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Transcript
00:00कथा कहती है कि एक लकड़हारे को बोध हो गया
00:02फिर कहते हैं कि लकड़हारे से पूछा कि बताओ
00:04इनलाइटनमेंट से पहले तुम क्या किया करते थे
00:07तो लकड़हारा बोरा मैं सुबह उठता था
00:08थोड़ा खाना बनाता था
00:09जंगल जाता था, लकडी काट था, बेशता था, फिर पैसे कमाता था, उससे मैं सौधा कुछ लेता था, राशन, पानी, वापस आकर फिर खाना बनाता था, खाता था, मैं सो जाता था
00:18बोले अछा, अच्छा, तो बड़ा ही सावानने सा, साधारण सा, आपका जीय उंता
00:22अब आप enlightened पुरुश हैं आप, अब आप क्या करते हैं दिन भर, तो बोध के पहले भी आप जो करते थे, बिलकुल वही वही आप अभी भी कर रहे हो, तो फिर बोध कार्थ क्या हुआ, तो लकड़ारे ने बिलकुल टशन के साथ कहा, पहले मैं सब कुछ बिहोशी में करता थ
00:52इसी सान तो ना मिलती है, कि गजब इसका मतलब कुछ बदलने की ज़रूरत नहीं है, बोध एक सफाई की प्रक्रिया है, एक unlearning की प्रक्रिया है, स्वयम को मिटाने की प्रक्रिया है, जो जीवन की आखरी सांस तक चलती है, इसी को बोध कहते हैं

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