यूकेलिप्टस का अकाल, कई कारखाने बंद, आर्डर कैंसिल
वाराणसी, 'वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट' के रूप में बनारस की पहचान बन चुका लकड़ी का खिलौना उद्योग इन दिनों बुरे दौर से गुजर रहा है।
उसके सामने कच्चा माल यानी यूकेलिप्टस की लकड़ी की भारी कमी है। इस नाते लट्टू, फिरंगी, सिंदूरा, गुड़िया, देवी-देवताओं की मूर्तियों आदि का निर्माण ठप हो गया है।
कई कारखाने कई माह से बंद चल रहे हैं। वहां काम करने वाले कारीगर रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। कुछ ने रिक्शा चलाना, ठेला लगाना शुरू कर दिया है।
प्लाईवुड में हो रही खपतः लकड़ी के खिलौने बनाने में यूकेलिप्टस की लकड़ी का इस्तेमाल होता है। उसकी से कच्चा माल सौ रुपये / कुंतल से 24 सौ 06 माह 12 सर आ पहुंची यूकेलिप्ट
लट्टू- फिरंगी, सिंदूरा-गुड़िया आदि का निर्माण हो गया टप तनाव में शिल्पी, कारीगरों के सामने रोजगार का संकट
छह महीने से उपलब्धता बहुत सीमित हो गई है और दाम भी दोगुना हो गया है। जानकार बता रहे हैं कि प्लाईवुड में इस्तेमाल होने के कारण यूकेलिप्टस का अभाव हो गया है। इस स्थिति में खोजवां, कश्मीरीगंज इलाके में दर्जनभर कारखाने बंद हो गए हैं। कई शिल्पियों ने पुराने ऑर्डर कैंसिल कर दिए हैं तो नये ऑर्डर नहीं ले पा रहे हैं। रंग बनाने वाले रंगरेजों का भी काम एक तिहाई रह गया है।
पद्मश्री अवार्डी शिल्पी गोदावरी सिंह ने बताया कि एक साल पहले यूकेलिप्टस की लकड़ी 1200 रुपये कुंतल मिलती थी जो अब 2000- 2400 रुपये हो गई है। जिन शिल्पियों के पास लकड़ियों का पुराना स्टॉक है, वही कुछ ऑर्डर पूरा कर पा रहे हैं। उनका भी स्टॉक खत्म हो जाएगा।
यहां से आती है लकड़ी: लुधियाना, पठानकोट, रायबरेली, लखनऊ से यूकेलिप्टस आता है।
कश्मीरीगंज स्थित आवास पर लकड़ी के खिलौना बनाने में दिक्कतें बताते पद्मश्री गोदावरी सिंह ।
वाराणसी, 'वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट' के रूप में बनारस की पहचान बन चुका लकड़ी का खिलौना उद्योग इन दिनों बुरे दौर से गुजर रहा है।
उसके सामने कच्चा माल यानी यूकेलिप्टस की लकड़ी की भारी कमी है। इस नाते लट्टू, फिरंगी, सिंदूरा, गुड़िया, देवी-देवताओं की मूर्तियों आदि का निर्माण ठप हो गया है।
कई कारखाने कई माह से बंद चल रहे हैं। वहां काम करने वाले कारीगर रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। कुछ ने रिक्शा चलाना, ठेला लगाना शुरू कर दिया है।
प्लाईवुड में हो रही खपतः लकड़ी के खिलौने बनाने में यूकेलिप्टस की लकड़ी का इस्तेमाल होता है। उसकी से कच्चा माल सौ रुपये / कुंतल से 24 सौ 06 माह 12 सर आ पहुंची यूकेलिप्ट
लट्टू- फिरंगी, सिंदूरा-गुड़िया आदि का निर्माण हो गया टप तनाव में शिल्पी, कारीगरों के सामने रोजगार का संकट
छह महीने से उपलब्धता बहुत सीमित हो गई है और दाम भी दोगुना हो गया है। जानकार बता रहे हैं कि प्लाईवुड में इस्तेमाल होने के कारण यूकेलिप्टस का अभाव हो गया है। इस स्थिति में खोजवां, कश्मीरीगंज इलाके में दर्जनभर कारखाने बंद हो गए हैं। कई शिल्पियों ने पुराने ऑर्डर कैंसिल कर दिए हैं तो नये ऑर्डर नहीं ले पा रहे हैं। रंग बनाने वाले रंगरेजों का भी काम एक तिहाई रह गया है।
पद्मश्री अवार्डी शिल्पी गोदावरी सिंह ने बताया कि एक साल पहले यूकेलिप्टस की लकड़ी 1200 रुपये कुंतल मिलती थी जो अब 2000- 2400 रुपये हो गई है। जिन शिल्पियों के पास लकड़ियों का पुराना स्टॉक है, वही कुछ ऑर्डर पूरा कर पा रहे हैं। उनका भी स्टॉक खत्म हो जाएगा।
यहां से आती है लकड़ी: लुधियाना, पठानकोट, रायबरेली, लखनऊ से यूकेलिप्टस आता है।
कश्मीरीगंज स्थित आवास पर लकड़ी के खिलौना बनाने में दिक्कतें बताते पद्मश्री गोदावरी सिंह ।
Category
🗞
News