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पूरा वीडिओ: हैदराबाद से हसदेव तक: जलवायु परिवर्तन की अंतिम चेतावनी || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2025)

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00:00उजे दोग मिलते रहे, वो आपके बारे में जाना चाहते हैं।
00:03जाधा तर लोगों ने कहा कि आचार जी कितने घंटे सोते हों।
00:06एक कविता सुनेंगे? दोजार पंदराया सोला की है।
00:09आ विल्कुल।
00:10अब सोने पर पूछ दिया आपने तो।
00:12अभी दो-तीन दिन पहले कम्यूनिटी पर किसी ने डाली थी,
00:15मन, शान्त सब के सोने पर मेरा इकांत सर्च करो।
00:19यह मेरी ही कविता है, जो एक रविवार को जब सिर्फ दो घंटे सोने के बाद,
00:24जो जगा दिया कि अब लोग आ रहे हैं, सत्र शुरू होगा आधे घंटे में उठ जाई है।
00:29तो मैं उठा और सत्र में जाने से पहले मैंने एक कविता लिख दी।
00:35यह लिखा था, मन, शान्त, तब के सोने पर मेरा इकांत।
00:38क्योंकि जब सब सो जाते हैं तो सब के बाद ही मेरा सोने का होता है।
01:08तुम मुझे आ जगा होगे।
01:10है बाद।
01:12मैं क्यों जग जाऊंगा।
01:14पीड़ा भी है दर्शन भी हाँ।
01:16मैं पूछूंगा, किसलिए मन, क्या बचा है चेतना के जगत में जो पाना शेश है।
01:24या तुम्हें भी यही लगता है कि रात्रे से दिन विशेश है।
01:38समस्तिसपंदन पर किसी मुस्कुराते मूर्ख की भाते जग मैं जाऊंगा।
01:42क्योंकि अभी एक प्रश्न रह गया है बाकी, कि तुम्हारे आने पर नीद से न जगने का विकल्प मेरे पास है भी या नहीं।
01:51अर्य हुआ।
01:52तुम्हारे आने पर मेरे पास नीन से जगने का विकल्प है भी या नहीं क्या वाद

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