पांचाल घाट के प्रसिद्ध मेला रामनगरिया का यह है अस्तित्व
#Panchal ghat par #Prasidh mela #Ram nagariya
फर्रुखाबाद प्रतिवर्ष माघ के महीने में गंगा तीरे लगने वाले तम्बुओं के शहर (मेला रामनगरिया) के अस्तित्व में आने के सम्बन्ध में बहुत कम लोग ही जानते है. आखिर कब देश-प्रदेश के श्रद्धालुओं को अपनी तरफ आकर्षित करने वाला मेला अस्तिस्त्व में आया. यह सबाल अधिकतर लोगों के जगन में वर्षो से जगह बनाये है. हमारे न्यूज,टीम ने इसकी कई दिनों तक पड़ताल की. पुराने इतिहास को खंगाला तो जो सामने आया उससे मेला रामनगरिया के अस्तित्व के सबाल से काफी हद तक पर्दा उठा है. कंपिल से फर्रुखाबाद श्रंगीरामपुर तक गंगा के तट से गंगा जल लेकर श्रद्धालु मानसरोबर कैलाश जाकर देवाधिदेव भगवान शंकर को अर्पित करते थे.प्राचीन ग्रथों में इस पूरे क्षेत्र को स्वर्गद्वारी कहा गया है। घटियायों का घाट घटियाघाट वर्तमान में (पांचाल घाट) फर्रुखाबाद से शाहजहाँपुर,बरेली मुख्यमार्ग होकर जाता था| जंहा आजादी से पूर्व की बात करे तो नावों का पुल बनाया जाता था. आजादी के बाद भारत सरकार ने गंगा के ऊपर आवागमन के लिए पीपों का पुल बना दिया. गंगा की रेती पर गुजरने के लिए लोहे से बने पटले डाले जाते थे.जो राजेपुर जाने वाले मार्ग से मिलते थे. वही बरसात होने पर लगभग चार महीने तक यह मार्ग बंद कर दिया जाता था।
#Panchal ghat par #Prasidh mela #Ram nagariya
फर्रुखाबाद प्रतिवर्ष माघ के महीने में गंगा तीरे लगने वाले तम्बुओं के शहर (मेला रामनगरिया) के अस्तित्व में आने के सम्बन्ध में बहुत कम लोग ही जानते है. आखिर कब देश-प्रदेश के श्रद्धालुओं को अपनी तरफ आकर्षित करने वाला मेला अस्तिस्त्व में आया. यह सबाल अधिकतर लोगों के जगन में वर्षो से जगह बनाये है. हमारे न्यूज,टीम ने इसकी कई दिनों तक पड़ताल की. पुराने इतिहास को खंगाला तो जो सामने आया उससे मेला रामनगरिया के अस्तित्व के सबाल से काफी हद तक पर्दा उठा है. कंपिल से फर्रुखाबाद श्रंगीरामपुर तक गंगा के तट से गंगा जल लेकर श्रद्धालु मानसरोबर कैलाश जाकर देवाधिदेव भगवान शंकर को अर्पित करते थे.प्राचीन ग्रथों में इस पूरे क्षेत्र को स्वर्गद्वारी कहा गया है। घटियायों का घाट घटियाघाट वर्तमान में (पांचाल घाट) फर्रुखाबाद से शाहजहाँपुर,बरेली मुख्यमार्ग होकर जाता था| जंहा आजादी से पूर्व की बात करे तो नावों का पुल बनाया जाता था. आजादी के बाद भारत सरकार ने गंगा के ऊपर आवागमन के लिए पीपों का पुल बना दिया. गंगा की रेती पर गुजरने के लिए लोहे से बने पटले डाले जाते थे.जो राजेपुर जाने वाले मार्ग से मिलते थे. वही बरसात होने पर लगभग चार महीने तक यह मार्ग बंद कर दिया जाता था।
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