मृत्यु किसकी होती है?

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मृत्यु का सामना किस प्रकार करना चाहिए? मृत्यु के भय से कैसे मुक्त हो सकते है?
Transcript
00:00दादा मृत्यू का भै क्यों रहता है सभी को?
00:20मृत्यू का भै तो अहंकार को रहता है आत्मा को कुछ नहीं
00:25अहंकार को भै रहता है कि मैं मरजाऊंगा मैं मरजाऊंगा
00:31जब डूट्यू आएगा तो उसका साAmन और उसे सुदधारा कैसे जा sakta hai
00:36अभी आत्मा का जञान जाओंका में मिल याएगा तो मैं ही सुधात्मा हूं
00:40शुद्धात्मत मरता ही नहीं, पर्मरंट है, टेंपररी है ही नहीं।
00:44यह रेलेटिव को मैंने अपना हुआ, देह को मैं हुआ माना, देह टेंपररी है,
00:48इसके लिए भई उतपन होजाता है.
00:50महरा क्या होगी?
00:51फयेमिलक्का क्या होगा?
00:52सब दुखी, दुह्की, दुख।
00:54क्या अन्य ookya घ्यान हो जाती है
00:55क्या देधू भीनाश्य हाई ही है।
00:57मैं खुद देह नहीं, मैं आत्मस्वरुप हूँ, मैं अविनाशी हूँ।
01:01तो अविनाशी को कोई भई रहता ही नहीं, मरने का भी मरण।
01:05तो ये दुख ही मिड़ जाएगा, शोक, भई, दूख, वेदना, सब चले जाएगी।
01:10अविनाशी की जागरती मेरे नाहीं है।
01:13तो ये मुरुत्यों का भई चले जाएगा, और समाधी मरण।
01:16मरण के टाम समाधी आत्मदशा की, समाधी रहेगी, उसकी गरेंटी।
01:22जितने भी मुरुत्यों, आज तक जिसके भी घर में हुए है,
01:25जिसने भी ग्यान लिया है, उसके घर में मुरुत्यों का अनुबव,
01:29यही है, यक्ति लास्ट मुमेंट में समाधी दशा में थी,
01:34उसको कोई दुख नहीं था, वेदना नहीं थी,
01:37और आसपास वाले को कोई शोक उत्पन नहीं हुआ।
01:39आनन्द, आनन्द, मुरुत्यों, महत्सव जैसा घर में लगा.

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