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सिर सांठे रूंख रहे तो भी सस्तों जांण। यानी अगर सिर कटने से वृक्ष बच रहा हो तो ये सस्ता सौदा हैं। जम्भेश्वर भगवान ने विश्नोई समाज की शुरुआत की थी। विश्नोई समाज के लोग 29 नियमों का पालन करते हैं जिसमें जीवरक्षा और पर्यावरण रक्षा प्रमुख हैं और आज तक विश्नोई समाज नियमों का पालन करता आया है। हुब्बल्ली (कर्नाटक) के पास बुदरसिंघी स्थित विश्नोई समाज भवन परिसर में राजस्थान पत्रिका के हरित प्रदेश अभियान के तहत आयोजित पौधरोपण कार्यक्रम में विश्नोई समाज के लोगों ने पौधे लगाए एवं उनके रखरखाव का संकल्प दोहराया।
विश्नोई समाज के लोगों ने कहा कि 18वीं सदी की बात है जब मारवाड़ यानी जोधपुर रियासत में महाराजा अभय सिंह का राज था। राजा ने अपने महल के लिए सिपाहियों को लकड़ी लाने को भेजा। सिपाही खेजड़ली गांव पहुंच गए और खेजड़ी के वृक्ष काटने लगे। वहां मौजूद विश्नोई समाज की एक महिला अमृतादेवी ने उन्हें रोका। सिपाही नहीं माने तो वह महिला पेड़ से चिपक गई, लेकिन सिपाहियों ने उस पर भी कुल्हाड़ी चला दी। यह देखकर महिला की बेटियां भी अन्य पेड़ों से चिपक गई, जिन्हें भी सिपाहियों ने मार डाला। एक-एक करके समाज के 363 लोग पेड़ों से चिपकते रहे और सिपाही उनकी जान लेते रहे। यह बात जब राजा को पता चली तो वे दुखी हुए और खेजड़ली आए और गांव वालों से माफी मांगी। साथ ही यह वादा भी किया कि अब जिस इलाके में भी विश्नोई समाज के लोग रहेंगे वहां पेड़ नहीं काटे जाएंगे। तब से पेड़-पौधों के संरक्षण की यह परंपरा चली आ रही है। अमृता विश्नोई जिसने पेड़ के बदले सिर कटाना बेहतर समझा। एक साधारण महिला की असाधारण कहानी जिसने दुनिया को पर्यावरण संरक्षण का ऐसा सन्देश दिया जिसे दुनिया कभी भुला नहीं पाएगी। खेजडली आज विश्व में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक मिसाल है। पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण को लेकर इतनी बड़ी कुर्बानी का उल्लेख और कहीं नहीं मिलता। प्रारम्भ में राजस्थान पत्रिका हुब्बल्ली के संपादकीय प्रभारी अशोक सिंह राजपुरोहित ने राजस्थान पत्रिका के हरित प्रदेश अभियान के बारे में जानकारी दी।
विश्नोई समाज के सांचौर जिले के झाब निवासी श्रीराम जाणी ने कहा, वन्य प्राणियों की रक्षा में हमेशा तत्पर रहने वाला विश्नोई समाज पर्यावरणप्रेमी है। पर्यावरण से खास लगाव के चलते ही पेड़-पौधों की रक्षा में भी सदैव हाथ बंटाता रहा है। प्रवासी भले ही दक्षिण एवं अन्य प्रांतों में बिजनस कर रहे हैं लेकिन जब भी गांव आते हैं प्रकृति की गोद में खो जाते हैं। अमृता देवी का बलिदान और विश्नोई समाज का पर्यावरण के लिए बलिदान विश्नोई समाज के लिए गर्व का विषय है। विश्नोई समाज के लोग देश-दुनिया में जहां भी हैं पर्यावरण के प्रति उनमें विशेष स्नेह हैं।
चौरा निवासी भगवानाराम कड़वासरा ने कहा, पिछले दिनों राजस्थान में भीलड़ी-समदड़ी मार्ग पर रेलवे लाइन के दोहरीकरण के लिए रास्ते में आ रहे खेजड़ी के वृक्ष को काटने का फरमान जारी किया गया। जिसका विश्नोई समाज ने विरोध किया है। विश्नोई समाज प्राचीन समय से ही वन्य जीव प्रेमी रहा है। वन्य जीवों की हत्या किसी भी सूरत में होने नहीं देता। वन्य जीवों को अपने परिवार के सदस्यों की तरह पालन करता है। यही वजह है कि जहां विश्नोई बाहुल्य इलाके हैं वहां हिरण एवं अन्य वन्य जीव स्वच्छंद रूप से विचरण करते नजर आते हैं।
विश्नोई समाज युवा मंडल के अध्यक्ष रामलाल भादू ने कहा कि भविष्य में भी हम इसी तरह पौधे लगाने के कार्य में सहभागी बनेंगे। आज भी विश्नोई समुदाय में पेड़-पौधों एवं वन्य जीव-जंतुओं की रक्षा का भाव कूट-कूट कर भरा है। हिरणों को हम वन्य जीव की तरह नहीं बल्कि घरेलु सदस्य की तरह पालन करते आ रहे हैं। हमारे विश्नोई समाज के 29 नियमों में यह भी शामिल है। पर्यावरण व प्रकृति का विशेष ध्यान रखते हैं।
इस अवसर पर ओमप्रकाश डारा रामजी का गोल, नरेश साहू चौरा, गणपत सारण करावड़ी, ओमप्रकाश भाम्भू रामजी का गोल, चेतन पंवार मालवाड़ा, गंगाराम झोदगण, दिनेश सारण जानवी, प्रवीण मांजू चितलवाना, जगदीश नैण लालपुरा, रौनक पंवार मालवाड़ा, जयदीप सारण जानवी समेत विश्नोई समाज के लोगों ने पौधरोपण करने के साथ ही पौधों के रखरखाव का संकल्प दोहराया।


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Transcript
00:00Shri Ram Vishnu, there are 363 people martyred in Rajasthan because of this plant.
00:12We should plant this plant. It is very good for the environment.
00:17Every human being should plant one or two plants.
00:21We also keep planting.

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