इस्थिति भी लगभग �
00:10:47रहा है मैं जानता हूं कि ये जूट है लेकिन मैं फिर भी तुम्हारी मदद करूंगा मैं तुम्हारी मदद इसलिए
00:10:54नहीं कर रहा कि मुझे फर्क पड़ गया है मैं तुम्हारी मदद ठीक इसलिए कर रहा है
00:10:58क्योंकि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है
00:11:00मैं जान गया हूं कि तुम्हारे आसो जूट है
00:11:02तुम्हारा दर्द तुम्हारी कराह जूट है
00:11:04तुम्हारी पुकार जूट है
00:11:05यह सब मैं जान गया हूं
00:11:07और यह जानने के बाद जब
00:11:09मदद करी जाती है
00:11:11जब दया दिखाई जाती है तो उस दया का रंग अनूठा होता उसको फिर करुणा बोलते हैं जीवन में जो भी उँचे से उँचा होगा वो आपके आत्मा सभाव से ही निकलेगा और अगर कुछ ऐसा है जो आपके आत्मा सभाव से नहीं निकल रहा है लेकिन उँचा लग �
00:11:41नयतिक किस्म के सदगुण होते हैं, उनको सबको त्याग दीजिए, हम कहा रहे हैं, उन सदगुणों से आगे अभी आकाश बचा हुआ है, अभी और उपर जाना है, जो हमारे सदगुण होते हैं, वो सब सदगुण अहंकार को सही दिशा दिखाने के होते हैं, लेकिन होते है
00:12:11निर्गुण का गुण होता है जो हमारे आम सद्धुण होते हैं कि अहंकार कैसे आत्मा की और बड़े सब्धुन किसके
00:12:28प्रक्रति के होते हैं तो अंकार प्रक्रति के मध्य कैसे यात्रा करते हुए मुक्त हो जाए
00:12:35प्रक्रति में ही अगर वो मुक्ति की और दिशा को जा रहा है तो हम कहते हैं कि सद्गुणी है
00:12:41सब्गुन प्रक्रति के भीतर ही हैं तो यात्रा प्रक्रति के भीतर कर रहा है पर मुक्ति की दिशा में तुम कहा देते हैं कि ये व्यक्ति सद्गुनी है और वह प्रक्रति में यात्रा कर रहा है और धस्ता जा रहा है उसी प्रक्रति की दलदल में तो हम कहा देते हैं क्या व
00:13:11क्योंकि सदगुण अंतता आपको मुक्ति दिलाएगा तो वो ठीक है कि सदगुण जो है गुण से तो श्रेष्ट होता ही है लेकिन सदगुण से अभी जो श्रेष्ट गुण होता है हम कहा रहे हैं वो निर्गुण का गुण होता है यहां पर जो आपको बताया जा रहा है व
00:13:41मन इदर उधर जो चाहे करता रहे अरे यह दुनिया का जहास जहां चाहे भटकता रहे
00:13:55कि यह आख्षरी सही शुनता है दुनिया को यह भी सही शुनता जैसे ही लगेगी दुनिया आ시면 को बोलेंगी बहुत बरदाश करते हो तुम
00:14:06दाद देते हैं आपकी सहनशीलता की बहुत उदार आजमियों और अगर आपने सच मुझ बरदाश्ट करा है तो आप ऐसे गएंगे सच मुझ बड़ी मुश्किल थे इसको दो घंटे जेला
00:14:22को यहाँ जनक हैं आप जनक को जाकर बोलेंगे क्या सच्षृता दरशाही आहां क्या बोलेंगे
00:14:34कि पर मैंने तो कोच जेलाई नहीं कुछ हुआ था क्या इंग कुछ रुए था क्या हां वो जगत-पोथ जाकर बिढ़ टूट ताट गया था अच्छा-च्राइब
00:14:47रहें कोई फरक तो मुझे पढ़ा नहीं कुछ हुआ होगा मैंनू की तो मुझे काई के लिए बढ़ाई दे रहे हो कि ये बड़ा सहिश्ण आदमी है
00:14:59जब आपको कुछ लेना देना नहीं रह जाता तो आप कुणों की खान वन जाते हो
00:15:18जब आपको जगत से कोई प्रियोजन नहीं रह जाता तब आप जगत के लिए कल्यानकारी अम्रित बन जाते हो जिससे आपको प्रियोजन होगा
00:15:32आप या तो उसका नुक्सान करोगे या मदद के नाम पर नुक्सान करोगे यह कैसी बात हो गई
00:15:39या तो खुला नुक्सान करोगे
00:15:43जिससे हमें प्रियुजन होता है दोई तरह का होता है
00:15:45या तो हमारा दोस्त होता है या हमारा
00:15:47दुश्मन होता है
00:15:49अगर दुश्मन है तो उसका नुक्सान करेंगे
00:15:51और अगर दोस्त है तो
00:15:53मदद के नाम तो उसका नुकसान करेंगे अगर पराया है तो उसको
00:15:58नुकसान देंगे और अगर अपना है तो उसको लाव के नाम पर
00:16:02नुकसान देंगे जिससे आपको लेना देना है आप उसका सत्यानाश
00:16:08करोगे क्लम आप सिर्फ उसी के आ सकते हो जिससे आपको लेना देनाना नहीं कितनी अजीव रात तुमाने जो लोग
00:16:17बिल्कुल जिनकों मैं जानता नहीं, उनकेे क्म काम आ रहा
00:16:19हूं ना ना यहां उसकी बात नहीं हो रही है अभी तो आप उनको छिष यह
00:16:24कि नहीं जानते क्योंकि वो आपके मार्सिक जगत में आए ही नहीं सूचना बनके जैसे उस सूचना बनकर आएंगे आप इनको जान जाो कि फिर आप इनसे शनाता बना उगए तो, उस असंबदधता की बात महीं होhésitez
00:16:38तो सिर्फ साइयों के खोती है क्योंकि अभी तो सूचना ही नहीं आई है
00:16:43उदारण के लिए आप में से कोई भी इस वक्त पर पकॉड़े खाने के लिए नहीं भाग रहा है
00:16:50आप कितने अच्छे लोग हैं सब बैठ करके यहां पर अश्टा कर महराज को सुन रहे हैं एक भी आदमी पकॉड़े खाने नहीं भाग रहा है क्या बढ़िया लोग है वो इसके नहीं भागर क्यों कि अभी किसी को बताए है नहीं क्यों पकॉड़े रखें फ्रिज में
00:17:01तो यह फिर कौन सी आपकी सज्जनता है जो अज्ञान पर आश्रित है सूचना भी आई नहीं ना सूचना भी आई नहीं इसलिए आप भागे नहीं सूचना आते ही भागोगे लेकिन अगर कोई दूर से देखे और उसको बताया जाए हैं क्या क्या रख्षा बताया बहुत
00:17:31वैराग ये देखो क्या पकोड़े रखे हैं लेकिन ये अद्वयत विदान तुम्हें अभी पता ही नहीं
00:17:39तुम्हारी हालत तो ऐसी है जैसे कि कोई पांच साल के बच्चे को बोले ब्रहमचारी
00:17:44कि देखो इसमें बिल्कुल कामवासना नहीं उठती है प्रड़कियों को देख करके
00:17:48अरे अभी अभी उसके भीतर वो सूचना ही नहीं उठ रही है
00:17:54बात तो तब है न जब सब कुछ हो लेकिन तुम्हारे लिए ना हो
00:17:59जब सब कुछ हो तुम्हारे लिए ना हो
00:18:02तो जब हम कह रहे हैं
00:18:04कि जिससे तुम्हारा लेना देना हो जाता है
00:18:06उसको बरबाद करके छोड़ते हो चाहे वो तुम्हारा दोस्त हो चाहे तुम्हारा दुश्मन हो
00:18:10और हम कह रहे हैं कि आप कल्यान कारी उसी के लिए हो सकते हैं
00:18:12तो उस्सी आशा हमारा यहां कि आप ऐसे हो गए हैं आप में समपूर्ण कि कि आप किसी से कुछ ले ही नहीं
00:18:22सकते हैं जाकर के मैं आप सामने वाओ्ले के लिए कल्यार्कारी हो जाते हैं
00:18:40न सामने वाले के प्रति अब आपके पास कोई कामना है न कर्तव्य है
00:18:49उसके प्रति जब कामना होती है तो तुम उससे कुछ लेना चाहते हो
00:18:55उसके प्रति जब कर्तव्य होता है तो तुम्हें वो दुश्मन जैसा लगता है
00:18:58क्योंकि कर्तव कारत है तो मैं उसे कुछ देना है
00:19:01कर्तव रिण जैसा होता है
00:19:03आपका
00:19:05किसी के प्रति कुछ कर्तव है वो बात एक कर्ज
00:19:07जैसी है तो आदनी
00:19:08आपको दुश्मन लगे गई लगेगा
00:19:10और आपकी
00:19:13किसी के प्रति कामना है
00:19:14ये बात
00:19:17अंतर्दाह जैसी यह, वो है, कामना के
00:19:19चीज बैठा हुआ है, मैं छालांग मार के खाई नहीं उसको
00:19:21दबोचूंगा, ना कामना है, ना कृसब्वे हैं, towards
00:19:25अब कल्याण अ ना कामना है, ना करतव्वे हैं, अब
00:19:31कल्याण ना क्ल्याण जिसके प्रते आपकी कामना
00:19:34आप उसके दुश्मन हो गए, जिसके प्रते आपका कर्तव्य है, आप उसके दुश्मन हो गए, जगत का हितैशी सिर्फ वही होता है, जिसकी दूसरों के प्रते ना कामना है ना कर्तव्य है, अपकल्यान है, अपकल्यान है, यह जो आत्मस्त है, जीव है, जिसकी इहां बात ह
00:20:04कुछ भी होता रहे दुनिया में मैं असहिश्रू नहीं होता क्योंकि मेरे पास कामना नहीं है
00:20:11मैं यह नहीं कहता जो हुआ क्यों हुआ कुछ और होना चाहिए था मेरे मन मुताबिक क्यों नहीं हुआ
00:20:17है जो हो रहा है मेरे मन मताबिक है क्योंकि मेरा मन तो अपने आप में पूर्ण
00:20:47कशलकत्त से वो दो इमते देरी से propor कि यहांज त्यार खड़ें इंदर उदर जाने को एक
00:20:54बंबबई को आ Iyavat कि अपको क्या फर्क पड़ रहा कि कि आप को पर क्यों नहीं
00:21:02रहा है क्योंकि आपको जहां पहुंचना था आप पहुँच चुके हो आप अपनी जगह पर स्थापित हो आपको फूरक इसलिए नहीं पड़ रहा है
00:21:15जो होता रहे हैं उससे न मेरा कामना का रिष्टा न मेरा कर्टब्बे का रिष्टा
00:21:24जो ऐसा हो जाता है वो अश्टा वक्र हो जाता है जो अश्टा वक्र हो जाता है वो जगत के बहुत-बहुत काम आता है यह बात असानी से पचेगी नहीं हम सोचते हैं कि मेरे और जगत के दोयतात्मक रिष्टे में मेरा करल्याण तब होता है जब जगत से मेरी कामना पूरी
00:21:54मुझे इस इंसान से मिल जाए
00:21:55और उस इंसान की भलाई ये है
00:21:57कि मेरा उसके पते जो फर्ज है दाइत तो है
00:21:59जिम्मदारी है करतव है मैं उसको
00:22:01पूरा कर दूँ यही होता है ना
00:22:03और ऐसे हमारे लिंदेन के रिष्टे होते है
00:22:05तुम मेरी कामना पूरी करो
00:22:08मैं तुम्हारे लिए अपना करतव निभाऊंगा
00:22:10यही होता है ना
00:22:11अश्टाव कर समझा रहे है
00:22:15मात्र अद्वैत में अद्वेश है
00:22:18मात्र अद्वैत में ही अद्वेश है
00:22:23नहीं तो जहां राग दिखे
00:22:26वहां भी द्वेश ही द्वेश है
00:22:29जहां दोईश यह वहां तो दोईश है जहां राग दिखें वहां भी दोईश है
00:22:36कितने सुन्दर तरीके से बोला है ब्रहमति स्वांत वात gifts अरे तु अपने अंद्डर
00:22:44कि चीजों से
00:22:47घूम घामरा है
00:22:49मेरा कोई लेना देना नहीं
00:22:51स्वान तवातेन
00:22:53यह जो बात है वाईू है
00:22:54वो तेरी अपनी है
00:22:55मेरा कोई लेना देना नहीं
00:22:58लेना एक न देना दो
00:22:59तो जो आरी बात
00:23:04ना काहू से
00:23:09ना काहू से
00:23:12और जब न काहू से दोस्ती न काहू से बैर तब सब की खेर
00:23:20कविरा खड़ा वयार में मांगे सब की खेर
00:23:27अब सब की खेर होगी क्योंकि हम सोचते हैं जिससे हम
00:23:30दोस्त हो जाते हैं उसकी खेरियत होती है नहीं नहीं
00:23:35तुम जिसके दोस्त हो जाते हो उसकी जान ले लेते है ना काहू से दोस्ती ना काहू से बहर गड़बड़ी ही होती है दोयत के दोनों सिरों को एक साथ नकारने की जगए हम उनमें से सिर्फ जो अप्रिय सिरा है जो नापसंद सिरा है उसको नकारना जाते हैं लगे हुए हैं
00:24:05यह कहां की गणित बता दिया अपने
00:24:09अचारे लगाते हैं तो आपको तो बात करनी चाहिए ना कि दुनिया में प्रेम बढ़े
00:24:16और आप कह रहे हैं कि
00:24:17प्रेम नहीं रहना चाहिए
00:24:21बात तो समझने
00:24:23कोई वज़ा है ना
00:24:24यह बुल रहे हैं ना काहू से
00:24:26दोस्ती ना काहू से बैर
00:24:28जिसको तुम अपना प्रेम बोलते हो
00:24:31उसी के मारे तो हिंसा है
00:24:33जिसको तुम अपना प्रेम बोलते हो
00:24:37वो दो तरीके की हिंसा करता है
00:24:39पहली बात तो उस प्रेम के प्रतिक्रिया स्वरूब हिंसा आती है
00:24:43उस प्रेम के साथ साथ इन साथ ही आप जब कहते हो प्रेम किया तो किसी एक सी तो प्रेम करते हो
00:24:49बाकियों को पराया बना दिया आपके प्रेम के साथ परायापन चलता है कि नहीं चलता है
00:24:53आप बोलते हो मैं अपने बच्चे से बहुत प्रेम करता हूँ
00:24:56और बच्चे से प्रेम करने का मतलब यह होता है कि बाकी बच्चों से कम ही प्रेम करूंगा मैं अपने बच्चे से बहुत प्रेम करता हूं तो अपने बच्चे को कोई हाल ऐसा आ सकता है जिसमें बचाने के लिए अपने बच्चे की बहतरी के लिए मैं दूसरे बच्चों का
00:25:26नहीं है। आप जब बोलते हो कि आप अपने बच्चे से प्रेयम करते हो तो वास्तव में आप बस उसको अपनी पसंद की एक छवी में ढालना चाहते हो।
00:25:41कि आप जानते ही नहीं कि किसी भी व्यक्ति के लिए सच्चमुच अच्छा क्या होता है।
00:25:46आप बस उसको वो दे देना चाहते हो जो आपको लगता है कि अच्छा है।
00:25:54आप कह रहे हो कि जो चीजें आपको पसंद है वो आपके बच्चे को मिल जाए। पर क्या आप जानते भी हो कि जो कुछ आपको पसंद है वो सच्मुच आपके हितका है।
00:26:06जहां आपका प्रेम आया वहाँ दो तरह की हिंसा आ गई पहली बात तो प्रेम का अर्थी है विभाजन जो साधारण प्रेम होता है मारा लौक एक प्रेम उसका अर्थी है विभाजन एक चीज पसंद है तो दूसरी को ना पसंद करना पड़ेगा
00:26:19आप दुकान में गए हो आपको शर्ट खरितनी है दुकानदार ने च्छे दिखाई एक को उठाने का मतलब ही है बागी च्छे का असुईकार एक पसंद है तो बागी छोड़नी पड़ेगे और दूसरी बात यह कि जो आप पसंद कर रहे हो उसके पीछे मूले बड़े अज्
00:26:49नहीं है लेकिन फिर भी हरोसा कुछा है कि काम यहीं करना है आप जगत से की सुट मिटाना चाहते हो इस सूतरो प्रवत अच्छे शब्ट लीजाएगा आप जगत से जो कुछ मिटाना चाहते हो उसके फिक्र ही छोड़ दीजिए उसके फिक्रीत को मिटा दीजिए वेघि�
00:27:19कोई आप से बहुत दूर चला जाता हूँ बहुत अखरती आपको ये बात है हासले बढ़ जाते हैं दूरियां बढ़ जाती है
00:27:29नजदीकियां कम कर दीजिए नजदीकियां कम कर दीजिए दूरियां कम हो जाएंगी
00:27:40हम जैसे हैं जिसको अपने बहुत नजदीक लेकर आएंगे हो
00:27:46नहीं सकता कि वह हमसे छटक कर बहुत दूर नचला जाए जो चीजज कर ना
00:27:55चाहते हो उस चीजज पर नहीं उसकी विप्रीत पर ध्यान दो दुखë
00:27:59कि घ्ञान हटाना चाहते हो तो अपने अपर द्यान दो तुम्हरा ज्ञान झूतलन कों हटा दो अजना
00:28:11घ्यान के अड़ी चाहते हो जिसको अपना बल्फिते हो उस्से दूर ूजा टाऊ
00:28:29अब कम्जूरी को बल बनना पड़ेगा
00:28:33समझे आ रही है बात
00:28:40नहीं आई और बात समझे
00:28:43आप उधारण के लिए भी आयाम करते हो आप जिम जाते हो
00:28:57और बहुत दिनों जाते जाते भी आप पाते हो या आपके कंधे मजबूत नहीं हो रहे
00:29:04और जाते हो आप समय लगाते हो व्यायाम करते हो लिए इनकंधे नहीं मजबूत हो रहे
00:29:09बहुत से देखो क्या मजबूत कर लिया
00:29:18तुम कंदों की जगह किसी और अंग का व्यायाम खूब कर रहे हो
00:29:23और जो अंग कमजोर होता है उसका व्यायाम करो तो दर्द होता है
00:29:30वहां मासपेशियां हैं यह नहीं इतनी उन पर बोश डालो
00:29:33तो दर्द करेंगी दूसरा अंग है जो आपने खूब मजबूत कर लिया है आपने मजबूत कर लिया है तो वह फिर व्यायाम मांगता है उसमें प्रसंड़ता होती है जब आप वजन डालते हो
00:29:50और जब तक आपके पास कोई ऐसा अंग रहेगा जो मजबूत है
00:29:55कि k
00:30:13क्योंकि जिम में घुष्ते ही क्या कर रहे हो
00:30:20वागें मजबूत होती जा रही होती जा होती जा रही होती है होती जा
00:30:23और आणंद भी आता है महामा सपेशिया और उसLEY चाते बैट जाते ही और वजन लगा लिया
00:30:33टानगों को छोड़ना पड़ेगा कि टानगों को छोड़ दो कंद envy मजबूत जाएगे कि बल को छोड़ दो बलहीनता मिट जाएगी
00:30:44बैसाखियों को छोड़ो दो चलना सीख जाओगे.
00:30:58द्वायत का नियम है कि यहां हर चीज अपने विपरीत पर आशरित होती है.
00:31:05अद्वायत का नियम है कि यहां पर कुछ भैसा है ही नहीं जो दूसरे पर आशरित या अवलंबित हो.
00:31:14आत्मा को कहते हैं वो जो निरालंबित है, सत्य वो जो निरालंब या अनवलंब है, किसी पर भी वो अवलंबित नहीं है, टिका हुआ नहीं है, किसी और के भरोसे नहीं है, तिर्व वहीं चैन मिल सकता है, उसी का उल्लेखा जनक कर रहे हैं.
00:31:38जगत हवाओं के भरों से हवाओं तो सयोग वाली बात है प्रक्रतिकी हवाओं
00:31:46अगर आप उस पोत में बैठ गए
00:31:50तो आप सयोगों के सुपुर्द हो गए
00:31:55और कैसी फिर पराजय की
00:32:00असहायता की
00:32:04बलहीनता की
00:32:08भावना आती है जब आपकी इस्थिति आपके नहीं सयोगों के हाथ में होती है बुरा लगता है न
00:32:16आप एक ऐसे पोत पर सवार हो
00:32:19जिसका कोई चालक दल ही नहीं है
00:32:24जिसे कोई चेतना नहीं चला रही जिसको हवाओं का संयोग चला रहा है आपकी इस्थित कैसी रहेगी बड़े आनंद की रहेगी ना बड़ी दुर्दशा की रहेगी बड़ी असहायता की रहेगी
00:32:38हाई ये मेरा क्या हाल है अश्था वक्र कह रहे हैं ये सब चलता रहेगा तुम इसके साक्षी समुद्रों ये सब हो रहा है
00:32:56तुम्हारे ही भीतर हो रहा है तुम्हें सब को देख रहे हो लेकिन इन सब से तुम पर कोई असर नहीं पड़ रहा है
00:33:01मन की हवाओं को सयोगों के चलते गति पकड़ते देख रहे हो दिशा बदलते देख रहे हो
00:33:11देखा तुमने तुमने ये भी देखा कि जो आज तुम्हारा संसार था कल कैसे पलट जाता है
00:33:18सब देखा तुमने
00:33:19बीतर द्वयात का खेल चल रहा है
00:33:22आज का दोस्त कल का दुश्मन हो जाता है
00:33:24आज की दौलत कल की गरीबी बन जाती है
00:33:27आज का ग्यान कल का धोखा बन जाता है
00:33:32इस अब देखा
00:33:35अब देख के क्या गा
00:33:38क्या गा
00:33:42चीक
00:33:45ऐसा हुआ
00:33:48हमने देखा
00:33:52ब्रहमति स्वानतवातेन ब्रहमन कर रहा है
00:34:05ब्रहमन कर रहा है
00:34:09दुनिया क्या करती है मटगश्ती करती है
00:34:14ऐसे ही है कुछ बना है कुछ बिगडा है
00:34:18कभी प्रभव है कभी प्रल्ए कुछ आ जाता है पूछ चला जाता है आज दिन भर आपके साथ घटनाई
00:34:25घटी होंगी आप से पूछ के घटी थी अ
00:34:28कि अधर अपने अपने बीते दिन को याद करिये क्या क्या घटनाई हुई है
00:34:34कि आज सुबह आपसे पूछा गया होता कि आपके साथ क्या-क्या होगा जो कुछ हुआ है वही बताते आप
00:34:40आज सुभव पूछा गया होता बताओ आज क्या-क्या होगा तुम्हारे साथ तो आज हुआ वही पता पाते रहते हैं यह यह भी हुआ वो भी हुआ हमने हमने देखा
00:34:58हमने देखा
00:34:59न ममास ते असहिश्णुता मुझे उससे कोई असहिश्णुता नहीं है
00:35:14मुझे कोई अपेक्छा ही नहीं है
00:35:22मैं भरपूर
00:35:24या ऐसे कहलो कि मेरी उससे अपेक्छा ही यही है कि वो अपना प्राक्रति खेल खेलता रही है यही अपेक्छा ही यही है कि वो बस प्रक्रति बनी रहे आत्मा ना बन जाए
00:35:39जो चीज जैसी है मेरी उससे इतनी है पेक्षाई कि वो वैसी ही रहे उससे बड़ा कोई अर्थ न ग्रहन कर ले
00:35:51सड़क सड़क है खंबा खंबा है फूल फूल है लता लता है रेत रेत है समुद्र समुद्र यह सब है इनके आपसी सही हो गया मज़ेगी बाद जानते हो क्या है आज जो रेत है वो कल का पुश्प है
00:36:14यह आपस में इस तरह से संयोग से रूप परिवर्टन करते रहते हैं लेकिन इनका रूप ऐसा रहे कि वैसा रहे मैं अपनी जगए हूँ मैं इन सब रूपों को परिवर्टे तो होते देखता रहता हूँ मुझे पता यह क्या है
00:36:35मैं असमबत थी हूँ
00:36:44मैं अस्परशित्य।
00:36:48मैं अनाश्यृत्य।
00:36:52मैं निश्काम।
00:36:55जब ऐसा था हमने तब भी देखा जब ऐसा है हम तब भी देखेंगे हैं।
00:37:06और इससे उंचा कोई पद जीवन में नहीं होता।
00:37:12एक कसोटी पकड़ लीजेगा बता रहा हूं। यह जानने की कि आप
00:37:21अजन्म कितना सार्थ थक है।
00:37:24एक इनसान के नाते आपका कड़ कितना उचा है। यह जानना है।
00:37:29तो फीता लेके अपना कड़ मतनापने लगिए गए। तरीका दूसरा है।
00:37:36जो कुछ आपके साथ अच्छे से अच्छा हुआ हो मानलो हफ़ते दस दिन महीने भर में उसको याद करो।
00:37:43और जो कुछ आपके साथ बुरे से बुरा हुआ हो हफ़ते महीने में उसको याद करो।
00:37:50कर लिया।
00:37:53इन दोनों बाहरी इस्थितियों में आपकी आंतरिक इस्थिति कितनी बदल ग衣
00:37:58यहाद करो
00:37:59यह है बाहर की स्थिति बहुत प्रीयी ज़ु रहा है रशुर ले परसर,
00:38:12ओर आके बाहर की स्थिति अति अप्री है अघर अंगार परस रहे हो
00:38:18तो यहां अंगूर से अंगार की आत्रा हो ओगी बाहर ज़नी भीतरी स्थितियात करो जब अंगूर
00:38:30बरस रहे थे तब भीतर क्या हालत थी और के और ये जोörtई और अंगारइने के स्थितियों में जितना अंतर हो
00:38:40आपका अस्तित्वगत कद उतना छोटा है और दोनों अंतरे के स्थितियों में अंतर जितना कम हो आप उतने आकाश्वत उचे हो
00:38:57जब कुछ आपके साथ बहुत अच्छा हुआ था तो भीतर से कैसे हो गए थे जब बहुत बुरा हुआ था तो भीतर से कैसे हो गए थे
00:39:04अगर भीतर से एक जैसे रहे हो तो बहुत उचे आदमी हो आप, हो गया जीवनसार तक, और प्रिये इस्थिति में एक हो गए आप, अप्रिये इस्थिति में बिल्कुल दूसरे हो गए आप, तो भी बहुत सीखना बाकी है, दिल ये भी बहुत दूर है, चरही वेती, आगे �
00:39:34ये परिक्षण अपना आप रोजी कर लिया गरिये, कुछ बहुत अच्छा हो, अपने आप दूर ही अच्छा तो बहुत है, भीतर से हमें कितना हिला गया है, और इससे बड़ा आनंद नहीं है, कि बाहर कुछ बहुत जबरदस्त घटित हो रहा है, अच्छा या बुरा, द
00:40:04इससे उंची कोई स्थित नहीं होती, ये निर्वानों का निर्वान है, बाहर कुछ चल रहा है, जो बहुत अच्छा है, और सत्मुच अच्छा है, मन को भारा है, इंद्रियों को लुभा रहा है, भीतर हमारे कुछ हो ही नहीं रहा, और ये नहीं कि बाहर लुभा रहा है,
00:40:34हमें अंगूरों से को दुश्मन नहीं है क्या बरस रहे थे हमने भी ऐसे लेके जेब में डाल लिये दस्ट लिया मीठे मीठे बड़े-बड़े अंगूर फटा-फट उसके मिठाई जैसे अंदर लिया अंगूर अंदर गया पर जो सचमुच अंदर है
00:40:52उसे किसी मिठास से कोई मतलब नहीं बढ़िया आदमें और खाओ अंगूर तुम्हें अंगूर नुकसान नहीं करें और खाओ खाओ
00:41:11डापटी का ख्याल रखना बस बाकि कुछ नहीं आत्मा की और से हरी जंडी है पेट खराब हो सकता है तुम्हारा बस आत्मा खराब नहीं होगी तो आदमी बढ़िया हो
00:41:26कि कि आदमी को आप खाते आ रहे खाते आ रहे तो अंतर ही नहीं पड़ा और नहीं अंगूरों से कोई अपेक्षा थी कि अंतर नहीं पड़ा तो खाओ फिर फाइदा क्या खाने का
00:41:41आम आदमी को आप कुछ बढ़ियां चीज खेलाएं और उसे कोई अंतर न पढ़े तो रुक जाएगा चिढ़ जाएगा क्या बोलेगा होगी बढ़ियां चीज हमें तो इससे कोई अंतर पढ़ नहीं रातमकाय को खाएं इससे सिर्फ यह पता चलता है कि उसे उम्मीद थी कि
00:42:11अभी अंगूर खाए आगे बढ़े तो कुछ और चल रहा है जूते खाए जूते खाए यहां चोट लगी हाय हाय हुआ हुआ इधर जुके उधर बचे बड़ी मुश्किल से भगे और यह थुड़ी अजूते पट्रणों खड़ी रहेंगे अश्टा उकर भी ऐसा ना करें
00:42:41रख करके जैसे अंगूर खाए आता है जूता भी रखके खाएंगे तो हो गया इधर अधर हो गया जूते खाए देहने खाए हमने कुछ नहीं खाया है अंगूर भी देहने खाये थे जूते भी देहने खा लिये हमने कुछ नहीं खाया है भीतर से हम वैसे ही है बिलकुल व
00:43:11रंग में जो रहे ऐसा दिल्ला को एक रंग एक रंग में भीतर रहने एक शम्ता आ
00:43:24जाती है तो उसके साथ अधिकार मिल जाता है बाहर सब रंगों में नहाने का
00:43:34यतने रंग हैं फिर सब आपके लिए जाओ नहाओ अब जीवन आनंद है
00:43:41अब प्रक्रति के साथ जोड़ी बनाकर नित्य हो सकता है क्योंकि कोई उम्मीद
00:43:52ही नहीं है आपको कि प्रक्रति से कुछ लेना है उसके प्रति कोई कामना नहीं है तो एक निश्काम आप उससे
00:44:06रिष्टा रख सकते हैं यह जीवन का चरम होता है
00:44:12पूरी तरह डूबे हुए हैं पूरी तरह डूबे हुए हैं लेकिन भीग नहीं रहें
00:44:24कोई अनाडी देखे तो उसको लगेगा कि प्रक्रति हमारे भीतर ही प्रवेश कर गई यह नहीं भीतर नहीं प्रवेश कर गई उसमें डूबे हुए हैं लेकिन भीतर हमारे तो बस हम ही हम हैं भीतर हमारे तो बस मैं ही मैं हैं प्रक्रति में डूबे हुए हैं बाहर बाहर �
00:44:54निकल गए तो निकल गए भीतर हमारे वो प्रवेश्ट थोड़ी कर गई है कि हम बाहर उससे निकल भी गए तो भी अपने भीतर उसको रखे हुए है है
00:45:00आप कोई कपड़ा लें उसको पानी में डाल दें पानी से बाहर निकाल दें
00:45:08तो भी वो अपने साथ पानी लेकर बाहर निकलता है
00:45:12पानी से तो बाहर निकाल दिया है लेकिन पानी उससे बाहर नहीं निकला
00:45:15तो पानी लेकर के भूम रहा है
00:45:19और मुक्त पुरुष की क्या दशा होती है वो पानी में रहकर भी सुखा रहता है तो इसलिए अब उसे पानी से डर नहीं लगता है वो कूप छप छप करता है क्यों करता है मौज है
00:45:31वो गीला होई नहीं सकता तो उसको अधिकार मिल जाता है अनन्त छप छप करने का पुए ज़र छप करी उदर छप करी
00:45:40किसी को छपचप पसंद आगे अंगूर खिला देगा
00:45:46किसी को पसंद नहीं आई जूते खिला देगा
00:45:48तो यह आतनी हो दोनों खा लेगा
00:45:50फिर छपचप करेगा
00:45:52आरिया संतों ने इसलिए बार बार
00:46:04मन के जगत के प्रकृति के निसारता के
00:46:08आपको कितने गीच सुना रहे हैं
00:46:12देखत ही छुप जाएगा ज्यों तारा परभाद
00:46:21पानी यह दिए बात हो रही न कि विशाल समुद पानी केरा बुदबुदा
00:46:34असमानस की जाद असमाने ऐसी मानस माने मनश ऐसी मनश की जाद यह ऐसा इंसान होता है इसा पानी का बुदबुदा
00:46:43अभी फट से मिटेगा
00:46:46क्या इससे बड़ा संबंद बनाना क्या इसको आत्मा में स्थान दे देना
00:46:53यह पूरा जगत ही ऐसा है अभी है कल नहीं है कौन उससे
00:47:02आगे की उमीद रखे अभी है अभी है तो अभी मौज कर ठीक इतना निश्चित है कि अभी है ठीक छोटे-छोटे बच्चे
00:47:16बुलों के पीछे दौड रहे अच्छी बात प्यारी बात खेल लिया लेकिन कोई बच्चा बोले बुलबुले पैक करके घर ले जाओंगा कल स्कूल में जाकर दोस्तों को दिखाओंगा यह चाटा खाएगा
00:47:28अरे अभी बुलबुले हैं उड़ रहे हैं दौड उनके पीछे मौज कर खेल
00:47:38आगे की कोई उम्मीद नहीं आगे कोई ही नहीं उम्मीद कैसी पुक्ष्ण
00:47:48आप से पूश्ण पूश्ण पूश्ण पूश्ण होता तो आपका वर्तमान कैसा होता
00:47:59बहुत सुंदर होता है काश कि आप भविश्य को मार सके आपका वर्तमान खेल उठेगा
00:48:10तो जो
00:48:18आपत पुरोश्य और ध्यापने पुरोश्य है उसकी एक पहचान यह भी होतीर उसका कोई भवश्य नहीं होते
00:48:28कि अंगि इसके पास बस आवर्तमान होता है ता सो 20 अ कि पुझे कर त्यों धुनकि फ्रक्रिया हैहा
00:48:44कि दुढ़े जीनदकें और चेट कैसा होग जाए
00:48:58सुवफ लाइक गटार्थ शोकता है उसके पास कामनाइट चेटाएं ओपण
00:49:06कि यू जहां कामना है जहां चेटा है वहां जीवन नहीं हो सबता
00:49:14कि बादारी समझ में कुछ मैं अनन्त महां भोधाव विश्वपोतितस्तत्त
00:49:26ओपर ओपर हम हर चीज की परवा कर लेते हैं भीतरी भीतर सच पूछो तो हमें किसी बात से धेला फरक ने करता है
00:49:44तो एक तरीके से यह जो अपने मुक्त भाई है यह बड़े अच्छे अभिनेता है जो भी कर रहे होता है एक प्रकार का अभिनेता है
00:49:56अभी हाई हाई करके चाती पीटते नजारायन लुट गए जान लेना हुआ कुछ नहीं है नो टंकी
00:50:02क्यों कर रहे हैं नो टंकी कुछ तो करना है न तुन्हों टंकी कर रहे हैं नहीं पर और तो कोई वजह होगी अरे किसे यह कुछ सिखाना है इसलिए बोध नाटक है
00:50:13जैसे बोध कथाई होती है न वैसे ही मुक्त पुरुष का जीवान एक बोध नाटक होता है तो जो कर रहा हो नाटक ही है और नाटक इसलिए जागे तुमको कुछ होश आए थोड़ा
00:50:27साथी पीट रहा है कुछ नहीं हुआ है यह शोले में उचड़ा हुआ तो घड़ी घड़ी नो टंकी करता है कुछ हुआ नहीं है अभी अपने आप नीचे आजाएगा मरसी पर मुक्त पुरुष इससे बढ़ियां वाली करता है आपको हां पता ही नीचे लगओ अपने आ�
00:50:57वो है भी वह वइभिलाए पर उससा अभिलमे मैं अपनी जान बीत है देगा व अधार होक ने हैieważिट Ugh विअजर कर रहा हुँ उसको ऐसे एकर उगा जैसे जी रहा हु हुआ।
00:51:17इस जी रहा
00:51:27कभी बड़ा कुल्धित दिखाई दे कभी बड़ा दुखी दिखाई दे कभी बहुत हर्षित दिखाई दे कुछ जान लेना ना गहीं है कुछ नहीं कि पर इबोल नहीं पाऊगे आप यह बोलने के लिए आपको उसके बराबर का मुक्थ होना पड़ेगा
00:51:41क्योंकि जब वो मुक्त है तो फिर वो स्वतंत्र निश्कंटक उच्चतम अभिनय करने के लिए भी मुक्त है
00:51:54आपके अभिनय को तो आपका व्यक्तित तो रोक देता है न अभी मैं इनसे कहूं कि तुम कुट्टे का अभिनय करो
00:52:05कि बहुत अच्छा विनयां नहीं कर पाएंगे इनको बाधाब पड़ जाएगी अपने व्यक्तितों से इनका अहंकार कहेगा अपना व्यक्तित तो बचाए बचाए कुट्टा बनना है
00:52:15तो पूरी दर बनेंगे यह नहीं जान जाएंगे कुत्ता नहीं जूटा काई को बन रहा है
00:52:23बहनेगे नहीं मैं तो हूँ मेरा नाम कुछ है टॉमी बलेक यह तू नहीं गलत ही नहीं
00:52:28हम जानते हैं तु कौन है तु अपना हंकार है तु से मुक्त हो पाता तु ना तु कुत्ता बनता अपनी नहीं पाया है
00:52:38वह लग तो उसके अभिनाय में संपूर्णता रहती है वो जो चाहता है पूरा बन जाता है क्योंकि нашемे पास अपना कुछ नहीं न बचाने
00:52:50कोुं आपके वाद अपना बहुत कुछ मेठर चाने को तो आपका कभी संपूर्ण नहीं को आप प्रे जाते हो
00:53:00आपको यह चल दो पता चल ले गए नाटका उसका नाटक पूरा होता है
00:53:07और यह जो अभिनए करता है जिसका अभिनए करता है बिल्कुल वैसा ही हो जाता है
00:53:20जाते हो। उधनीया पगला जाती ही कहते तुम्हारी अपनी कोई
00:53:25पहचान है कि नहीं। अधि पेंदी के लोटेhesia k Thiessen
00:53:31कभि यह बन जाते हो कभी वह बन जाते हो। को बे भरोसे के
00:53:37आदमी कभी यह पहन लेते हो कभी वह पहन लेता हो जिस भी
00:53:41चीज़ पर भरोसा करते हैं
00:53:43तुम खट से उसको बदल देते हो
00:53:45कुछ तो
00:53:47अपने में इस्थाई रखो
00:53:49कुछ तो अपने में अचल रखो
00:53:51तक कुछ नहीं अचल है
00:53:53और जो अचल है
00:53:55वो तुम को दिखाई नहीं देता
00:53:56तुम
00:53:58चलाएमान जगत में अचलता
00:54:01खोजते हो तुम धोखा पाओगे
00:54:02और मैं चलाएमान जगत
00:54:07को चलाएमान ही जानता हूँ
00:54:09चलाएमान ही रखता हूँ
00:54:11जहां सब बदलना निश्चित है
00:54:13वहां मैं कुछ भी निश्चित क्यों करूँ
00:54:15जहां सब कुछ
00:54:19लगातार बदली रहा है
00:54:21मैं क्यों
00:54:23स्वांग करूं कि जैसे वहां कुछ इस्थाई है
00:54:26तो जहां सब कुछ बदली रहा है
00:54:30वहां मैं कोई चीज रोग कर नहीं रखता हूँ
00:54:32मैं भी उसके साथ बदलता रहता हूँ
00:54:34वरना मुर्खता की बात है
00:54:35जहां सब बदल रहा है वहां मैं कहूं
00:54:36तुम नहीं फलानी चीज है जो नहीं बदलेगी, यहां सब बदलेगा, इससे बड़ा मुर्कता का वचन नहीं हो सकता, कि सब बदलेगा लेकिन तुम नहीं बदलोगे, या मैं नहीं बदलूगा, या फलाना नहीं बदलेगा, या फलाना विचार नहीं बदलेगा, सिध्धा
00:55:06हैं वो है वो नहीं बदल रहे हैं तो अब इस बदलते संसार में सब बदलते हुए
00:55:16रंगों के साथ खेलने का हमको अधिकार मिल जाता है बोलो क्या बने कुट्टा बने बन जाएंगे हम भी खेलेंगे यह जगह शह बच्चे
00:55:28खेल रहे हैं उनके साथ खेलने की शर्त है कुट्ता बनो क्योंकि उनके खेल में बसकुत्व कि कमीचन कुट्ता बन जाएंगे बड़िया जित खीचे तित जाओं
00:55:38कभीर कुटा राम का मुतिया मेरा नाओं बताओ क्या बनाना मैं वही बन जाओंगा तुम जिधर को खीचोगे वही बन जाओंगा अभी जरूरत है तुम्हें फलानी चीज का भी नहीं करे ले रहा हूं
00:55:53यह मैं हूँ नहीं मैं भी नहीं कर रहा हूं कल कुछ और बन जाओंगा तुम विसमित हो जाओगे तुम्हें कैसे हो गया इसका मतलब पहले धोखा कर रहे थे तुम्हें धोखा लग रहा होगा तुम खा रहे हो धोखा वो नहीं धोखा कर रहा उधे क्या मिलना तुम्हें ध
00:56:23फिर आप कहते हो ये आदम भरोसेगा नहीं ये गिर्गट की तरह रंग बदलता है
00:56:37अध्यादमे का आदमी से दुनिया डरती है
00:56:46दुनिया को पसंद आता है नैतिक आदमी से धांतिक आदमी
00:56:49वेकि नीतियां नहीं बदलती हैं सानी से, सिध्धान्त नहीं बदलते
00:56:53येकिन जो सत्य में इस थापित है, उसके लिए सब बदलता रहता है
00:57:00प्रकृति का काम क्या है? बदलना
00:57:02फिर बुल रहा हूँ, आवंत्रण दे रहा हूँ
00:57:10सिर्फ कल्पना भी करो तो ये महासो तंत्रता कितना अरंदित करेगी?
00:57:22क्या आप उभाव आदमी हो? नहीं, कोई बाध्यता नहीं है, बोरिंग बने रहने की
00:57:27आपके पूरी छूट है कि आप कल सुबर उठकर कुछ और हो जाओ?
00:57:31नहीं, पर क्या वो बेवफाई नहीं होगी?
00:57:41मैं, बिग बोर्स अफ दे यूनिवर्स कचियर परसन हूँ
00:57:54वो जितने मेरे ही साथ उबे उए और उबाने वाले लोग हैं,
00:58:01बिग बोर्स, क्या ये उनके साथ देवफाई नहीं होगी?
00:58:08क्या आज तो मैं ऐसे ही होगा हूँ, और सुबह उठा तो मैं ऐसा हो गया कि वाह,
00:58:15यह से जहरने के नीचे नीबू वाले साबून से नहा रहे हो,
00:58:21इतनी तासगी,
00:58:25कल तक तो यह एकदम ऐसे,
00:58:26और आज एकदम जैसे हिरन के शावक की तरह खुलाचे मारते हैं,
00:58:41इतनी उर्जा, इतनी तुम उमंग तासगी कहां से ले आए?
00:58:44कल भी जो था वो भी,
00:58:49अभी नहीं था, और अभी भी जो है वो भी,
00:58:51हमारा भरोसा कर्मत ले ना,
00:58:53शाम का कोई पता नहीं,
00:58:56कुछ और हो जाएंगे शाम को,
00:58:58तो तुम हो कौन?
00:59:03हम्हां?
00:59:06कल तुम,
00:59:09बिग बोर थे,
00:59:14अभी लिटिल डियर हो गए हो,
00:59:18तुम हो कौन?
00:59:21मैं इन दोनों में से,
00:59:24पुछ नहीं,
00:59:27मौज की बात थी,
00:59:28कल वो बन गए,
00:59:30मौज की बात थी,
00:59:31आज ये बन गए,
00:59:34तो मुक्त पुरुष की ये पहचान है,
00:59:37उसके पास व्यक्तित तो होता है,
00:59:39पर उसे अपने व्यक्तितों को छोड़ने में नकष्ट होता है,
00:59:45न ला जाती है,
00:59:47वो अपने व्यक्तितों को वैसे ही देखता है,
00:59:50जैसे आप अलमारी में अपने कपड़ों को,
00:59:53कोई पहन लिया, कोई उतार दिया,
00:59:55मौज की बात है,
00:59:57वो मैं नहीं हूँ ना,
00:59:58वो शर्ट है मेरी
01:00:00आज पहन ली
01:00:02कल उतार दी
01:00:05के पर तुम
01:00:08गुसेल आदमी है
01:00:11रूखा आदमी
01:00:12हम भूल गए थे कि वो सिर्फ हमारी
01:00:16शर्ट है
01:00:18महुत समय से पहने गए हैं
01:00:20वो शर्ट चिपक गई हमसे
01:00:21अभी अभी याद आया
01:00:23इन दोनों को देखा
01:00:25अश्टा उकर जनक को तो याद आया रे
01:00:28वो हम नहीं है
01:00:30वो सिर्फ कमीज है हमारी
01:00:33एक दिन पहनी थे
01:00:36पहन के भूल गए थे कि पहनी है
01:00:38आज याद आ गया उतारे देते हैं अब कुछ और पहनेंगे
01:00:40अब क्या पहन रहे
01:00:41बढ़िया वाले
01:00:44बिना वाजू की
01:00:46टीशर्ट पहनेंगे
01:00:47और जो पेट पे बना हुआ हाथी
01:00:51हाथी क्या कर रहा फुटबॉल खेल रहा है
01:00:54हम कुछ भी कर सकते हैं
01:01:01हम कुछ भी पहन सकते हैं
01:01:03हम किसी व्यक्तित उसे बंदे हुए नहीं हैं
01:01:05हम किसी इस्थित से बंदे हुए नहीं
01:01:07कोई हमें
01:01:12लक्षे करके
01:01:14हमारे बारे में कोई निश्चित बात नहीं बोल सकता
01:01:16तुम जो कुछ भी बोलोगे
01:01:19वो हमारा
01:01:21एक अपूर्ण विवरण होगा
01:01:23तुम अगर कहोगे
01:01:28कि ये बड़े शान्त हैं
01:01:30तो बात अधूरी है
01:01:31हम अति-उग्र भी हो सकते है
01:01:35हमारा कोई भरोसा नहीं
01:01:37मान के उट बढ़ जाना
01:01:38तुम कहोगे
01:01:43ये अति-उग्र है
01:01:44चूप गए
01:01:45तुम्हें पदा ही नहीं है
01:01:47हम अति-शान्त भी हो सकते हैं
01:01:51नहीं पर
01:01:52आप कभी उग्र होते हैं
01:01:54कभी शान्त होते हैं
01:01:55और वो अपने आपको
01:01:57मुक्त बताते हैं
01:01:58वो हर समय शान्त रहते हैं
01:02:00उनकी शान्ति उनकी मजबूरी होगी
01:02:02जिस शान्ति को तुम त्याग नहीं सकते हैं
01:02:05वो तुम्हारी शान्ति नहीं तुम्हारी मजबूरी है
01:02:07तुम अभी मुक्त नहीं हो
01:02:10तुम्हारी शान्ती तुम्हारा बंधन है
01:02:11हमारी शान्ती हमारे इशारों पर चलती है
01:02:16अभिना करते हैं हम शान्ती का
01:02:18और शान्ती का अभिना हम इसलिए कर पाते हैं
01:02:21क्योंकि असली शान्ती
01:02:23हमारे भीतर इतनी गहरी बैठी हुई है
01:02:26कि वो कहीं जा नहीं सकती है
01:02:28हैं उसे कभी खो नहीं सकते इसलिए हम मजे में बाहर अशांत होने का भिना कर सकते हैं भीतर से चूकी शांत हैं इसलिए बाहर मजे में अशांती ओढ़ सकते हैं हुए पता है हमारी आंतरिक शांती में कोई विखन नहीं आएगा बाहर से हम खूब उग्र हो लेंगे लेकिन �
01:02:58त्याग नहीं कर सकता वो भीतर से
01:03:00बहुत अशान्त है
01:03:01मुक्त वही है
01:03:05जिसके उपर कोई बात धता ना हो
01:03:08मुक्त वही है जिस पर मुक्त रहने
01:03:10के भी कोई बात धता ना हो
01:03:12जो मौज मौज में बंधन भी
01:03:14सुईकार कर लिया ठीक है बंधन सुईकार कर लिया
01:03:16तो अज मौझे बंधन सविकार कर ले
01:03:23पुराणों की कथाएं
01:03:25और पुराण माने संकेत
01:03:33जिसने वो संकेत समझ लिया उसने पुराण समझ लिया
01:03:36जो सब संकेत हैं
01:03:38वो किधर को इशारा कर रहे हो
01:03:42पता वेदान से ही चलता है नहीं तो नहीं पता चलेगा
01:03:46तो यशोधा कृष्ण को बांधने चली है
01:03:50वो बंधी नहीं रहे
01:03:52कभी कुछ करती है कभी कुछ करती है
01:03:55वो रसी छुटी पड़ जाती है वो बंधी नहीं
01:03:56वो खंबे से बांध रहे बंधी नहीं रहे
01:03:58फिर बंध जाते हैं
01:04:02जब हार जाती है मा
01:04:04तो बंद जाते हैं
01:04:06ये तुम्हारी मुक्ते की
01:04:09निशानी है कि तुम अपनी मुक्ते को भी
01:04:10त्याग सकते हो
01:04:11मालिक तुम तभी हो
01:04:17जब तुम त्याग सकते हो
01:04:19जो चीज तुम त्याग नहीं सकते है तुम उसके मालिक हो क्या
01:04:21तुम्हारे पास बताना कोई चीज जो तुम्हारी है, बताओ
01:04:24यह जीन्स तुम्हारी है, यह जीन्स तुम्हारी सिर्फ तभी है
01:04:28जब तुम इसे उतार सकते हो, अगर तुम इसे उतार नहीं सकते हो
01:04:31तो यह तुम्हारी नहीं है, फिर यह तुम्हारी मजबूरी है
01:04:34कोई भी चीज तुम्हारी सिर्फ तब है जब तुम उसे त्याग सकते हो
01:04:41ठीक
01:04:43तो भीतर से इतने मुक्त हो जाओ कि बाहरी मुक्ती भी कभी त्यागने की नौबत आये त्याग दो
01:04:50त्याग दिया अब हम बंधन में हैं
01:04:54अब तो हमने कोई दिकत नहीं हो रही क्योंकि पता है कि हम बंध तो सक्थ ही नहीं है नो बांध लो
01:05:08इए ऐ बात
01:05:12जो कुछ भी तुम्हारे नामके साथ जूड़ गया है
01:05:16कुछ बंदहने तुमारा जिस जीज को भी तुम अपना व्यख्तित दें तू भोल देते हूं कि धार
01:05:39मत बोलो कि तुमने कुछ पहन रखा तुमने पहन रखा उसको उतार नहीं सकते
01:05:45मत बोलो कि कोई निर्णे तुम्हारा है अगर जो तुम्हारा निर्णे है तुम उसको पलट नहीं सकते फिर निर्णे नहीं मजबूरी है
01:05:57ज्यादा तर जो हम कर रहे होते न उसमें चुनाओ कहीं नहीं होता बस मजबूरीया होती है
01:06:13पर अपनी शर्म को ढखने के लिए हम ऐसे कह देते हैं कि मैंने कुछ नहीं कहा सोचा सुना करा
01:06:27तुम मजबूर थे। तुम्हारे साथ हो गया। मुक्त पुरुष का ऐसा है कि उसे कोई मजबूरी नहीं।
01:06:41क्या वो अच्छा आदमी है। वो पूरी तरह स्वतंत रहे हैं एकदम बुरा हो जाने के लिए।
01:06:57क्या उसने कुछ चीजे त्याग रखी है। वो पूरी तरह स्वतंत रहे सब त्यागी हुई चीजों को अपनाने के लिए।
01:07:12के लिए।
01:07:19कि जब वो अपने को त्याग सकता है।
01:07:25तब ही हमने कहा ना कि उसकी स्वतंत्रता है कि जो कुछ तुम्हारा अगर तुम उसे त्याग सकते हो तो ही वो तुम्हारा है जब वो अपने को त्याग सकता है तो त्यागे हुए को पुना भी सकता है
01:07:36तो मानें उसके बारे में कोई पूर्वा नुमान लगाया नहीं जा सकता उसको ले करके कोई धारणा कहीं नहीं जा सकती
01:07:44कोई भरोसा ही नहीं
01:07:49नहीं धर का ना उधर का किधर का भी नहीं है अपना है बस हो
01:07:57क्योंकि इधर उधर दोनों किसमें होते हैं
01:08:03प्रक्रति में
01:08:06कि अबस अपना है वात मत्रा है
01:08:13कि आरी बात समझ में
01:08:27प्रणा में स्यारी जी जी
01:08:36कि आज जो प्रशन एक वक्तव है था कि मैं अनंत समध्र हूं और यह संसार एक बड़ी नाव की तरह इदर से डोल रहा है
01:08:46कि यहां पर जगत की परवर्त ने चीलता और सीमा प्रमुख है या हमारी असीम संभावना है
01:08:53कि जो हम है वो उसमें एक असीम संभावना है वो एक अनंत समध्र की तरह है और इस अंसार है यह सीमित है
01:09:04तो इसमें जो प्रमुख बात है वो जाता है मैं मुझरी समझ मारा है वो हमारी संभावना की तरह ही है ना कि जगत की सीमा की तरह है
01:09:13हमने सीमित वाली बात पर तो आज जोर दिया ही नहीं हमने तो बात ही अगर यह है कि जगत का काम है इधर उधर डोलते रहना
01:09:21अपने ही भीतर की हवाओं से प्रभावित हो करके
01:09:24और समुद्र का काम है जगत से अप्रभावित रहना
01:09:31सीमित असीमित वाला आप कहां से लाए
01:09:34नहीं सिर्फ एक समझ ये लिए
01:09:38कि जैसे कि हम दैनिक जीवन में भी देखते हैं
01:09:43कि कोई एक व्यक्ते के जीवन में
01:09:46बात को प्रिकें जो
01:10:05अवह सबस्हाँ क्या सकता हुआ तो उसमें
01:10:10क्या यह मैं ठीक से समझाशबा रहा हूं इस बात को
01:10:13को दीखिए जो भी निर्णाय क्रेंगे किसी भी इस्थित्य में में बुद्धि शामिलो 59 मन की पूरी प्रक्रिय शामिलोगी दला कि यहां अश्टाकर बहुत आगे की यह कोई भी निर्णाय स्थित्य करло
01:10:33उससे मुझे पर फर्क नहीं पढ़ना है
01:10:36कोई भी इस्थिति हो और उस इस्थिति के सामने
01:10:41तुम्हारी कोई भी प्रतिक्रिया हो
01:10:42मैं वो हूँ जिस पर कोई फर्क नहीं पढ़ना है
01:10:45तो तुरंथ हमारे भीतर कुतर कुटता है
01:10:48आम कहते हैं अच्छा तो फिर कोई भी निर्णे कर लें नहीं आप कोई भी निर्णे नहीं करते हैं आप स्वार्थवश निर्णे करते हो आप स्वार्थवश निर्णे करते हो जब निर्णे करते हो निर्णे खराब हो जाता है जब आप जानते हो कि कोई भी निर्णे हो आ�
01:11:18कि उन कामों में हमारा स्वार्थ होता है जहां आप जान गए कि उस काम से आप कुछ मिल नहीं सकता वो काम बहुत बढ़िया हो जाएगा
01:11:31कि यह बात थोड़ी समझ में आती है बस यहां पर एक एक छोटा सा एक प्रश्ण हो कुछना चाहता हूं है कि
01:11:37मतलब एक अकर्मन्नेता की तरफ बढ़ावा तो नहीं देती यह बात कि अब आपको तो कर्म करना ही नहीं है जिसे कर्म करना है वो करेगा आपको यह जानना है कि उसके कर्म और उसके कर्म फल से आप पर कोई अंतर नहीं पढ़ना है
01:11:56आप वो हैं ही नहीं जो अकर्मन्ने हो सके
01:12:02अकर्मन्ने भी वो कोई और है जो होता है
01:12:04अहम है जो अकर्मन्ने होता है
01:12:05अहम अकर्मन्ने होता है
01:12:15अहम अकर्मन्ने हो जाए उससे आपको कोई फरक नहीं पड़ना है
01:12:18तो फिर अहम अकर्मन्ने हो गई नहीं
01:12:20ने Leonे बाक फिर अंचे संबंद्द कैसे हुए हम तो इसे हम हैं और हम जो भी
01:12:34हम कर रहे हैं आपकी मरजी है आपको जोई बन जाई है कि कर आका आपका खेले खेली आप हम-बनके कराओ खेलनाए कि अब
01:12:42कि आपका चुनाव है हम बार-बार ये तीन को दिखाते हैं और कभी थोड़ी कहते हैं कि ये बिचारा यहां पर फसा हुआ है हम तो कहते हैं यहां मौज कर रहा है एक तरह इसको पकड़ रखने तरह इसको पकड़ रखा है तुम्हारे चुनाओ की बात है क्या चुनना है आ�
01:13:12हुआ हुआ हुआ हुआ