सवाईमाधोपुर. जिले में अमरूदों की बागवानी कर रहे किसानों की समस्याएं थमने का नाम नहीं ले रही है। अब अमरूद के बगीचों में एंगल लीफ एवं फू्रट स्पॉट रोग की समस्याएं सामने आ रही है। यह रोग एक शैवाल सेफाल्यूरस विरेसेंस के कारण होता है, जो पत्तियों, फलों और तनों पर संक्रमण करता है। इससे क्षेत्र के किसान चिंतित नजर आ रहे है।
आद्र्रता व गीले मौसम में फैलता है यह रोग
यह रोग अधिक आद्र्रता और गीले मौसम में तेजी से फैलता है। जल की छींटों से रोग के ज़ूस्पोर्स फैलते हैं। इस रोग के प्रकोप होने पर पत्तियों के दोनों सतहों पर नारंगी या जंग जैसे रंग के घने व रेशेदार धब्बे बनते हैं। तनों और शाखाओं की छाल में दरारें आ जाती है। अमरुद में शैवाल पर्ण व फल चित्ती, बीमारी की विशिष्ट पहचान पत्तियों पर वैल्वेटी धब्बों का बनना व फलों पर जालनुमा के दाग बनते है। कत्थई काले रंग के दागों का बनना प्रमुख लक्षण है। पत्तियों पर छोटे-छोटे आकार के मखमली धब्बे दिखाई देते हैं जो बढकऱ 2.3 मिमी आकार के हो जाते हैं। यह रोग पत्ती के शीर्ष, किनारों या मध्य शिरा पर अधिक प्रभावी होता है। अपरिपक्व फलों पर कत्थई.काले रंग के दाग बन जाते हैं। दाग की जगह फल फट भी जाते हैं।
यह है रोग के नियंत्रण व प्रबंधन के उपाय
इस रोग के नियंत्रण एवं प्रबंधन के लिए बगीचों की नियमित निगरानी करते हुए लक्षण दिखते ही रोग का उपचार करना जरूरी है। फलों की गुणवत्ता सुधार के लिए प्रारंभिक अवस्था में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें। बगीचे के आसपास के क्षेत्र में सफाई रखें। इस रोग के प्रभावी नियंत्रण के लिए सिस्टमिक फंगीसाइड थायोफिनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी 2 ग्राम या प्रॉपिकनोजॉल 25 ईसी 1 मिलीलीटर पानी के हिसाब से घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए। छिडक़ाव को 15 दिन के अंतराल में दोहराएं।
इनका कहना है...
क्षेत्र में अमरूद के बगीचों में एंगल लीफ एवं फू्रट स्पॉट रोग की समस्याएं देखी जा रही है। यह रोग एक शैवाल सेफाल्यूरस विरेसेंस के कारण होता है, जो पत्तियों, फलों और तनों पर संक्रमण करता है। इसके लिए किसानों को रोग के लक्षण एवं उपचार के बारे में बताया जा रहा है।
विजयकुमार जैन, कृषि अधिकारी, सूरवाल
आद्र्रता व गीले मौसम में फैलता है यह रोग
यह रोग अधिक आद्र्रता और गीले मौसम में तेजी से फैलता है। जल की छींटों से रोग के ज़ूस्पोर्स फैलते हैं। इस रोग के प्रकोप होने पर पत्तियों के दोनों सतहों पर नारंगी या जंग जैसे रंग के घने व रेशेदार धब्बे बनते हैं। तनों और शाखाओं की छाल में दरारें आ जाती है। अमरुद में शैवाल पर्ण व फल चित्ती, बीमारी की विशिष्ट पहचान पत्तियों पर वैल्वेटी धब्बों का बनना व फलों पर जालनुमा के दाग बनते है। कत्थई काले रंग के दागों का बनना प्रमुख लक्षण है। पत्तियों पर छोटे-छोटे आकार के मखमली धब्बे दिखाई देते हैं जो बढकऱ 2.3 मिमी आकार के हो जाते हैं। यह रोग पत्ती के शीर्ष, किनारों या मध्य शिरा पर अधिक प्रभावी होता है। अपरिपक्व फलों पर कत्थई.काले रंग के दाग बन जाते हैं। दाग की जगह फल फट भी जाते हैं।
यह है रोग के नियंत्रण व प्रबंधन के उपाय
इस रोग के नियंत्रण एवं प्रबंधन के लिए बगीचों की नियमित निगरानी करते हुए लक्षण दिखते ही रोग का उपचार करना जरूरी है। फलों की गुणवत्ता सुधार के लिए प्रारंभिक अवस्था में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें। बगीचे के आसपास के क्षेत्र में सफाई रखें। इस रोग के प्रभावी नियंत्रण के लिए सिस्टमिक फंगीसाइड थायोफिनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी 2 ग्राम या प्रॉपिकनोजॉल 25 ईसी 1 मिलीलीटर पानी के हिसाब से घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए। छिडक़ाव को 15 दिन के अंतराल में दोहराएं।
इनका कहना है...
क्षेत्र में अमरूद के बगीचों में एंगल लीफ एवं फू्रट स्पॉट रोग की समस्याएं देखी जा रही है। यह रोग एक शैवाल सेफाल्यूरस विरेसेंस के कारण होता है, जो पत्तियों, फलों और तनों पर संक्रमण करता है। इसके लिए किसानों को रोग के लक्षण एवं उपचार के बारे में बताया जा रहा है।
विजयकुमार जैन, कृषि अधिकारी, सूरवाल
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