कुछ दिन पहले एमपी की फिजा कुछ यूं थी कि बस ज्ञानवापी जैसा मुद्दा उछलने ही वाला है. ज्ञानवापी में शिवलिंग मिलने की चर्चा ने जोर पकड़ा और भोपाल के जामा मस्जिद के सर्वे की मांग जोर पकड़ने लगी. पर ये मुद्दा किसी फुस्सी बम की तरह उठा. जिसने चिंगारी तो पकड़ी लेकिन फूटने से पहले ही बुझ गया. वैसे इन दिनों कई टीवी चैनल्स की डिबेट से ज्ञानवापी का मुद्दा भी पूरी तरह से गायब हो चुका है. कुतुब मिनार में पूजा पाठ करने की मांगे भी सुनाई देना बंद हो गई हैं. सब कुछ टाइमिंग का खेल है. संघ प्रमुख का बयान, नूपुर शर्मा का बयान और कार्रवाई और उसके बाद बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व में अब दिखाई देता हुआ लचीलापन. क्या ये इशारा नहीं कर रहा कि आने वाले चुनावों में बीजेपी का रूख कुछ अलग होगा. जिसका असर एमपी सहित अगले साल होने वाले पांच राज्यों के चुनावों में भी दिखाई देंगे.
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