Kargil War का हिस्सा रहीं Capt. Yashika Tyagi ने IANS से साझा किए अपने अनुभव और चुनौतियां

  • 3 months ago
कैप्टन यशिका हटवाल त्यागी साल 1997 में लेह के ऊंचे इलाके में तैनात होने वाली पहली महिला सेना अधिकारी थीं, जब वे रसद विंग में सेवारत थीं। फिर 1999 में जब उन्हें कारगिल युद्ध में सेवा देने के लिए बुलाया गया उस वक्त वो गर्भवती थीं। युद्ध के बाद, उन्हें उनकी सेवा के लिए कारगिल स्टार, ओपी विजय पदक से सम्मानित किया गया और वह कारगिल युद्ध का हिस्सा बनने वाली भारतीय सेना की रसद विंग की पहली महिला अधिकारी बनीं। यशिका त्यागी ने आईएएनएस से खास बातचीत में अपने अनुभवों और कारगिल युद्ध में अपने योगदान को लेकर खुलकर बातचीत की।

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00:00देखिये 1997 में जब मेरी पोस्टिंग लेल लदाख की आई
00:04उस समय मैं भारतीय सेना की पहली महिला अफसर थी
00:08जो हाई अल्टिट्यूट और एक्स्ट्रीम कोल क्लाइमट में जिसकी पोस्टिंग की गई
00:12दो साल तक वहाँ तैनाती के समय
00:15किस तरीके से हाई अल्टिट्यूट में फोज काम करती है इसके बारे में बहुत कुछ सीखा
00:19और यही मेरे काम आया जब 1999 में कारगिल की जंग चिड़ गई
00:25हाई अल्टिट्यूट में लॉजिस्टिक्स का काम बहुत अलग तरीके का होता है
00:30वहाँ हम एडवांस विंटर स्टॉकिंग करते हैं यानि साल भर हमें जितनी चीज़ चाहिए
00:35वो दो से चार महिनों के बीच का जो रोड ओपनिंग पीरड होता है जब बरफ
00:40हटती है उसी में सारा समान आ सकता है तो यह एक ऐसा अनुभव था
00:45जो नई चीज थी सीखने वाली और जब कारगल की लड़ाई चड़ी तो पाकिस्तानियों
00:50ने हमारे रोड आक्सिस के ऊपर अपने डॉमिनेंस बना ली थी जिस से कि वो हमारे आक्सिस
00:56अपने डॉमिनेंस को हमारी लोगिस्टिक सप्लाइज को रोख सके उस चैलेंज के बीच में जब हमारी
01:04रोडस के ऊपर पाकिस्तानियों के गोले बढ़ रहे थे इसी समय बहुत सारी फोज इंड़क्ट हो रही थी
01:12उन्हें जंग के लिए तैयार करना अपने में एक लोगिस्टिक चैलेंज था अगर आपने हाई अल्टिटूड देखा हो या आपने कभी उसके बारे में पढ़ा हो तो कारगिल की लड़ाई 15,000 से 18,000 फीट की उचाई पर लड़ी गई
01:28जहां टेमपरेचर सब जीरो है नीचे गिरता जा रहा है टेमपरेचर कें डिप डाउं टू माइनस 25 माइनस 25 रैरिफाइड एर है यानि आपको सांस नहीं आती आपको ओक्सीजन नहीं मिल रहा है तो आप ये सोच सकते हैं कि दुश्मन के साथ आई बॉल टू आई बॉल क
01:58इसका क्या अर्थ निकलते है? इसका यही अर्थ निकलता है
02:25उस तरीके का खाना नहीं मिल रहा हैं
02:27और क्योंकि मैं पहली महिला अफसर थी
02:29हाइ एल्टिट्यूट में
02:30तो वहाँ कोई गाइनेकॉलेजिस्ट भी नहीं थे
02:32तो मर्फीज लोह है
02:33जो चीज गलत हो सकती थी
02:35उसके होने के पूरे चांसेज थे
02:37लेकिन
02:38जब आप किसी हाईयर परपस के लिए ख़ड़े होते हैं
02:49जब आप अपने से उपर अपने कॉज को रखते हैं
02:53तो मुझे लगता है हिम्मत स्वतह अपने आप आपके अंदर आती है
02:57तो यही शायद मेरे साथ हुआ
02:59कहने में बहुत क्लिशे लगता है कि उपरवाला है
03:02लेकिन वाकई में उपरवाला है
03:05हमें सिर्फ अपना काम करना है
03:07क्योंकि मैं उसमें और कुछ कर नहीं सकती थी
03:09मेरे हाथ में कुछ नहीं था
03:11ना मौसम मेरे हाथ में था
03:12ना उक्सिजन की मातरा मेरे हाथ में थी
03:14ना जंग मेरे हाथ में थी
03:15ना वो खाना पीना मेरे हाथ में था
03:17जंग के समय रेस्ट लेना भी मेरे हाथ में नहीं था
03:20ना मैं लेना चाहती थी
03:21ना मैंने ऐसा सोचा
03:23इन सारे ओड्स के बावजूद भी
03:25मेरा बच्चा
03:27मेरे पेट में सही सलामत रहा
03:29और जब बॉर्ण हुआ तो वो बिलकुल नॉर्मल बच्चा रहा
03:32तो इसे क्या कहेंगे
03:34इसे यही कहेंगे कि उपरवाला है
03:36हम सबको देखता है
03:37हमें सिर्फ अपना काम करना चाहिए

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