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  • 2 days ago

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Transcript
00:00एक गाव में मित्टी के बर्तन बनाने वाला एक व्यापारी लक्षमया था, वही उसके परिवार का व्यापार था, मित्टी से खाने के बर्तन, भगवान के लिए दिया, मटके, पानी पीने वाले बर्तन, पशुओं के लिए बर्तन, अलग प्रकार के भगवान के मूर्ती, �
00:30अलग प्रकार के मिट्टी के भर्तन बनाते हुए वो उसी काम में निमग्न हो जाता था, लेकिन समय बदल गया है, पहले की तरह कोई भी अब मिट्टी के भर्तन नहीं खरीद रहा है, इसी कारण कई साल से लक्षमया को एक रुपय का लाब भी नहीं है, उल्टा पूरा नु
01:00जार रुपय की कमाई घर लाने के लिए कह कह कर ठक गई है उसकी पत्नी अनपूर्ना, और उसके बच्चे आज की दिन में कौन खरीदेगा पपा ये, आपके मिट्टी के बर्तन, आप वो काम छोड़कर हमारे साथ शहर आ जाईएगा, वहां आपके लिए अच्छा काम हम �
01:30ठक कर वही मौझूद मिट्टी के मट्के में से पानी लेकर पी रहे होते हैं।
02:00तुरंत उसके बीवी के पास जाकर ऐसे कहता है
02:02सुनो मुझे एक अच्छा योजना सूजा है
02:07क्या है वो
02:09आगर हम मिटी से फ्रिज तैयर करें तो कैसे रहेगा
02:13लगता है मिटी में काम करकर के आपका दिमाग भी मिटी का बन गया
02:18आरे ऐसे क्यों कह रही है
02:21तो फिर ये कैसी बात हुई
02:23मिटी से फ्रिज कौन बनाता है
02:27पागल हो क्या तुम
02:28अरे ये बेव कोफी की बात नहीं है
02:32सोचो एक बार
02:33मिटी के मटके में कुछ भी रखो तो ठंडा रहेगा न
02:36तो फिर अगर मिटी से हम फ्रिज बनाएंगे
02:39तो उसमें भी चीज़े ठंडे ही रहेंगे न
02:42ए चलो आप यहां से
02:44मेरी बात कब मानते हो वैसे भी
02:46चलो जाओ तुम यहां से
02:48जो करना है कर लो
02:49ऐसे कहकर अनपूर्णा वहां से चली जाती है
02:52अगले दिन लक्षमया बहुत कोशिश करके
02:55एक छोटा सा मित्टी का फ्रिज बनाता है
02:58ऐसे ही कुछ फ्रिज तयार करके
03:03उस गाओं के बाजार में लेकर जाता है
03:06वहां वो एक भीड को घटा करके
03:08यह मित्टी से बना हुआ गरीबों का फ्रिज है
03:11इसमें पानी डालने से यह खूप चलता है
03:14इसके अंदर रखे सारी चीजों को ठंडा रखता है
03:17यह दो पर्तों में रहता है
03:19और बीच में एक खाली जग़ रहता है
03:21उसी जग़ को हमें पानी से भरना होगा
03:23इसी कारण बाहर का तापमान न अंदर आएगा
03:27और अंदर का तापमान कम नहीं होगा
03:29ऐसे वो उसके हाथों से बनाए हुआ मित्ती का फ्रिच कैसे चलता है
03:34ये भीड को समझाता है
03:36और क्योंकि उस भीड में से कुछ लोगों को ये बहुत अच्छा लगता है
03:40वो लक्षमया के पास फ्रिच को खरीद कर वहां से चले जाते हैं
03:44बाकी फ्रिच को लेकर लक्षमया घर पहुँचता है
03:47उस दिन के कमाए हुए पैसों को उसके बीवी के हाथ में रखता है लक्षमया
03:51उन पैसों को देख आश्यर चकित होकर अनपूर्ना ऐसे कहती है
03:56क्या इतने पैसे मिले आपको इस बार
03:59आज गरीगों का फ्रिच कुछ बिग गए
04:01बापरी ये सच है क्या
04:04इसका मितलब तुम्हारे मिट्टी के फ्रिच को खरीदने वाले लोग भी है
04:08चलो अच्छा है कुछ तो आया हाथ में
04:12इतने दिनों में कुछ पैसे तो घर लाये तुम
04:15ये कहकर वो वहां से चली जाती है
04:18ऐसे लक्षमया उसके बाद कुछ और मिट्टी के फ्रिच को बना कर
04:22बाजार ले कर जाता है
04:23कुछ दिन बाद सारे जिल्ला में ये बात फैल जाती है
04:31कि लक्षमया का गरीबों का फ्रिच बिजली के बिना ही चलती है
04:36इस कारण लोग सारे लक्षमया के घर सीरा पहुंच कर गरीबों के मिट्टी का फ्रिज खरीद कर वहां से चले जाते थे
04:44इसी कारण एक ही जटके में लक्षमया का व्यापार बहुत बढ़ जाता है
04:50लाब भी मिलते हैं और काम करने के लिए लक्षमया उसके नीचे कुछ लोगों को नौकरी भी देता है
04:58ये सब देख अन्नपूर्ण अपनी आँखों का भरोसा ही नहीं कर पा रही थी
05:02शहर में कुछ तो भी काम करवा देंगे आपसे
05:05कहने वाले उसके बच्चे भी आज लक्षमया के हातों से बनाये हुए
05:11मिट्टी के फ्रिच को शहर में बेचने की व्यापार शुरू करते हैं
05:16ऐसे लक्षमया को उसके मैनत का फल मिलता है
05:18वो अमीर बनता है और खुश रहता है

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