प्याज़ के राज़

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00:00प्रेणा कथा प्याज के राज
00:081919 में इसपेन में फ्लू का भेखकर आकरमन हुआ और उस रोग से कुछी महिनों में लगबग 5 करोर लोगों की मिर्ती होगी
00:20रोग के शांत होने के कुछ दिनों के बाद एक डॉक्टर बहुत से किसानों से मिलने गया ताकि वो फ्लू से लड़ने के लिए उनकी कुछ बज़त कर सके
00:32बहुत से किसानों को फ्लू हो चुका था और बहुत से परिवार मारे भी जा चुकने था
00:37डॉक्टर एक दिन एक किसान के घड़ गया वो ये देखकर हैरान हो गया के उस किसान के परिवार में किशी को भी फ्लू नहीं हुआ था और सभी लोग बिलकुल स्वास्ते थे
00:47डॉक्टर ने उस किसान से पुछा के वो और उसके परिवार के लोग ऐसा क्या अलग कर रहे थे जिससे कि उनको फ्लू नहीं हुआ था
00:55किसान की पत्नी ने कहा के उसने एक बिना चिला हुआ प्याज एक एक प्लेट में रखकर घ़र के हर कमरे में रख दिया था
01:04डॉक्टर को तो विश्वासी नहीं हुआ परन्तो फिर भी उसके जिग्यासा बढ़ रही और उसने उन प्याजों में से एक प्याज परिक्षन के लिए बागा
01:14किसान की पतनी ने उसको प्लेट में से एक प्याज दे दिया उस डॉक्टर में उस प्याज को माईकरो स्कोप के निचे रख कर देखा तो पाया के प्याज में फ्लू के किताणु थे
01:24यह इस पश्च था कि प्याज ने उस घर में आए हुए फ्लू के बैक्तिरिया को अपनी तरफ आकरशित करके सोक लिया था और परिवार को बचा लिया था
01:38ऐसी एक कानी एक दिन और भी सुने गई है एक नाई की दुकान पर भी आने वाले बहुत से लोगों को फ्लू था और उसके कई करमचारियों को भी फ्लू हो गया था
01:53अगरे साल उस नाई ने बहुत से कटोरों में प्याज रख कर अपनी दुकान में अलग अलग जगहों में रख दिये थे नाई के दुकान पर उसके करमचारियों में से उस वरस कोई भी फ्लू के कारण बिमार नहीं हुआ
02:06मित्र प्याज का एक सबसे अधिक लाबकारी पक्षी है कि कमरे या घर में प्याज इंदर उंदर रख देने से फ्लू के किताणों नहीं फैलते हैं
02:16प्याज का एक लाबकारी पक्षी है कि प्याज के दोनों सिनों को काट कर फैलते हैं और उस प्याज को एक कांच के गलास में रखकर निमोनिया का रोगी के बिस्तर के पास रात को रखते हैं
02:37सुबह आप दिखेंगे कि प्याज काला हो जाएगा और निमोनिया का रोगी ठीक होने लगेगा
02:43बरसों पहले लोग गाओं में काले हैजे से बचने के लिए प्याज और लसुन कमरे में इधर उदर रख देते थे
02:50प्याज और लसुन दोने ही एंटी बैक्तिरियर और एंटी सेप्सिक प्रिक्षम होते हैं
02:57प्याज के बहुती बुढ़ा अगरात्मक पक्ष्री है
03:01कभी भी काफी समय पहले काट कर रखे गे प्याज को सलाद के साथ मत खाईए
03:06इससे आपको पेट की समस्याएं हो सकती है
03:09अगर खाने के साथ भी कच्चा प्याज खाना हो तो ताजा काटे होए प्याज ही खाए
03:14बहुत साबर पहले काट कर रखा हुआ नहीं
03:16काट कर रखे गे प्याज बहुत जल्दी हावा में तैर रहे हैं बैक्तिरिया को अपने में समा लेते हैं
03:23और फिर खाने वाले को विभिन प्रकार के रोग हो सकते हैं
03:26कभी भी कटे गए प्याज को नहीं तो रसोई में और नहीं फ्रिज में रखें
03:31पतले पतले काट कर रखे वे प्याज जो लोग जादो तर सेंडिज में रखा खाते हैं फूड पॉइजनिंग का कारण बन सकते हैं
03:39काट कर रखे वे गीले प्याज और गीले आलू दोनों ही ब्यक्तिरिया को बहुत जल्दी जल्दी आकर्षित करते हैं और उनमें व्रिध्धी करते हैं
03:46जहां तक हो सके सलाज में प्याज मती खाईए और विशेश करके अगर प्याज एक आदा गंटा पहले काटे गए हो अपने पाल्टू कुट्टों को तो कभी भी प्याज मत खिलाई खाने में मिला कर भी मत दे अगर आप प्याज को काट कर रख देते हैं और अगले दिन उ
04:16प्याज खेला
04:46प्रेड़ना कथा
05:17मैं सुबह सुबह सोकर उड़ जाती थी
05:19सबसे पहले पूरे घर की सपाई करती थी
05:21उसके बाद मां की गालियां सुनती थी
05:24वो मुझे कुरूप, नकारा, बोज, नजाने क्या क्या कह कर बलाती थी
05:30मेरा जीवन पूरी तरह से एक नरक ही था
05:33सिर्फ स्कूल ही एक ऐसा इस्थान था
05:35जहां मुझे खुशी मिलती थी
05:37वो भी कुछ घंटों के लिए ही
05:39स्कूल में भी मेरी परिशानियां कम नहीं थी
05:43अन्य छात्र मुझे बुरे-बरे नाम से बुलाते थे
05:46और मुझे बहुत तंक करते थे
05:48कभी-कभी तो वो मुझे उनके जूते भी साफ करने को बाद्य कर दिते थे
05:53मैं हर रात रोती थी क्योंकि मैं जानती थी
05:55कि मुझे ऐसा जीवन नहीं मिलना चाहिए था
05:58मैं इससे अच्छे जीवन के योगी थी
06:01मैं आइने के सामने खड़ी होकर
06:03अपने ही प्रतिबिम्ब से बहुत से प्रश्ण पूछती थी
06:07लेकिन मेरा प्रतिबिम्ब तो एक शब्द भी नहीं बोलता था
06:11मेरे पास तो बस मेरे लक्ष ही था
06:13शायद एक असबवसा दिखने वाला लक्ष
06:16एक दिन जब मैं महा से बोली
06:18मैं पत्रकार बनुगी
06:23मुझे एक कराड़ा जहपड मिला था
06:28वो चिला कर बोली
06:32तेरे जैसी लड़की के लिए तो घरों की सफाई करना ही सबसे अच्छा काम है
06:36समझ गई पत्रकार बनेगी
06:41मैं अकेले में कभी भी खाली नहीं बैतती थी
06:43मैं कुछ न कुछ लिखती ही रहती थी
06:45मैं ने कलपणा में एक मश्यूर पत्रकार को अपना आदर्श भी बना रखा था
06:50वो एक विश्व प्रसिद्ध पत्रकार थी
06:53और मैंने उनके लिखे और बहुत से लेक भी पढ़े थे
06:56मैं अपने मन में उनको मैड़म कहती थी. मैं भी मैड़म की तरही एक बड़ी पतरकार बनने के सपने देखती थी.
07:04इत्वार का दिन मेरी जिंदगी के सबसे अच्छे दिनों में से एक होता था क्योंकि मा दो गंटे के लिए घर से बाहर जाती थी.
07:12और उस दोरान मैं मैड़म को चिठियां लिखा करती थी. मैं अपने चिठियां में मैड़म को अपने इच्छाएं, अपनी इस्थिती और अपने लक्ष के बारे में बताती थी.
07:24एक दिन जब मैं सो रही थी अच्छानक मैंने कुछ आवाजे सुनी, मैं दंग रह थी, आवाजे बहुत पास से आ रही थी. मैं उठ कर अपनी आखे खोलने का प्रयास करने लगी. मैंने कबरे में दिखा, मेरी मा और मेरा भाई भी वही थे. मेरी मा के हाथ में एक बेल्ट
07:54कर दिया. मैं अपने घुटनों के बल बैठ गई और आखों में आशू लिया मा को देखने लगी.
07:59मेरा भाई पीछे जाकर डेस्क के सामने की कुर्सी पर बैठ गया. वो कंप्यूटर चला जगा.
08:07मेरी मा ने मुझे बहुती बेदर्धी से पीटना शुरू कर दिया. मा ने मेरी डाइरी मेरे हाथ से चेंली और रसोई में ले जाकर जला दिया.
08:16मा ने कहा, बैठी बैठी बस इस डाइरी में लिखती रहती है, काम की ना काज की. मैं हाथ जोड़कर बिंती करती रही, पर मा ने मेरी डाइरी जला दिया. अगले दिन मुझे स्कूल से भी निकाल दिया गया.
08:31घर वापिस आते हुए मैं पेड़ों को देखने लगी. हर चरफ हर्याली भी हर्याली थी, पर मेरे जीवन में तो पद जड़ा आ गया था. सिर्फ एक पेड़ ऐसा था जिस पर एक भी पत्ती नहीं थी. वो पेड़ अकेला था, सुक गया था, और अपने गिरने की प्रतिक
09:01और जूसरा रास्ता न जाने कहा ले जाता. मैं बहुत देध तक सोचती रही, मैं नए रास्ते पर चल पड़ी हैं.
09:08सभी चेज़ें नाई थी, घर नाई थे, लोग पी आजनवी थे, कोई भी मुझे नहीं जानता था उस रास्ते पर.
09:15कुछी घंटों में दिन धल गया, मैं सडक के किनारे ही फुटपाथ पर सो गया, अगली सुबह जब मेरी आप खुली, मुझे नहीं मालूं था कि मुझे क्या करना था.
09:25मैंने भगवान से प्रार्थना की और मजद की गुहार लगई, एक घंटे के बाद मैंने मैडम मेरी आदर्श के घर का पता लगाने का निर्णे लिया.
09:34मैं उस दिन बारा मिल तक चली, जब ठक जाती थी, बैट जाती थी और जब आराम मिल जाता था, फिर से चल पड़ती थी. मैं कई दिनों तक भूखी प्यासी उस नए शहर में भठकती रही, मेरे पास जो थोड़े से पैसे थे, वो खाने की जीज़ों में ही समाप्त हो गय
10:04मैंने हाथ जोड़कर विक्ती की और कहा, तुमने मुझे पहचाना नहीं, मैंने तुम्हारी भी कुछ चिठ्थियां निकई थी पिछले में ने. उसने गुस्ते से कहा, जाओ यहाँ से विखारिण कहीगी, तेरे जासी विखारिण मेरे लिए चिठ्थियां निकहेगी.
10:34मैंने तुम्हारी चिठ्थियों की प्रतिक्षा कर रही थी, मैंने उनको अपने बारे में सब कुछ बता दिया, मैंने मेरा हाथ अपने हाथ में लग कर कहा, मैंने तुम्हारी चिठ्थियों की प्रतिक्षा कर रही थी, मैंने उनको अपने बारे में सब कुछ बता दिया, म
11:04मैंने तुम्हारी चिठ्थियों की प्रतिक्षा कर रही थी, मैंने तुम्हारी चिठ्थियों की प्रतिक्षा कर रही थी, मैंने तुम्हारी चिठ्थियों की प्रतिक्षा कर रही थी, मैंने तुम्हारी चिठ्थियों की प्रतिक्षा कर रही थी, मैंने तुम्हारी चिठ्
11:34मैंने तुम्हारी चिठ्थियों की प्रतिक्षा कर रही थी, मैंने तुम्हारी चिठ्थियों की प्रतिक्षा कर रही थी, मैंने तुम्हारी चिठ्थियों की प्रतिक्षा कर रही थी, मैंने तुम्हारी चिठ्थियों की प्रतिक्षा कर रही थी, मैंने तुम्हारी चिठ्
12:04चार बर्शों के बाद मैं और मैडम शौपिक के लिए बाजार जा रही थी, एक इस्थान पर मुझे मेरी मां दिखाये दिया, वो शायद आखरी घर का काम करके आ रही थी, मां बहुत से घरों में काम करती थी, हमारी कार जैसे ही बाजार में रुकी, मैं और मैडम बाहर
12:34एक बार पीछे मुढ कर देखा, तो पाया के वो मेरी मां हमारे ड्राइवर से कुछ बात कर रही थी, कुछ देर के बाद जब हम वापिस आये, तो मांने उससे बात करने के कोशिश गी, पर मैंने उनको नजर अंदाज कर दिया और कार में बैट लगी, वो देखती रह
13:04देखती रही तरह सर भुमा कर कहा, इनका बस चलता तो ये मुझे चार-पांच वरस पहले ही मार देती, और मैडम अब एक मरिवी वेटी अपनी जीवित मां से कैसे मिल सकती है, अब तो इनका खर्च भी कम होगा, बस जीवन ऐसे ही चरने दिजे मैडम जी, मैड�
13:34तुम वो पन्यासकार बनने की और एक कदम चल चुकी होगा, मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं होगा, और मेरे मुँझे सिर्फ ये निकला, सच्मे मैडम, मैं वो पन्यासकार, मैं बहुत खुश थी, के कलम तो थी मेरे साथ, और मैं अब अपनी कलम के द्�
14:04प्रेणा कथा, बारिष सुख दे,
14:33कमल कांत ने खुद को आयने में देख कर संतोष की सांस ली, सुभाई ही बाल कटवाय थे, छेरा चमक रहा था, और नई धारियों वाली कमीज भी बहुत अच्छी लग रही थी, उसने अपनी टाई को गले में थोड़ा कस किया, हाला कि टाई तो पहले से ही बहुत कसी हु�
15:03खुद को आयने में देखा और मुस्कुराया, वो पूरी तरह से संतुष्ट था, आज उसका अंतिम साक्षादकाल अर्थाट इंटरव्यू था, उसने पहले के दो साक्षादकाल सफलता पुर्वक पार कर लिये थे, इस तीसरे साक्षादकाल के लिए कमपनी के मालिक खु
15:33बारिश से बचने के लिए भी योजना बना ली थी, वो बस स्टॉक तक आटो रिक्षा से जाएगा, और फिर बस में बैठकर फ्लोडा फाउंटेन तक जाएगा, वहाँ से वो दफतर चार कदम पर ही था, उसके कपड़ों पर कुछ बुंदे तो बारिश की पढ़ेगी,
16:03जैसे ही उसकी बस आई, बहुत जोर से बारिश शुरू होगी, वो किसी तरह धखंकी करते हुए बस में घुज़ गया, और जल्दी से खिटकी के पास वाली एक सीट पर कभजा कर लिया, बाहर लोग अपने अपने छाते खोड़ रहे थे, और बिन छातो वाले इधर उधर
16:33वो सोना नहीं चाहता था, क्योंकि वो चाहता था कि उसका चेहरा तरव ताज़ा दिखे, अंतिंग साक्षातकार में वो इकदम ठीक दिखना चाहता था, लेकिन लंभी यात्रा और बस के अंदर की सुखत गर्मी के कारण उसको जफकी आही गई, वो बहुत प्यास करता ही
17:03उसको सोना नहीं चाहिए था, उसने अपने जेप से रुमाल निकाल कर अपने चेहरे को साफ किया, उसको मालूम था कि सोने के कारण उसकी आंखे लाल दिखने लगी थी, वो बाहर उतर गया और चलने लगा, अचानक दूसरी तरव से एक बस आई और टायरों के नीचे द�
17:33उसके हाथ से उसकी फायल चुट गयी थी और पेपर उधर उधर भिखर गय थे, कागजा भिग गय थे, उसने जल्दी जल्दी भिगे होगे कागजों को उठाया और दफतर की तरफ जल्दी जल्दी चलने लगा, उसने अपनी घड़ी देखी, वो ठीक समय पर वहां पहु
18:03थे और उसके हाथ में फायल के कागजों पानी में नहाए हुए थे, हाला कि छपे हुए कागज थे, इसलिए स्याही नहीं फैली थी, बारिश रुक गयी थी, अभी कुछ समय बाकी था, बाहर सूरेज फिर से दिखने लगा था, अजीब मौसम था मंबई का, वो बा
18:33कमलकान्त रुमाल लेकर अपने सर को साफ करने लगा, उसको कववे पर बहुती गुसा आया, कमलकान्त को अपने धुरबाग्य पर यकीनी नहीं हो रहा था, सुबे आईने में देखते हुए वो कितना खुश और आश्रस्थ था, पर अब वो एक उजड़ाओँवा बगी
19:03वो एकडम चका चौन लॉबी में आया और उसने खुद को एक आईने में देखा, उसको लगा जैसे उस चमक्ते हुए दफतर की लॉबी में कोई शनार्थी गुसाया हो, उसने देखा कि लॉबी में बैठे हुए लोग उसको अजीब अजीब नज़रों से देख रहे थे,
19:33आज वो संगाव नहीं होगा, Mr. Kulkarni बारिष के कारण दिल्ली में ही रुप गए हैं, उनकी फ्लाइट लेट हो गई थी, इसलिए वो आज नहीं आ रहे हैं।
19:42उन्होंने संदेश भेजाया कि अब आपका इंटरिव्यू इस महिने की 14 तारीक को होगा, अगले हफते।
19:49कमल कांथ तो वही पर अपने घुटनों के बल बैठ गया और उसने फाइल को नीचे रख कर दोनों हाथ जोड़ गी और आखें बंद कर ली।
19:57वो उस बरसात का अब आभार व्यक्त कर रहा था जिसने उसकी सुबाई बर्बात कर दी थी।
20:05बहुत धन्यवाद।
20:35प्रेड़ना कथा इंद्रि धनुश। अजीजा जब बारिष में भागती हुई अक्षा के अंदर आई वो लगबग आदी भीगी हुई थी। सलीम शेक ने आगे बढ़ तर कहा गुड़ मौनिंग मैडम। अजीजा ने भी जवाग दिया गुड़ मौनिंग सलीम काका।
21:05लेकिन उनके जोश में जड़ा भी कमी नहीं आई थी।
21:09काका की जिव्ग्यासा अभी भी एक शिष्यु की तरा ही थी।
21:13और उनकी शारीडिक उर्जा भी किसी नौजवान किसी थी।
21:17उनके बाल काफी अत्तक सफेड हो चुके थे।
21:20और चेहरे पर थोड़ी सफेड थोड़ी काली दाड़ी थी।
21:24सफेद कमीज में काका को भी शायद कोई व्यायाम का शिक्षक ही मानता।
21:32चप्राशीकत काम करते हुए सलीम काका को आनंद आता था।
21:40और वो कभी भी कोई शिकायत नहीं करते थे।
21:45उस प्राइमेरी स्कूल में उन्होंने दो दशक से ज़्यादा बिता दिये थे।
21:50अजीजा ने सलीम काका से कहा लगता नहीं कि आब और बरसात हुई।
21:54सलीम ने हस कर कहा पहले रुके तो सही।
21:58सलीम काका और अजीजा हमिशा विरोदा भासी बाते करते थे।
22:02अजीजा को इसमें मजा आता था।
22:04सलीम हमिशा किसी पद्धिकार की तरह बाते करता था।
22:08उनकी बातों में कावे का अंश इस पश्ट जलता था।
22:12वो जब भी बोलते थे उनके शब्दों में छिपे हुए अर्थ होते थे।
22:17सलीम काका के शब्दों को समझने के लिए आपको ध्यान से उनको सुनना होता था।
22:22और ये पता लगाना होता था कि वो वास्तव में क्या कहना चाह रहे थे।
22:29सलीम काका ने कहा बरसात हर चीज को धो देती है।
22:36लेकिन लोगों के दिमाग की गंदिगी को नहीं धो सकती।
22:42लोगों ने नाटिक्ता और इस तरह के सभी दायरे तोड़ दिये हैं और दुनिया को गंदा कर दिये हैं।
22:48सलीम एकडम गंभीर हो गया।
22:51अजीजा सलीम काका का बहुत सम्मान करती थी।
22:54उनको समझना बहुती मुश्किल काम था।
22:57काका की बातों के हमेशा एक से अधिक अर्थ होते थे।
23:00जो कुछ भी सलीम काका कहते थे वो सत्य होता था।
23:03अजीजा प्राया सलीम काका की बुद्धी की प्रसंचा करती है।
23:08सलीम काका एक बारे में सोचते हुई अजीजा ककशा में प्रवेश कर रही है।
23:13ककशा में कोई भी नहीं था।
23:15बच्चों के आने में अभी दस मिनिट बाकी थे।
23:19अजीजा ककशा के अंदर की शांती का आनन लेने लगी।
23:22उसने अपना बैक डस्पर रख दिया और खिर्की की तरफ से दिया।
23:26उसने देखा कि कुछ बच्चे आ रहे थे।
23:28वो बाहर मैधान में जम्य हुए पानी में लाते मार रहे थे।
23:32और छपाक छपाक कर रहे थे।
23:35अजीजा उनको देखकर मुस्कुराने लगी।
23:37वो उनको कक्षा में बुलाना चाहती थे।
23:40परन्तु फिर वो चुपचाप खड़ी उनको देखती ही रह गई।
23:44उसको मालूम था कि अगर उन बच्चों को सुबह सुबह ये डान दिया
23:47तो दिन भर उसको बच्चों के सुझे हुए चेहरे ही देखने पड़ेगे।
23:51उसने उनको बाहर पानी में ही खेलने दिया।
23:54अजीजा के चेहरे और बाहों पर अभी भी पानी के कुछ गुन्डे बाकी थे।
23:59वो कुछ सोचने लगी।
24:00यादे उमर उमर कर उसके दिमाग में आने लगी।
24:04वो सोचने लगी कि प्रकृति के पास एक विशेश शक्ती है।
24:08ये शक्ती किसी भी व्यक्ति के दिमाग में प्रोईश कर सकती है।
24:11अजीजा अपने बीते हुए वर्षों में खो गई।
24:14वो एक अनाथ थी।
24:16उसका बादले काल खुशियों से बढ़ा हुआ नहीं था।
24:20वो अपने रिश्तिदारों के घर में बढ़ी हुई थी।
24:24उसके साथ बढ़ी होने तक एक नौकराणी की तरह ही बरता किया जाता था।
24:30हर दिन उसके लिए एक जैसा ही होता था।
24:33उसको सुबर सबसे पहले उठटर बरतं धोने होते थे।
24:36कपड़े धोने होते थे।
24:38सबजियां काटने होती थी।
24:40और फिर सबके लिए रोटिया पकाने के लिए आटा गूतना पड़ता था।
24:45वो दिन बर गधे की तरह काम करती थी.
24:49परन्तु उसकी चाची कभी भी संतुष्ट नहीं होती थी।
24:52वो उसको कोई ना कोई काम दे कर ये उलज़ाय रखती थी।
24:55कभी खिटकियां साफ करने को कहती तो कभी कमरों का फर्णीचर साफ करने को।
25:00अगर कुछ काम नहीं होता था तो एक बार फिर से सभी कमरों में पोचा लगाने को कह देती थी।
25:06इतनी कठिनाईयों को भूखते वे भी अजीजा ने कभी भी घर चोड़कर भागने के बारे में नहीं सोचा था।
25:13वो अस घर में सिर्फ एक कारण से रुकी वी थी और वो कारण था चाची के बच्चों की किताबें।
25:19अजीजा को याद आया कि कैसे उसने पहली बार कोई किताब अपने हाथ में ली थी। उस समय वो सिर्फ पांच वर्ष की थी।
25:26वो उसकी चाची के लड़के राजिम की वर्णमाला की किताब थी। वो बहुत देध तक किताब में छपवए अकशरों को देखती ही रही थी। वो तिरम थी किताबों के तरफ आकरशित हो गई थी।
25:38अपनी चाची के बच्चों के मदद से उसने दो अफतों में ही पूरी वर्णमाला सीख रही थी और जोड़ जोड़ कर अकशर पढ़ना भी शुरू कर दिया था। उसने खुशी खुशी अपनी चाची को भी सीखी हुई बातें बताई थी लेकिन चाची ने प्रिसंसा के
26:08लिए को कभी किताबें उठाते हुई नहीं देखा था। कम से कम दिन के समय तो बच्चों के किताबों को चूती भी नहीं थी।
26:17जब अलीजा 15 बरस की हुई वो समचार पत्र पढ़ लेती थी वो सड़क पर पढ़े हुए अख़बारों के टुकडों को सब से चुपा कर लाया करती थी और फिर छुप छुप कर पढ़ती थी
26:28वो कहीं से फटी पुरानी पत्रिकाएं भी उठा लाती थी और कहानिया पढ़ा करती थी एक वर्स के अंदर अंदर उसने लिखना भी शुरू कर दिया था
26:38समय का साथ साथ उसने चोटे चोटे जानवरों पर चोटी चोटी कहानिया भी लिखने शुरू कर दिया थी
26:46सोला बरस की उमर में उसकी सहमती के बिना ही उसकी शादी अल रफी नाम के पुरुष से कर दिए वो अजीजा से कम से कम तीस बरस बड़ा था
26:58अजीजा की शादी ही उसकी जिन्दिकी का सबसे बड़ा मज़ाक था
27:02शादी के बाद उसको रातों से भय होने लगा था क्योंकि रात को उसका पती उसको नोचता खस उठता था
27:09वो साथ महिनों तक अपने पती के अत्याचार सहती रही और फिर एक दिन जब सहन नहीं हुआ वो अपने पती के घर से भाग गई
27:17वो अपने पती और अपनी सास के हाथों का खिलोना बनकर जीवन नहीं बिताना चाहती थी
27:23वो अपने निर्दवी पती को और सहन करने में असमर्थ हो जुटी थी
27:27घर से भागने के कुछ दिनों के बाद उसके मन से भै निकल गया
27:33उसको ऐसा लगने लगा कि उसका पुनर जनम हुआ था
27:37वो सब अब बीती कहानी हो गयी थी
27:40एक दिन अच्छानक उसकी मलकाब एक फ्रेंच स्वयम सेवक से हो गई
27:44वो एक खुप्सूरत फ्रांसिसी इस्तिरी थी
27:47जो इस्तिरी की सहयोग करने वाली एक संस्था में काम करती थी
27:52वो फ्रांसिसी इस्तिरी आजीजा को अपने साथ अपनी संस्था में लगी
27:57पहली बार अजीजा को लगने लगा कि उसके जीवन में भी खुशियां हो सकती थी
28:03उसने बहुत सी लड़की और औरतों की दर्ध बड़ी कहानियां सुनी
28:07लेकिन वो खुद हर दिन और भी शक्तिशाली होती चले गई
28:11उसके भगवान को धन्यवाद कहा कि उसको उस संस्था में बेच दिया था
28:15उस संस्था में वो अपने निर्णे कुछ लेने लगी थी
28:19वही पर एक दिन उसकी सलीम काका से मुलाकात की थी
28:23सलीम काका के स्कूल के एक टीचर रेटायर हो गये थे
28:27सलीम काका अपने लिए एक शिक्षक की जरूरत थी
28:30सलीम उस सहयोक संस्था में टीचर खोजने आये थे
28:34सलीम ने अपने अफसरों से कहा था
28:36साहेब शिक्षा का उद्देश सिर्फ बचों को खाना किला दिना यह नहीं है
28:40ऐसी संस्थाओं में
28:43उनको पढ़ना भी होगा
28:45हमरी संस्था में सभी बच्चे बस खाते हैं
28:47और आराम करते हैं
28:49बेचारा जयनतर बचे तो सिर्फ खाने के लोग में ही
28:52हमारे स्कूल में आते हैं
28:54सलीम काका ही अजीजा को टीचर बना कर
28:58अपने स्कूल में लाये थे
29:00ये चार बरस पहले की बात थी
29:02अजीजा सलीम काका की हमेशा ही आवारी रही है
29:06उसने लोगों को मदद करनी शुरुग कर दी
29:09प्राइमिर एक बच्चे को पढ़ाते हुए
29:11अब अजीजा को चार बरस हो गये थे
29:13वो अपने जीवन से खुष थी
29:15पैसे भी थे
29:45पहली बार आकाश में बन रहे इंद्र धनुश को देख रहे थे
29:49अजीजा की आँखों से आँशु गिरने लगे
29:51उसने भी पहली बार चाची के घर की किरकी से
29:55पहली बार इंद्र धनुश देखा था
29:57वो उसके लिए एक चमतकार ही था
29:59वो बहुत देव तक उस इंद्र धनुश को देखती रही थी
30:02परतु उस दोरान उसने कम्रो की सफाय का काम छोड़ दिया था
30:07उस दिल उसकी चाची ने उसको आदे घंटे तक पीटा था
30:11वो रात बर दर्द के मारे सो नहीं सकी थी
30:14आज बच्चों को इंद्र धनुश को देखकर किलकारिया भड़ते हुए
30:18वो इतनी खुश हुँ थी कि जार जार रोने ही लगी
30:23वो तुरंक्ति कक्षा से बहार आई और दोड़ कर बच्चों के साथ खेलने लगी
30:29बच्चे भी अजीजा को देखकर बहुत खुश हो गए
30:32उस दिन अजीजा ने नहीं पढ़ा है वो दिन भर बच्चों को कहानिया सुनाती रही
30:37वो एक छोटसा हिंदल जनुश उसके और कक्षा के बच्चों के बीच में एक बहुत ही मदर संबंद इस्थापित करने में सफल हो गया था
30:47बहुत-बहुत धन्यवाद
31:07प्रेणा कथा
31:17प्रेणा कथा
31:19प्यार पहली बार
31:21खुबसूरत तो वो बहुत थी ही पर उसके निरी आखें किसी को भी मधोष कर सकती थी
31:30एक असाधरन बात थी उसमें
31:33अपनी खुबसूरती से अनभिग वो हमेशा ही किताबों में डूबी रहती थी
31:39कह सकते हैं कि वो अंतरमुखी थी और लोगों से बहुत कम बात करती थी
31:46कम बोलने वाली लड़की होते हुए भी दुनिया और जीवन के प्रती उसका नज़रिया बहुती सुलज़ा हुआ था
31:54कॉलेज की अपनी पढ़ाई को वो कुछ ज़्यादा ही गंभीरता से लेती थी
32:01उसकी मा बहुत लंबे समय से बिमार चल रही थी
32:05फिर एक दिन उसकी मा इस दुनिया से चल बसी है
32:09मा की मिर्त्यु के बाद घर की जुम्मेधारी भी अब उसके कंधों पर आ गई
32:15परन्तु उसने इसको भी बहुती सहज ढंग से ले लिया
32:20मा की मिर्त्यु ने उसको पहले से भी अधिक शांत कर दिया था
32:26वो अपने दुख और मन की सभी बातें अपने अंदारी रखती थी
32:31घर में उसके पिताजी और उसके छोटे भाई के अलावा और कोई भी नहीं था
32:38पापा अपने दोनों बच्चों से बहुत प्रेव करते थे
32:41और उन दोनों की हर सुख सुविधा का पूरा खायाल रखते थे
32:45परन्तु वो चिंतित रहती थी
32:49उसके पापा ने उसको एन दिन कहा भी था
32:51माधृरी तुम आज कल कुछ जयदा ही चिंतित दिखती हो
32:55पर उसने कोई जवाँ नहीं दिया था
32:58माधृरी बड़ी बेटी थी और कॉलेट के अंतिम वर्ष में थी
33:02वो चाहती थी कि जितनी जल्ली हो सके वो अपने पैरों पर खड़ी हो जाए
33:06वो पिताजी की कुछ आर्थिक मजद करना चाहती थी
33:10अगले वर्ष जब उसकी सनातक की डिग्री प्राप्थ हुगई
33:14कुछ दोस्तों के कहने पर उसने एक कंप्यूटर कोर्स करना शुरू कर दिया
33:19उन दिनों कंप्यूटर कोर्स नए नए थे और बहुत कम चात्र ही कंप्यूटर सीखते थे
33:26माधुरी का भै था उस कोर्स को करते हुए
33:30वो शंकित रहती थी क्या वो कंप्यूटर सीख पाएगी या नहीं
33:35उस दिन कंप्यूटर कक्षा का पहला दिन था
33:39चात्र कक्षा में बैठे शिक्षक का इंतजार कर रहे थे
33:44वो सोझ रहे थे के कोई मध्यम उम्र के अनुभवी शिक्षक या शिक्षी का होंगे
33:51परन्तु वो सब हैरान होगे जब एक आकरशक नौजवान ने कक्षा में प्रवेश किया
33:58वो चात्रों के कंप्यूटर टीचर थे
34:02शिक्षक ने सबसे पहला अपना परिचे दिया उनका नाम अनुभव था
34:08उसके बाद उनने सभी चात्रों का एक एक करके परिचे दिया
34:12चात्रों के मन में कंप्यूटर कोर्स के प्रती जो भै था वो तुरंत ही निकल गया
34:19अनुभव ने चात्रों को कंप्यूटर के बारे में बहुती सरल भाषों में समझाया
34:23माधुरी को उनका पढ़ाने का तरीका बहुती अच्छा लगा
34:27उसकी कंप्यूटर में रुची बढ़ने लगी है
34:30एक महिने तक माधुरी ने अन्य चात्रों की तरह से ही
34:35जैसे जैसे वो शिक्ती जाती थी
34:38वैसे वैसे उसकी कंप्यूटर और कंप्यूटर प्रोग्रामों में रुची और भी बढ़ने लगी है
34:43एक दिन अनुभव सर कक्षा में चात्रों को नोट्स लिखवा रहे थे
34:48माधुरी भी लिखने में व्यस्थ थी
34:51अचानक उसने सर उठा कर अनुभव की तरह देखा
34:55वो एकदम शर्मा गई क्योंकि अनुभव सर उसकी तरफ ही देख रहे थे
35:02जैसे उनकी नज़्रे माधुरी की नज़्रों से मिली उनोंने अपनी नज़्रे हटा ली
35:08ऐसा लगता था उनको कि जैसे उनकी चोरी पकड़ी गई थी
35:16दूसरी तरफ माधुरी को भी एक अजी परन्तु गुदगुदा देने वाली अनुभुती थी
35:22उसने खुद को नियंत्रित करने का प्रयास किया
35:25वो मन ही मन अपने आपको ये विश्वास दिलाने में लगगी कि ये उसका ब्रहम था
35:30अगले दिन से माधुरी कक्षा में कुछ ज्यागा ही सजेत रहने लगी
35:35वो हमेशा ही अनुभुत सर की नज़्रे अपने इरद गिरद महसूस करने लगी
35:40वर्षों से सांत रहे उसके मन में अब उठल उठल होने लगी थी
35:45वो अंतरमक्य ही रहना चाहती थी परन्तु उसका मन चंचल रहने लगा था
35:51वो अनुभुत सर की तरफ आकर्षित होने लगी थी
35:55उस दिन कक्षा में माधुरी ने ध्यान से अनुभुत सर को देखा
36:11माधुरी अमेशा से ही दोस्तों से दूल रही थी और शायद इसलिए उसको प्रेम के बारे में कुछ जानकारी भी नहीं थी
36:23परन्तु उसका मन उसको कहने लगा था के उसको प्रेम हो गया था
36:30उसको तो वास्तब में पहली नजर में ही अनुभुत सर से प्रेम हो गया था
36:34जब भी कक्षा में सर उसको अपने पास बुलाते थे और कुछ कमप्यूटर पर दिखाना चाहते थे
36:40उसके दिल की धड़केने तेज हो जाती थी
36:43कुछ दिनों को बाद माधुरी को भी ये लगने लगा के अनुभुत सर उससे कुछ कहना चाहते थे
36:55परन्तु कह नहीं सके थे
37:0311 महिनें बिद गए और कोडस भी पुरा होने वाला था
37:12उस दिन उस कोर्स का अंतिम दिध था
37:16सभी चात्रों खुश थे क्योंकि उन्होंने कंप्यूटर के बारे में बहुत कुछ सीख लिया था
37:21उस दिन सभी को प्रमाण पत्र दिये जाने थे
37:24सभी के दिमाग में नौकरी की आशा जाग गई थी
37:28अन्ग चात्रों से भिन माधुरी को तो किसी और बात का ही इंतिजार था
37:33अन्भौव सर ने सभी चात्रों की प्रसंसा की और बढ़ाई दी
37:37और उनके उज्ञल भहिष्य के लिए कामणा की
37:40कक्षा समात थी और चात्र कक्षा से बाहर जाने लगे
37:45माधुरी भी उठखड़ी ही उसने अन्भौव सर की तरफ देखा
37:50वो भी उसकी तरफ ही देख रहे थे
37:53माधुरी को लगा कि अन्भौव सर की खामोष आखें
37:56उससे कुछ कहना चाह रही थी
37:59परन्तु उनकी जुवान उनका साथ नहीं दे रही थी
38:03माधुरी को ये तो यकिन हो गया था कि वही प्यार था
38:07और उन दोनों को ही एक दूसरे से प्यार हो गया था
38:10परन्तु वो चुपचाप उठी और कक्षा के भार चले जाए
38:14एक बार उसने मुढ़कर अन्भौव सर की तरफ देखा भी
38:18परन्तु अन्भौव सर के होट तो हिले पर वो कुछ कह नहीं सके
38:22कुछी दिनों में माधुरी को एक अच्छी सी नौकरी भी मिल गई
38:26उसके पिताजी न उसको बताये कि उसकी शादी के बहुत सी रिष्टे आने शुरू हुगे थे
38:32उसको अपने पिताजी की खातिरे आखेर शादी करनी पड़ी
38:36शादी भी हो गई और वो अपने ससुराल चली गई
38:40जीवन ठीक ठाक चरने लगा
38:43उसका भरा पुरा घर परिवार था
38:46इसी तरह धीरे धीरे 40 बरस मिट गए
38:50आज भी माधरी जब बीते हुए 40 बरसों के बारे में सोचती है
38:55तो वो कंप्यूटर कोर्स वाले पढ़ने पर बहुत देव तक रुकी रहती है
39:00वो ही तो उसका पहला प्यार था
39:03अनुभव सर से ही उसने पहली बार प्रेम किया था
39:07वो अशास उसको पहली बार हुआ था
39:10वो अनुभव सर अशास को 40 बरसों के बार भी नहीं भूल पाई थी
39:16वो सोचती है क्या अनुभव सर को भी इतने बरसों के बार ऐसा ही महसूस होता होगा
39:22वो इंतजार करती रहती है कि शायद कहीं कभी एक बार फिर अनुभव सर से मुलाकात हो जाए
39:28और शायद वो 40 बरसों पहले ना कही गई बात वो आखिर कहई दे
39:34वो अब 40 बरसों के बाद बच्चों के बड़े हो जाने के बाद और उनकी शादियां हो जाने के बाद और अपने पती के मुर्थि के बाद एक बार फिर से अंतरमुखी रहने लगी है
39:46परतु वो जो प्यार पहली बार हुआ था उसका ऐसास अब फिर से नए जोश के साथ जिन में कई-कई बार उसको होने लगा है
40:00बालों में कही-कही सफेडि भी आ गई है परतु मन में वही जवान भावना और मंग है जो उसमें कक्षा के अंतिम दिन अनभवसर से दूर होते हुए या उस कक्षा में पढ़ने के दौरान महसूस की थी
40:30आपको प्रस्तुद्ध करने के लिए कहने के लिए आपको प्रस्तुद्ध करने के लिए आपको प्रस्तुद्ध करने के लिए आपको प्रस्तुद्ध करने के लिए आपको प्रस्तुद्ध करने के लिए आपको प्रस्तुद्ध करने के लिए आपको प्रस्तुद

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