सवाईमाधोपुर. महिलाएं अब घर की देहरी के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर मोर्चा संभालने लगी है। महिला सशक्तिकरण के कई उदाहरण प्रदेश में मिल जाएंगे। ऐसा ही एक उदाहरण जिले के मलारना डूंगर में सामने आया है। यहां ऊषा बैरवा ने यू ट््यूब व अपने परिचित से चप्पल बनाने काम सीखा।
जिले में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी ऊषा बैरवा चप्पल बनाकर कर परिवार की जिंदगी संवार रही है। चप्पल बनाने वाली महिला आठवीं पास है। महिला बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए चप्पल बनाती है। पिछले तीन माह में महिला ने एक हजार से अधिक जोड़ी चप्पले बनाई है। इसमें करीब एक लाख रुपए की कमाई हुई है।
यू ट््यूब से चप्पल बनाने का काम सीखा
स्वंय सहायता समूह से जुड़ी ऊषा बताती है कि घर का काम करने के बाद काफी समय बच जाता था। उस फ्री टाइम में उसने सोचा कि कुछ काम किया जाए और अपना व अपने बच्चों का भविष्य सुधारा जाए। महिला ने अपने परिचित से सलाह ली तो उसने चप्पल बनाने के बारे में बताया। इसके बाद महिला ने यू ट््यूब की मदद ली और चप्पल बनाने का काम सीखा। शुरुआती दिनों में डर लगता कि मशीन कैसे चलूंगी। मशीन में कई हाथ ना कट जाए लेकिन तीन-चार दिन काम करने के बाद लगा की काम कर सकती हूं। इसके बाद महिला ने मशीन खरीदी और चप्पल बनाने का काम शुरू किया।
एक दिन में बनाती हैं 150 जोड़ी चप्पल
मशीन खरीदने के बाद शुरुआत में एक दिन में महिला 30 से 40 जोड़ी चप्पल बना लेती थी। बाद में धीरे-धीरे एक दिन में चप्पल बनाने का आकड़ा भी बढ़ता गया। आज महिला पति का सहयोग लेकर आसानी से 150 जोड़ी चप्पल बना लेती है। राजस्थान में लगने वाले अलग-अलग जगहों व मेलों में भी महिला दुकान लगाती है। महिला चप्पल बनाने के लिए नई दिल्ली से कच्चा माल मंगवाती है।
ऐसे बनाती हैं महिला चप्पल
महिला ने करीब चार महीने पहले चप्पल बनाने की मशीन खरीदी थी। उसके पास चप्पल बनाने के लिए ग्लाइंड मशीन, कटिंग मशीन, चप्पल बनाने का सांचा है। वह सबसे पहले कच्चे माल को मशीन में डालती हैं। सांचा से चप्पल तैयार हो जाता है। दो जोड़ी चप्पल तैयार करने में महिला को करीब 25 मिनट का समय लगता है। उनकी बनाई चप्पल मेलों व दुकानों में बिकती है।
जिले में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी ऊषा बैरवा चप्पल बनाकर कर परिवार की जिंदगी संवार रही है। चप्पल बनाने वाली महिला आठवीं पास है। महिला बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए चप्पल बनाती है। पिछले तीन माह में महिला ने एक हजार से अधिक जोड़ी चप्पले बनाई है। इसमें करीब एक लाख रुपए की कमाई हुई है।
यू ट््यूब से चप्पल बनाने का काम सीखा
स्वंय सहायता समूह से जुड़ी ऊषा बताती है कि घर का काम करने के बाद काफी समय बच जाता था। उस फ्री टाइम में उसने सोचा कि कुछ काम किया जाए और अपना व अपने बच्चों का भविष्य सुधारा जाए। महिला ने अपने परिचित से सलाह ली तो उसने चप्पल बनाने के बारे में बताया। इसके बाद महिला ने यू ट््यूब की मदद ली और चप्पल बनाने का काम सीखा। शुरुआती दिनों में डर लगता कि मशीन कैसे चलूंगी। मशीन में कई हाथ ना कट जाए लेकिन तीन-चार दिन काम करने के बाद लगा की काम कर सकती हूं। इसके बाद महिला ने मशीन खरीदी और चप्पल बनाने का काम शुरू किया।
एक दिन में बनाती हैं 150 जोड़ी चप्पल
मशीन खरीदने के बाद शुरुआत में एक दिन में महिला 30 से 40 जोड़ी चप्पल बना लेती थी। बाद में धीरे-धीरे एक दिन में चप्पल बनाने का आकड़ा भी बढ़ता गया। आज महिला पति का सहयोग लेकर आसानी से 150 जोड़ी चप्पल बना लेती है। राजस्थान में लगने वाले अलग-अलग जगहों व मेलों में भी महिला दुकान लगाती है। महिला चप्पल बनाने के लिए नई दिल्ली से कच्चा माल मंगवाती है।
ऐसे बनाती हैं महिला चप्पल
महिला ने करीब चार महीने पहले चप्पल बनाने की मशीन खरीदी थी। उसके पास चप्पल बनाने के लिए ग्लाइंड मशीन, कटिंग मशीन, चप्पल बनाने का सांचा है। वह सबसे पहले कच्चे माल को मशीन में डालती हैं। सांचा से चप्पल तैयार हो जाता है। दो जोड़ी चप्पल तैयार करने में महिला को करीब 25 मिनट का समय लगता है। उनकी बनाई चप्पल मेलों व दुकानों में बिकती है।
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