निंदा का फल

  • 2 months ago
दोषित देखना और निंदा करने से हम कैसे कर्म बंधते है? इच्छा न होने पर भी दूसरों के दोष देखना या निंदा करना हो जाता है, तब हमें क्या करना चाहिए? इस आदत से हम कैसे छुटकारा पाएँ जिससे अगले जन्म में हमें कर्म बंधन न हो?
Transcript
00:00तके किता है कि हम लेडीस लोगों को बहुत एक सोबाव रहता है
00:15कि हम जादा करके नीन्दा करने में बहुत इंट्रेस रहते हैं,
00:19किसी का दोष देखने में हम बहुत इंट्रेस लेते हैं,
00:22दोष देखते भी हैं, नीन्दा भी करते हैं,
00:24इससे हमारा कौन सा करम बनता है?
00:27दुखी होने का.
00:30दुशरे की नीन्दा करोगे, आपकी नीन्दा होगी,
00:33दुशरे को त्रास देने का भाव भी करोगे,
00:36आपको त्रास आएगा, दुशरे की चीज चोरी करने की इच्छा करोगे,
00:39तो आपके वहाँ चोरी हो जाएगे,
00:41दुशरे को आप दान दोगे, तो आपको लश्मि पाओगे,
00:44जैसा भाव करते हो, वो खुद को ही प्राप्ति होगी,
00:48आप निन्दित होते जाओगे,
00:51निन्दा करने से,
00:53किसी को दुख नहीं देना, किसी का बुरा नहीं,
00:56शब्द भी निकल चुका, तो प्रतिकमन करो,
00:59हमें क्या अधिकार है दुशरे के दोश देखने के,
01:02दुशरे के नेगिटिव दुशरे को बनताने का?
01:05और जो दोश देखते हैं, हम चाहते हैं नहीं देखना है,
01:09फिर भी हो जाता है, वो भी पाप है क्या?
01:12दोश देखते हैं, वो ऐसा है, वो वैसी है,
01:15बहुत दोश है, वो ही गुना है नहीं,
01:17वो आत्मा को हम गुनेगार देखते हैं,
01:19गधे का भी तिरसकार किया, तो एक उतर गधे में जाना पड़ेगा,
01:24तो ये आदमी का तिरसकार करते हैं,
01:26गधोगती मिलेगी हमें, और दो फल मिलेगा,
01:30वो आदमी को मालुम होगा, तो वैर बन देगा हमारा,
01:33और हमने उसका बुरा सोचा, तो हमें दुख खाएगा,
01:36डबल फल आएगे, तैयारी रखो,
01:40प्रतिकमन करोगे, तो फिर गुना धोया जाएगा,
01:44दुसरे बहुं में जवाबधारी नहीं आएगे.

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