भवानीमंडी (झालावाड़) . देश की दूसरी सबसे बड़ी मेहंदी की मंडी भवानीमंडी में इन दिनों बंपर आवक हो रही है। किसानों को मेहंदी के भाव भी उम्मीद से ज्यादा मिल रहे हैं। भाव अच्छे मिलने से किसानों के चेहरे पर खुशी देखने को मिल रही है। मंडी में सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश के 7 जिलों से मेहंदी की ज्यादा आवक हो रही है। किसानों को यह भाव 6 वर्ष पूर्व मिले थे।
किसी कृषि जिंस का भाव कम रहने पर गुस्सा जाहिर कर समर्थन मूल्य बढ़वाने की मांगे और नारेबाजी तो होती रहती है, लेकिन गुरुवार को नगर की अ श्रेणी कृषिमंडी में नजारा दूसरा था। खेत की सुरक्षा के लिए उसकी मेढ़ पर मेहंदी के पेड़ लगाकर बिना मेहनत के उपजाई मेहंदी के भाव रिकॉर्ड 5 हजार 2 सौ रुपए से 6 हजार 500 रुपए प्रति क्विंटल हो गए।
व्यापारी बालकिशन गुप्ता ने बताया कि इससे पहले 6 वर्ष पूर्व मेहंदी के अच्छे भाव मिले थे। व्यापारी गोविन्द मेड़वताल व प्रदीप जैन ने बताया कि देश की पहली बडी मंंडी सोजत में है। यहां मेहंदी की मेहनत करके बगीचे लगाकर खेती की जाती है लेकिन भवानीमंडी में खेती नहीं होती है। यह अपने आप ही खेतों की मेढ़ पर उग आती है।
सोने के भाव कथीर बिका
यहां की मेहंदी के भाव ने सही में सोने के भाव कथीर बिका की कहावत को सही साबित कर दिया। यह वही मेहंदी है, जो कभी भाव नहीं रहते 300 रुपए प्रति क्विंटल तक बिक गई थी। तब किसानों ने मंडी में इसको लाना भी पंसद नहीं करते थे लेकिन आज इसके भाव 6500 रुपए प्रति क्विंटल तक है। ऐसे में भवानीमंडी में दूर-दूर से किसान मेहंदी के पत्ते लेकर बेचने आ रहे हैं। व्यापारी विजय पोरवाल ने बताया कि दो दिन से लगातार मंडी में एक हजार बोरों से ज्यादा की आवक हो रही है। यह भाव एक तरह से सोने के भाव कथीर बिकने के समान है। कृषि मंडी में सभी प्रमुख जिंसों में यह सबसे तेज बिकी है।
एमपी के दूरदराज क्षेत्रों से भी आवक
नगर की अ श्रेणी कृषि उपज मंडी मे मध्यप्रदेश के मंन्दसोर जिले, आगर, उज्जैन, शाजापुर, नीमच, राजगढ़, भोपाल व इन्दौर के आसपास निमाड़ क्षेत्र के किसान इन दिनों भवानीमंडी की मंडी में मेहंदी पत्ते लेकर पहुंच रहे हैं। किसानाें ने बताया कि भवानीमंडी की मंडी में ही हम मेहंदी पत्ता वर्षों से बेचने आ रहे हैं।
15 दिन में फसल तैयार हो जाती है
सुलिया चौकी गांव के किसान हरिसिंह गुर्जर व ओंकार सिंह ने बताया कि मेढ़ पर उगी हुई मेहंदी की ढगाल तो तोड़कर एक तिरपाल को धूप में रखकर मेहंदी को सूखने के लिए रख दिया जाता है। 10 से 15 दिन में पत्ता सूख कर तैयार हो जाता है। इस फसल को पैदावर करने में किसान को किसी भी प्रकार की मेहनत नहीं करनी पड़ती है। इसके बाद पत्तों में वापस फुटन आ जाती है जो दूसरी फसल फरवरी व मार्च में आ जाती है।
किसी कृषि जिंस का भाव कम रहने पर गुस्सा जाहिर कर समर्थन मूल्य बढ़वाने की मांगे और नारेबाजी तो होती रहती है, लेकिन गुरुवार को नगर की अ श्रेणी कृषिमंडी में नजारा दूसरा था। खेत की सुरक्षा के लिए उसकी मेढ़ पर मेहंदी के पेड़ लगाकर बिना मेहनत के उपजाई मेहंदी के भाव रिकॉर्ड 5 हजार 2 सौ रुपए से 6 हजार 500 रुपए प्रति क्विंटल हो गए।
व्यापारी बालकिशन गुप्ता ने बताया कि इससे पहले 6 वर्ष पूर्व मेहंदी के अच्छे भाव मिले थे। व्यापारी गोविन्द मेड़वताल व प्रदीप जैन ने बताया कि देश की पहली बडी मंंडी सोजत में है। यहां मेहंदी की मेहनत करके बगीचे लगाकर खेती की जाती है लेकिन भवानीमंडी में खेती नहीं होती है। यह अपने आप ही खेतों की मेढ़ पर उग आती है।
सोने के भाव कथीर बिका
यहां की मेहंदी के भाव ने सही में सोने के भाव कथीर बिका की कहावत को सही साबित कर दिया। यह वही मेहंदी है, जो कभी भाव नहीं रहते 300 रुपए प्रति क्विंटल तक बिक गई थी। तब किसानों ने मंडी में इसको लाना भी पंसद नहीं करते थे लेकिन आज इसके भाव 6500 रुपए प्रति क्विंटल तक है। ऐसे में भवानीमंडी में दूर-दूर से किसान मेहंदी के पत्ते लेकर बेचने आ रहे हैं। व्यापारी विजय पोरवाल ने बताया कि दो दिन से लगातार मंडी में एक हजार बोरों से ज्यादा की आवक हो रही है। यह भाव एक तरह से सोने के भाव कथीर बिकने के समान है। कृषि मंडी में सभी प्रमुख जिंसों में यह सबसे तेज बिकी है।
एमपी के दूरदराज क्षेत्रों से भी आवक
नगर की अ श्रेणी कृषि उपज मंडी मे मध्यप्रदेश के मंन्दसोर जिले, आगर, उज्जैन, शाजापुर, नीमच, राजगढ़, भोपाल व इन्दौर के आसपास निमाड़ क्षेत्र के किसान इन दिनों भवानीमंडी की मंडी में मेहंदी पत्ते लेकर पहुंच रहे हैं। किसानाें ने बताया कि भवानीमंडी की मंडी में ही हम मेहंदी पत्ता वर्षों से बेचने आ रहे हैं।
15 दिन में फसल तैयार हो जाती है
सुलिया चौकी गांव के किसान हरिसिंह गुर्जर व ओंकार सिंह ने बताया कि मेढ़ पर उगी हुई मेहंदी की ढगाल तो तोड़कर एक तिरपाल को धूप में रखकर मेहंदी को सूखने के लिए रख दिया जाता है। 10 से 15 दिन में पत्ता सूख कर तैयार हो जाता है। इस फसल को पैदावर करने में किसान को किसी भी प्रकार की मेहनत नहीं करनी पड़ती है। इसके बाद पत्तों में वापस फुटन आ जाती है जो दूसरी फसल फरवरी व मार्च में आ जाती है।
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