झालावाड़. सोयाबीन और संतरे के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध झालावाड़ जिला अब प्याज में सिरमौर बनता जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में जिले में प्याज के उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई है। पहले देश के दूसरों शहरों से प्याज मंगवाया जाता था लेकिन आज हालात बदल गए हैं। प्याज में झालावाड़ जिला इतना आत्मनिर्भर हो गया है कि अब यहां का प्याज दूसरे शहरों में भेजा जा रहा है।
प्याज उत्पादक किसान कहते हैं कि इसकी खेती से अच्छा मुनाफा मिल रहा है। ज्यादातर किसान अब सोयाबीन से मुंह मोड़ते जा रहे हैं, क्योंकि खर्च और मेहनत दोनों ही फसलों में बराबर लगती है, लेकिन मुनाफा प्याज में ज्यादा होता है। किसान खरीफ व रबी दोनों सीजन में इसकी फसल ले रहे हैं। जिला मुख्यालय के आसपास तीतरी, तीतर वासा, मांडा, श्यामपुरा और झूमकी सहित दर्जनों ऐसे गांव है जहां पर सभी किसान प्याज की खेती कर रहे हैं। वहीं रटलाई, भालता व सुनेल क्षेत्र के कई गांवों में भी प्याज की भरपूर पैदावार हो रही है।
कई नौजवान किसान भी जुड़े
जिले में इन दिनों कुछ नौजवान और शिक्षित किसान अलवर पद्धति का उपयोग करके प्याज की खेती कर रहे हैं, तो अन्य किसान अलवर पद्धति में कई खामियां बता कर उसको झालावाड़ की मिट्टी में ज्यादा कामयाब नहीं मानते और परंपरागत तरीके से ही प्याज की खेती कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि अलवर पद्धति से प्याज की खेती रेतीली जमीन में कामयाब होती है, झालावाड़ में क्योंकि काली मिट्टी का क्षेत्र है ऐसे में यहां अलवर पद्धति बहुत ज्यादा कामयाब नहीं है। बारिश भी अनियमित होने वाले नुकसानों का खतरा ज्यादा रहता है।
इस वर्ष भाव भी मिल रहे हैं अच्छे
किसान बताते हैं कि इन दोनों प्याज बाहर भी भेजा जा रहा है जिसके चलते बाजार में अच्छे भाव मिल रहे हैं। किसानों को प्याज का बड़ा कारोबार करने वाले व्यापारियों द्वारा 32 से 35 रुपए किलो का भाव दिया जा रहा है जिसके चलते किसानों को अच्छा मुनाफा मिल रहा है। प्याज की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि 60 से 70 हजार रुपए प्रति बीघा का खर्चा लगता है और 20 से 30 हजार रुपए प्रति बीघा की बचत हो जाती है। जबकि सोयाबीन एवं अन्य फसलें करने पर यह बचत तीन से चार हजार प्रति बीघा ही रह जाती है, ऐसे में अब प्याज की खेती किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है।
अलवर पद्धति
अलवर पद्धति में बरसात के अंतिम दिनों में प्याज का बीज डालकर उसके पौधे बनाए जाते हैं तथा जब उसमें छोटी-छोटी प्याज की गांठे निकल आती है तब उनको निकाल कर भंडार में रख लिया जाता है, उसके पश्चात जब बरसात खत्म होती है और प्याज की बुवाई का सीजन आता है तब सीधे उन गांठों को दोबारा से खेत में रोप दिया जाता है। जो समय से पहले तैयार हो जाती हैं और आकार तथा वजन में भी अच्छी होती हैं, किसानों के समय की बचत होती है मुनाफा भी अच्छा होता है।
परंपरागत पद्धति
परंपरागत पद्धति में प्याज को बीज छिड़क कर छोटी क्यारियों में उगाया जाता है तथा पौधे बनने के बाद पूरे खेत में क्यारियां बनाकर शिफ्ट किया जाता है। लगातार उसकी देखभाल की जाती है और प्याज के पूरे आकार ले लेने तक इंतजार किया जाता है। प्याज के पूरी तरह पक जाने पर उसको निकाला जाता है और कटाई करके बेच दिया जाता है। हालांकि इस पद्धति में अलवर के मुकाबले समय थोड़ा ज्यादा लगता है लेकिन किसान कहते हैं कि यह पद्धति काली मिट्टी में प्याज की खेती करने के लिए ज्यादा फायदेमंद है।
आसपास प्याज के खरीदार नहीं होने से जयपुर मण्डी में जाकर बेचना पडता है। जितना प्याज बेचना हो उसी हिसाब से खेत से निकाला जाता है। प्याज की खेती में परिवार के सदस्यो का सक्रिय सहयोग रहता है व समय समय पर सार संभाल करते है जिससे उत्पादन बढिया हो सके। प्याज की फसल के लिए पौध जुलाई महीने में तैयार कर खेत में सितम्बर माह में रोपाई की गई।
अरुण शर्मा, युवा किसान, दोबड़ा
किसानों का प्याज की फसल में रुझान बढ़ा है। यहां के किसानों ने 4 बीघा भूमि से लेकर 15 बीघा भूमि तक में बुवाई की है। अभी प्याज को तैयार कर पैकिंग की जा रही है। इन्हें जयपुर, मध्यप्रदेश के शाहजहांपुर और दिल्ली में बेचा जा रहा है। वहां बेचने का मुख्य कारण यह है कि लोकल मंडियों में प्याज के भाव नहीं मिलते हैं। इसलिए इतनी दूर तक बेचने जा रहे हैं।
सूरजमल पाटीदार, किसान, तीतरी निवासी
प्याज के भाव अच्छे मिलने से किसानों का रूझान फसल की ओर बढ रहा है। इस साल खरीफ की फसल की बुआई 2200 बीघा में की गई थी। क्षेत्र में रायपुर, सोयली, सोयला, पालखन्दा, सालरी, दोबडी, दोबडा, गरवाडा, दूबलिया, कडोदिया, दीवलखेडा, सेमलीखाम, धामनिया सहित अन्य गांवों में प्याज की खेती बहुतायत में होती है।
अरविन्द पाटीदार, सहायक कृषि अधिकारी
फैक्ट फाइल
जिले में रबी 2023-24
क्षेत्रफल हेक्टेयर -2500
उत्पादन-25000
उत्पादकता-10000
बुवाई-1650
उत्पादन हुआ- 45 करोड़ 78 लाख 75 हजार
रबी 2024-25
क्षेत्रफल हेक्टेयर -2500
उत्पादन-25000
उत्पादकता-10000
बुवाई-2100
प्याज उत्पादक किसान कहते हैं कि इसकी खेती से अच्छा मुनाफा मिल रहा है। ज्यादातर किसान अब सोयाबीन से मुंह मोड़ते जा रहे हैं, क्योंकि खर्च और मेहनत दोनों ही फसलों में बराबर लगती है, लेकिन मुनाफा प्याज में ज्यादा होता है। किसान खरीफ व रबी दोनों सीजन में इसकी फसल ले रहे हैं। जिला मुख्यालय के आसपास तीतरी, तीतर वासा, मांडा, श्यामपुरा और झूमकी सहित दर्जनों ऐसे गांव है जहां पर सभी किसान प्याज की खेती कर रहे हैं। वहीं रटलाई, भालता व सुनेल क्षेत्र के कई गांवों में भी प्याज की भरपूर पैदावार हो रही है।
कई नौजवान किसान भी जुड़े
जिले में इन दिनों कुछ नौजवान और शिक्षित किसान अलवर पद्धति का उपयोग करके प्याज की खेती कर रहे हैं, तो अन्य किसान अलवर पद्धति में कई खामियां बता कर उसको झालावाड़ की मिट्टी में ज्यादा कामयाब नहीं मानते और परंपरागत तरीके से ही प्याज की खेती कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि अलवर पद्धति से प्याज की खेती रेतीली जमीन में कामयाब होती है, झालावाड़ में क्योंकि काली मिट्टी का क्षेत्र है ऐसे में यहां अलवर पद्धति बहुत ज्यादा कामयाब नहीं है। बारिश भी अनियमित होने वाले नुकसानों का खतरा ज्यादा रहता है।
इस वर्ष भाव भी मिल रहे हैं अच्छे
किसान बताते हैं कि इन दोनों प्याज बाहर भी भेजा जा रहा है जिसके चलते बाजार में अच्छे भाव मिल रहे हैं। किसानों को प्याज का बड़ा कारोबार करने वाले व्यापारियों द्वारा 32 से 35 रुपए किलो का भाव दिया जा रहा है जिसके चलते किसानों को अच्छा मुनाफा मिल रहा है। प्याज की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि 60 से 70 हजार रुपए प्रति बीघा का खर्चा लगता है और 20 से 30 हजार रुपए प्रति बीघा की बचत हो जाती है। जबकि सोयाबीन एवं अन्य फसलें करने पर यह बचत तीन से चार हजार प्रति बीघा ही रह जाती है, ऐसे में अब प्याज की खेती किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है।
अलवर पद्धति
अलवर पद्धति में बरसात के अंतिम दिनों में प्याज का बीज डालकर उसके पौधे बनाए जाते हैं तथा जब उसमें छोटी-छोटी प्याज की गांठे निकल आती है तब उनको निकाल कर भंडार में रख लिया जाता है, उसके पश्चात जब बरसात खत्म होती है और प्याज की बुवाई का सीजन आता है तब सीधे उन गांठों को दोबारा से खेत में रोप दिया जाता है। जो समय से पहले तैयार हो जाती हैं और आकार तथा वजन में भी अच्छी होती हैं, किसानों के समय की बचत होती है मुनाफा भी अच्छा होता है।
परंपरागत पद्धति
परंपरागत पद्धति में प्याज को बीज छिड़क कर छोटी क्यारियों में उगाया जाता है तथा पौधे बनने के बाद पूरे खेत में क्यारियां बनाकर शिफ्ट किया जाता है। लगातार उसकी देखभाल की जाती है और प्याज के पूरे आकार ले लेने तक इंतजार किया जाता है। प्याज के पूरी तरह पक जाने पर उसको निकाला जाता है और कटाई करके बेच दिया जाता है। हालांकि इस पद्धति में अलवर के मुकाबले समय थोड़ा ज्यादा लगता है लेकिन किसान कहते हैं कि यह पद्धति काली मिट्टी में प्याज की खेती करने के लिए ज्यादा फायदेमंद है।
आसपास प्याज के खरीदार नहीं होने से जयपुर मण्डी में जाकर बेचना पडता है। जितना प्याज बेचना हो उसी हिसाब से खेत से निकाला जाता है। प्याज की खेती में परिवार के सदस्यो का सक्रिय सहयोग रहता है व समय समय पर सार संभाल करते है जिससे उत्पादन बढिया हो सके। प्याज की फसल के लिए पौध जुलाई महीने में तैयार कर खेत में सितम्बर माह में रोपाई की गई।
अरुण शर्मा, युवा किसान, दोबड़ा
किसानों का प्याज की फसल में रुझान बढ़ा है। यहां के किसानों ने 4 बीघा भूमि से लेकर 15 बीघा भूमि तक में बुवाई की है। अभी प्याज को तैयार कर पैकिंग की जा रही है। इन्हें जयपुर, मध्यप्रदेश के शाहजहांपुर और दिल्ली में बेचा जा रहा है। वहां बेचने का मुख्य कारण यह है कि लोकल मंडियों में प्याज के भाव नहीं मिलते हैं। इसलिए इतनी दूर तक बेचने जा रहे हैं।
सूरजमल पाटीदार, किसान, तीतरी निवासी
प्याज के भाव अच्छे मिलने से किसानों का रूझान फसल की ओर बढ रहा है। इस साल खरीफ की फसल की बुआई 2200 बीघा में की गई थी। क्षेत्र में रायपुर, सोयली, सोयला, पालखन्दा, सालरी, दोबडी, दोबडा, गरवाडा, दूबलिया, कडोदिया, दीवलखेडा, सेमलीखाम, धामनिया सहित अन्य गांवों में प्याज की खेती बहुतायत में होती है।
अरविन्द पाटीदार, सहायक कृषि अधिकारी
फैक्ट फाइल
जिले में रबी 2023-24
क्षेत्रफल हेक्टेयर -2500
उत्पादन-25000
उत्पादकता-10000
बुवाई-1650
उत्पादन हुआ- 45 करोड़ 78 लाख 75 हजार
रबी 2024-25
क्षेत्रफल हेक्टेयर -2500
उत्पादन-25000
उत्पादकता-10000
बुवाई-2100
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00:00What is your good name?
00:02Suraj Malpati Das
00:04What is the name of your village?
00:06Eidri
00:08In how many bighas have you grown onions?
00:10In 5 bighas
00:12And in your village?
00:14Everyone has
00:16Some have 5 bighas
00:18Some have 4 bighas
00:20Some have 8 bighas
00:22What is going on now?
00:24This?
00:26Onion season is going on
00:28Is this the 6th?
00:30Yes
00:34And what is the weather like this year?
00:36This year
00:38The temperature is a little low
00:40How is the price?
00:42Price is good
00:44And
00:46Are you ready?
00:48Where are you going to sell?
00:50We are going to Jaipur, Kota, Indore
00:52And how is the price?
00:54Price is good
00:56Price is good
01:00And what is your expectation?
01:02It is good
01:0435-40
01:0635-40
01:08Ok
01:10So in 35-40
01:12You will get income
01:14Yes
01:16According to everyone
01:18So your price should not be less than 35-40
01:20Yes
01:22It should be near 35-40
01:24Ok
01:28So is this the ratio in your village?
01:30Yes
01:32How many bighas are there in your village?
01:3415 bighas
01:3615 bighas
01:38Ok
01:40Thank you